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Oral Cancer: भारत में बढ़ रहा है मुंह के कैंसर का खतरा, मिथ और फैक्ट्स जानकर आप भी कर सकते हैं बचाव

हेल्थ डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: अभिलाष श्रीवास्तव Updated Fri, 26 Sep 2025 07:03 PM IST
सार

  • ओरल कैंसर यानी मुंह के कैंसर के तेजी से बढ़ते मामले काफी चिंताजनक हैं। युवा हों या बुजुर्ग सभी इसका शिकार देखे जा रहे हैं।  गुटखा, खैनी, पान-मसाला या धूम्रपान को इसका प्रमुख कारण माना जाता रहा है।

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ओरल कैंसर, मुंह के कैंसर का बढ़ता खतरा - फोटो : Adobe stock photos

भारतीय आबादी में कैंसर के मामले हाल के वर्षों में तेजी से बढ़ते हुए देखे गए हैं। पुरुषों में फेफड़े, मुंह और लिवर कैंसर का खतरा जबकि महिलाओं में स्तन, सर्वाइकल कैंसर के मामले सबसे अधिक रिपोर्ट किए जा रहे हैं। आंकड़े बताते हैं, ओरल कैंसर यानी मुंह के कैंसर के तेजी से बढ़ते मामले काफी चिंताजनक हैं। युवा हों या बुजुर्ग सभी इसका शिकार देखे जा रहे हैं।  गुटखा, खैनी, पान-मसाला या धूम्रपान को इसका प्रमुख कारण माना जाता रहा है।



इन उत्पादों में मौजूद निकोटीन और हानिकारक रसायन मुंह की परत को नुकसान पहुंचाते हैं और धीरे-धीरे मुंह के अंदर घाव बनाते जाते हैं जो कैंसर में बदल सकते हैं। आमतौर पर माना जाता है कि सिर्फ सिगरेट, बीड़ी और तंबाकू ही इस कैंसर का कारण हैं, हालांकि अध्ययनों से पता चलता है शराब का सेवन भी कैंसर के खतरे को बढ़ाने वाला हो सकता है जिसको लेकर सभी लोगों को सावधान रहने की जरूरत है। 

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ओरल कैंसर का खतरा - फोटो : Freepik.com

अध्ययनकर्ता बताते हैं, कुछ लोगों में मुंह और गले का कैंसर एचपीवी नाम के वायरस की वजह से भी होता है। यह वायरस यौन संबंधों के दौरान फैल सकता है। अब भारत में भी इसके मामले भी बढ़ रहे हैं। आमतौर पर लोग मुंह में होने वाले छोटे-छोटे घाव या सफेद-लाल दाग को गंभीर नहीं मानते। वे महीनों इलाज टालते रहते हैं। हालांकि ये लापरवाही आप पर भारी पड़ सकती है। मुंह के कैंसर को लेकर जागरूकता की कमी भी इसके बढ़ते मामलों का कारण हो सकती है। आइए ओरल कैंसर से जुड़े कुछ मिथ्य-फैक्ट्स के बारे में जानते हैं।

मिथ- सिर्फ बीड़ी-सिगरेट से ही मुंह का कैंसर होता है

अक्सर से लोग मानते हैं कि मुंह का कैंसर केवल उन लोगों को होता है जो सिगरेट या बीड़ी पीते हैं। लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। 

भारत में ओरल कैंसर के सबसे ज्यादा मामले उन लोगों के देखे जाते हैं जो गुटखा, खैनी, पान-मसाला या सुपारी चबाते हैं। ये चीजें मुंह के अंदर लंबे समय तक रहती हैं और उनके जहरीले केमिकल सीधे मुंह की परत को नुकसान पहुंचाते हैं। इससे सफेद या लाल दाग, बार-बार होने वाले घाव और बाद में कैंसर की आशंका बढ़ जाती है। सुपारी और गुटखा में पाए जाने वाले रसायनों और तंबाकू दोनों को वैज्ञानिकों ने कैंसरजनक माना है।
 

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युवाओं में कैंसर का खतरा - फोटो : Adobe stock
मिथ- मुंह का कैंसर सिर्फ बुजुर्गों को होता है

क्या आपको भी लगता है कि यह बीमारी सिर्फ बुजुर्गों को होती है?

आंकड़े बताते हैं, मौजूदा के समय में महिलाएं और युवा भी बड़ी संख्या में इस बीमारी से प्रभावित हो रहे हैं। गुटखा, पान-मसाला और सुपारी जैसी चीजों का युवाओं और महिलाओं में भी तेजी से इस्तेमाल बढ़ा है। कई युवा फैशन या दोस्तों की नकल में ये आदतें शुरू करते हैं और बाद में लत पड़ जाती है। इसके अलावा, एचपीवी वायरस भी युवाओं में इस कैंसर का कारण बन रहा है। 
 
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मुंह में होने वाली समस्याएं - फोटो : Freepik.com
मिथ- मुंह में छोटे-छोटे अल्सर या दाग सामान्य हैं।

मुंह के बार-बार छाले, घाव या दाग आम बात है और खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगे, अगर आप भी ऐसा ही सोचते हैं तो सावधान हो जाएं। कुछ मामलों में यह सच भी होता है, जैसे दांत से चोट लगना या विटामिन की कमी के कारण छाले हो सकते हैं। लेकिन अगर मुंह में कोई घाव या सफेद-लाल दाग दो हफ्ते से ज्या दा समय तक बना रहे, उसमें खून आए या वह धीरे-धीरे बड़ा हो, तो यह गंभीर संकेत है। ऐसे घाव प्री-कैंसर वाले हो सकते हैं, यानी बाद में कैंसर में बदल सकते हैं। इनपर समय रहते गंभीरता से ध्यान दिया जाना जरूरी है।
 
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कैंसर का इलाज संभव - फोटो : Adobe stock

मिथ- मुंह का कैंसर ठीक नहीं हो सकता

अक्सर लोग सोचते हैं कि अगर मुंह का कैंसर हो गया तो जिंदगी खत्म है। यह सोच आधी सच्चाई है। अगर कैंसर देर से पता चले तो इलाज मुश्किल होता है और ठीक होने की संभावना कम होती है। लेकिन अगर कैंसर को शुरुआती स्टेज में पकड़ में आ जाए तो यह आसानी से ठीक भी हो सकता है। शुरुआती कैंसर का इलाज सर्जरी (ऑपरेशन), रेडियोथेरेपी या दवाओं से किया जाता है। कई मरीज बिल्कुल ठीक होकर सामान्य जीवन जीते हैं। 

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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्टस से एकत्रित जानकारियों के आधार पर तैयार किया गया है। 

अस्वीकरण: अमर उजाला की हेल्थ एवं फिटनेस कैटेगरी में प्रकाशित सभी लेख डॉक्टर, विशेषज्ञों व अकादमिक संस्थानों से बातचीत के आधार पर तैयार किए जाते हैं। लेख में उल्लेखित तथ्यों व सूचनाओं को अमर उजाला के पेशेवर पत्रकारों द्वारा जांचा व परखा गया है। इस लेख को तैयार करते समय सभी तरह के निर्देशों का पालन किया गया है। संबंधित लेख पाठक की जानकारी व जागरूकता बढ़ाने के लिए तैयार किया गया है। अमर उजाला लेख में प्रदत्त जानकारी व सूचना को लेकर किसी तरह का दावा नहीं करता है और न ही जिम्मेदारी लेता है। उपरोक्त लेख में उल्लेखित संबंधित बीमारी के बारे में अधिक जानकारी के लिए अपने डॉक्टर से परामर्श लें।

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