Amar Ujala Samvad 2024: देवेंद्र झाझरिया और दीपा ने बताई संघर्ष की कहानी, कहा- सहानुभूति नहीं, प्यार चाहिए
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स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Sun, 04 Aug 2024 06:58 PM IST
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खास बातें
Amar Ujala Samvad 2024: देहरादून में अमर उजाला संवाद जारी है और इसमें कई दिग्गज हस्तियां ने शिरकत की। इसी कड़ी में स्पोर्ट्स में शिखर पर पहुंचने की बात में भारत को पैरलंपिक खेलों में पदक दिलाने वाले देवेंद्र झाझरिया और दीपा मलिक भी शिरकत की। इसके अलावा मुरलीकांत पेटकर भी पहुंचे। अमर उजाला संवाद के 'जोश, जज्बा और जुनून' सत्र में ये अपने संघर्षों और पैरलंपिक खेलों में भारत को शीर्ष पर पहुंचाने की कहानी के बारे में बताया।
अमर उजाला संवाद
- फोटो : Amar Ujala
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05:30 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: दीपा मलिक को क्या धक्का लगा?
मेरे लिए सबसे ज्यादा खुशी का पल और दुख का पल 24 घंटे के अंदर ही आया। मैंने काफी तैयारी की थी शॉट पुट के लिए। जो हमारे पैरालंपिक खेलों में रियो के लिए एक ही महिला का स्लॉट था। जब मैंने वहां पर अपना गोला फेंका तो 4.48 का डिस्टेंस मैंने फेंका जो उस वक्त वर्ल्ड रैंकिंग की नंबर 1 कनाडा की खिलाड़ी का स्कोर था जो मैंने बराबरी की थी। मुझे खुशी थी कि मैं विश्व नंबर एक के स्कोर के साथ क्वालिफाई कर रही हूं। बड़ा इंतजार था कि ऐसी खबर आएगी कि पहली भारतीय महिला पैरालंपिक में अपना कोटा सिक्योर कर चुकी है और भारत का प्रतिनिधित्व करने जाने वाली है। अगले दिन जब मैंने अखबार खोला तो कहीं इस कहानी का जिक्र नहीं था। उसमें लिखा गया था कि दीपा ने चीटिंग करके दीपा ने एक जूनियर खिलाड़ी की जगह हथिया ली है और उन पर केस हो गया है। मेरी तीन पुश्तें भारतीय सेना में रही हैं। मेरे परिवार के हर सदस्य ने स्वतंत्रता की हर लड़ाई सैनिक होकर देश के लिए लड़ी है। खेल तो छोड़िए, आप पर चीटिंग का इल्जाम लगता है तो आपका पूरा करियर एक सवाल बनकर खड़ा हो जाता है। वहां कोर्ट केस चला और मैंने केस जीता। वो मेरे लिए एक मुश्किल समय था। मैं शुक्रगुजार हूं अपनी मेंटल ट्रेनर की और कोच की जो मेरे साथ खड़े रहे और गिरने नहीं दिया। घंटों लगते थे कोर्ट की सुनवाई में। मैं डम्बल लेकर जाती थी और वहीं एक्सरसाइज करती थी। मेरा पूरा जिम गाड़ी की डिक्की में मेरे साथ चलता था। मैं मेडल के लिए जब लड़ी तो वो मेरे सम्मान की लड़ाई थी। 4.48 मीटर के लिए मुझे कोर्ट में घसीटा गया, तो मैंने देश के लिए पैरालंपिक में 4.61 मीटर गोला फेंक कर पदक जीता। वो मेडल जीतने के बाद मीडिया में जब मेरा इंटरव्यू हुआ तो 2016 के बाद जो आपने हमारे मेडल्स को जो तरजीह दी, जो हमें सेलिब्रेशन दिया, जो मेडल्स की बात आपने लिखी, और मुझसे जब पूछा गया कि मेडल जीतकर कैसा लग रहा है? तो मैंने कहा- अच्छा भी लग रहा है और बुरा भी लग रहा है। जब भारत ने पैरालंपिक में 1972 में पुरुषों में अपना पहला मेडल जीत लिया था तो आजाद भारत को महिलाओं के पैरालंपिक पदक में 73 साल क्यों लग गए। आज मैं खुश हूं कि पैरालंपिक में महिलाओं की भागीदारी बढ़ गई है। 300 प्रतिशत भागीदारी बढ़ गई है। इस साल पेरिस में भी बहुत सारे पदकों के आने की उम्मीद है।05:23 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: देवेंद्र झाझरिया ने अपनी कहानी सुनाई
मैंने देश के लिए मेडल जीता है। दो गोल्ड मेडल जीते हैं पैरालंपिक में। 18 साल मेरे नाम रिकॉर्ड रहा है। टोक्यो में मैंने सिल्वर मेडल जीता। मैं खुलकर बताना चाहता हूं कि इससे ज्यादा लड़ाई मैंने सिस्टम से भी लड़ी है यहां पर। वो इसलिए कि 2004 में एथेंस पैरालंपिक खेलों के लिए चयन हुआ तो सरकार ने एक पैसा नहीं दिया। मेरे पिताजी किसान थे, लेकिन उनका हौसला काफी बड़ा था। मेरे हाथ में सेलेक्शन लेटर था और उसमें लिखा गया था कि आप एक लाख रुपये जमा करवाओगे तभी एडमिशन ले पाओगे। अब मैं मेडल तो जीत सकता था और मेरे अंदर कॉन्फिडेंस था, लेकिन उस लाख रुपये का इंतजाम करना मेरे बस में नहीं था, क्योंकि कॉलेज स्टूडेंट था। मेरे पिताजी किसान थे, लेकिन बहुत बड़े किसान नहीं थे। मेरे पिताजी जिस स्थान से आते हैं राजस्थान के चुरू से वहां सिंचाई कि अच्छी व्यवस्था नहीं है। पानी के लिए भगवान पर निर्भर रहते हैं हम वहां। जब मैं गोल्ड मेडल जीतकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाकर घर पर आया तो उसके बाद पता चला कि मेरे पिताजी ने मां के गहने बेचकर एक लाख रुपये जमाकर मुझे ओलंपिक में भेजा था। तो कहीं न कहीं वो दर्द आज भी अंदर है। वो इसलिए है कि ऐसा खराब सिस्टम था उस वक्त। एक खिलाड़ी को उसकी मां के गहने बिक जाते हैं और वह इस देश के लिए वर्ल्ड रिकॉर्ड के साथ गोल्ड जीतकर लाता है और उसकी मदद नहीं हो पाती है तो इससे ज्यादा मुश्किल और क्या हो सकता है।04:59 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: मुरली के लिए कौन सी लड़ाई ज्यादा मुश्किल थी, खेल या युद्ध?
मैं जो कुश्ती कर के पुणे पहुंचा और वहां सेना को जॉइन किया। 12 साल की उम्र में सेना में पहुंच गया। मैं पहले हॉकी खेलता था। एक दिन मेरा सेलेक्शन नेशनल के लिए हॉकी के लिए होना था, तो अचानक मेरा सेलेक्शन नहीं हुआ ये मैसेज आया। तो मैं बहुत दुखी हुआ था और मैं रोने लगा। तभी मेरा इंस्ट्रक्टर मेरे पास आया और बोले- ए चंदू के बच्चे क्यों रो रहा है। मत रो। ये सामने क्या चल रहा है। मैंने कहा बॉक्सिंग चल रहा है। तो इंस्ट्रक्टर ने कहा- सुनो बॉक्सिंग एक ऐसा खेल है, जिसमें दांत तोड़ कर मेडल लो या फिर दांत देकर मेडल लो। तो उसी दिन मैंने हॉकी छोड़ दिया और बॉक्सिंग चालू किया। मुक्केबाजी में 1964 में जब टोक्यो में एक टूर्नामेंट हुआ तब तक मैं मुक्केबाजी में इतना अच्छा हो चुका था कि लोग मुझे बेंगलुरु और मद्रास में छोटा टाइगर के नाम से जानते थे। 1964 में मैं जापान गया खेलने के लिए और 13 देशों के मुक्केबाज को बाहर करता गया। फिर 14वें देश का मुक्केबाज युगांडा का मुक्केबाज था और उसने मुझे ऐसा मुक्का मारा की मैं बेहोश हो गया। मैंने घमंड नहीं किया और हार गया तो वो भी मैं बता रहा हूं। इस टूर्नामेंट के बाद टीम हमारी वापस भारत पहुंची। फिर आर्मी ने मुझसे पूछा कि आपको क्या करना है? तो मैंने कहा कि मैं बॉक्सिंग करूंगा। तो उन्होंने कहा नहीं आपको मिलीट्री का जॉब है और पहले अपनी ड्यूटी निभाइए। तो मैंने बोला कि मुझे कश्मीर की पोस्टिंग मिल गई और मैं वहां एक साल सर्विस किया। 1965 में एक दिन वहां युद्ध शुरू हो गया। वो ऐसी लड़ाई शुरू हुई कि शाम चार बजे सिटी बजने लगी। सबको तैयार रहने के लिए कहा गया। हालांकि, कुछ लोग तैयार नहीं हो पाए। सबको लगा कि चाय के लिए साइरन बजी है और जवान कप लेकर खड़े हो गए। तभी बम गिरा और कई जवान घायल हुए और शहीद हुए। तो ऐसे लड़ाई चालू हुआ। तब हमलोग बंकर में प्रैक्टिस करते थे शूटिंग की। एक बार मैं और एक गुरुंग सर प्रैक्टिस कर रहे थे और दो टारगेट पर निशाना साध चुके थे। इसके लिए हम दोनों ने हाथ मिलाया तभी बंकर पर हवाई हमला हुआ और गुरुंग सर का हाथ मेरे हाथों में आ गया। मैं भी बंकर में दब गया। हालांकि, मैंने हिम्मत नहीं हारी और चिल्लाता रहा कि कोई तो हमें बचा लो। फिर कुछ देर बाद मुझे कुछ लोगों ने बंकर से निकाला और गुरुंग सर को अस्पताल भेज दिया गया। मैं उसी स्थिति में युद्ध में शामिल हो गया। लड़ाई में उस समय मुझे नौ गोली लगी। मैं पहाड़ से रोड पर गिरा और रोड पर आर्मी टैंकर मेरे ऊपर से गुजर गया और मैं बेहोश हो गया। दो साल मुझे ठीक होने में लगे थे।04:45 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: एक मां के तौर पर एक पत्नी के तौर और एक औरत के तौर पर कौन कौन सी चुनौतियां दिमाग में चल रही थीं?
यही त्रासदी है अपंगता की, कि वह होने से ज्यादा लोगों के दिमाग में ज्यादा रहती है। जो माइंडसेट है अपंगता का वो उस इंसान को भी लिमिट कर देता है जो इंसान अपनी शारीरिक दुविधा से गुजर रहा होता है। बचपन में ट्यूमर आया। पांच साल से नौ साल की उम्र तक अस्पताल के अंदर बाहर करती रही। बहुत ज्यादा रिहैब हुई। मैंने अपने माता पिता को स्ट्रगल करते देखा। कुछ लोगों ने तो यहां तक कहा कि एक नन्ही बच्ची है जो पैरों से अपंग है, जिसका मल मूत्र अपने आप निकल जाता है, उस जिंदा लाश को जीवित रखकर क्या करोगे। लेकिन शुक्र है मेरे मां बाप ने मुझ पर हिम्मत नहीं हारी और मेरा इलाज कराया और मैं ठीक हो गई। इतनी ठीक हुई कि राजस्थान से बास्कटबॉल भी खेली और जो पहली महिला क्रिकेट टीम बनी, उसमें भी अपनी भागीदारी दी। हालांकि, मोटरसाइकिल से प्यार के चलते मेरा अरेंज मैरेज हुआ। मुझे ऐसे पति मिले, जिन्हें मोटरसाइकिल का बहुत शौक था। उन्होंने मुझे भी मोटरसाइकिल दी। बेटी हुई तो 14 महीने में जब उसने चलना सीखा तो उसे हेड इंजरी हुई और वही हुआ जो होना था। मैंने देखा कि 20 वर्ष गुजर गए थे मेरी बीमारी में और मेरी बेटी की बीमारी में, लेकिन मानसिकता नहीं बदली थी। मेरी बेटी की भी हेड इंजरी थी और लकवा था तो लोगों ने उसे भी कोसना शुरू कर दिया। लोगों ने कहा कि यह जीवन भर का बोझ रहेगी। मुझे तब समझ आया था कि मेरी मां क्यों रोती थी। क्योंकि उसने भी यही ताने सुने थे। मैंने अपनी बेटी के इलाज में उतनी ही तत्परता दिखाई, जितना मेरे मां बाप ने मुझे ठीक करने के लिए दिखाई थी। दूसरी बेटी का जन्म हुआ तो लोगों ने फिर कहना शुरू किया कि अरे पहली बेटी अपंग है और दूसरी भी बेटी है। इसके भी पांव लंगड़ाने लगे हैं। धीरे धीरे बेटियां बड़ी हुईं। बड़ी बेटी छह साल की दूसरी बेटी तीन साल की और मेरे पति कारगिल में लड़ाई लड़ रहे थे तो मैं उस वक्त बेहद कठिन परिस्थिति में थी। तो ऐसे मेरा सफर शुरू हुआ। बहुत मेहनत की और धारना बदलना शुरू किया और मुझे लगता है कि धारना को बदलने के लिए खेलों से बड़ा कोई माध्यम नहीं है। मैं खेल से उतरी तो मुझे इसी शरीर के लिए सराहा गया और इसी के लिए पीठ थपथपाया गया। जो मेरे करीब के लोग थे जो ये कहते थे कि जीवन बर्बाद हो गया तो मैं कहना चाहूंगी कि खेलों के माध्यम से कितना बदलाव आया, देख सकते हैं। जब मैं पदक लेकर लौटी तो मेरे गांव से लगभग 40 गाड़ियां मेरे स्वागत के लिए दिल्ली एयरपोर्ट आई थी। जो गांव के सरपंच थे उन्होंने मुझे पगड़ी बांधी और मुझे गदा दिया और ये कहा- जीवन के अखाड़े में बल दिखाने के लिए हम तुमको ये देते हैं।04:37 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: देवेंद्र ने क्या वादा किया था पीएम से?
ये टोक्यो पैरलंपिक से पहले की बात थी। माननीय प्रधानमंत्री जी हमसे बात कर रहे थे। उन्होंने मेरे परिवार से बात की। पीएम को पता है कि मैं 10 साल से गुजरात में रहता हूं। उन्होंने बेटी से कहा कि क्या कभी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी गए हो, पापा कभी लेकर गए? तो मेरी बेटी ने कहा कि नहीं पापा खेलते रहते हैं तो कभी नहीं ले जा पाए। उनके पास टाइम नहीं रहता। तो मुझे पीएम ने कहा- देवेंद्र जी इन्हें स्टैच्यू ऑफ यूनिटी घुमा के लाना है इन सभी को। तो मैंने कहा ठीक है। फिर जब मैं पैरलंपिक में मेडल जीतकर लौटा तो पीएम से मिला तो उन्होंने मुझसे पूछा बेटी जिया के क्या हाल हैं। मैंने कहा बढ़िया है। तो पीएम ने कहा कि आशीर्वाद दीजिएगा बेटी को। फिर पीएम ने कहा कि मैंने आपको एक काम दिया था। तो मैंने कहा कि बिल्कुल मैं पैरालंपिक से आया हूं और अब जरूर घुमा के लाऊंगा। वहां तक तो ठीक था। मैंने बेटी को घुमाया। फिर मुझे पद्मभूषण अवॉर्ड मिला और पीएम मुझसे मिले तो कहा कि देवेंद्र वो मेरा काम कर दिया आपने? उन्होंने पूछा क्या काम था बताओ? मैंने कहा बेटी को घुमा कर लाना था। बहुत बढ़िया किया आपने। पीएम का लगाव रहता है खिलाड़ियों से और मुझे अच्छा लगता है कि वो एक खिलाड़ी के तौर पर मुझे पसंद करते हैं।04:30 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: मुरलीकांत पेटकर क्या बोले?
मैं बचपन से जिद्दी था। अभी जब आपने चंदू चैंपियन देखा तो कुश्ती में जो पहला ओलंपिक पदक आया था वो मेरे घर से काफी नजदीक था। केडी जाधव को रिसीव करने काफी लोग पहुंचे थे। मेरा भाई भी मुझे लेकर साइकल पर स्टेशन पर पहुंचा। तब समझ आया कि खिलाड़ी का सम्मान होता है। मेरे भाई ने बोला दुनिया में कुछ अच्छा कर तो नाम होगा। तभी मैंने ठान लिया कि मैं भी ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। जब घर पहुंचा तो मेरे घरवालों ने पूछा कि क्यों गए थे। उसी दिन स्कूल में मेरे टीचर ने पूछा कि तू क्या बनेगा तो मैंने कहा कि मैं ओलंपिक गोल्ड लाऊंगा। कुछ बच्चों ने बोला कि तू क्या गिल्ली डंडा में गोल्ड लाएगा। चंदू कहकर चिढ़ाने लगे। बस मुझे यहीं से जज्बा मिला। मैंने कुश्ती की प्रैक्टिस करने की शुरू की। कोच ने कहा कि तू क्या कुश्ती लड़ेगा, तू तो बच्चा है। तभी बचपन से मैं कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहा हूं। कुश्ती इवेंट में मुझे एक पैसा मुझे इनाम के तौर पर मिला था और वो मेरी जिंदगी का पहला गोल्ड मेडल था। मैं दूसरे गांव के सरपंच के लड़के के साथ भी कुश्ती लड़ा और मैं जीत गया। फिर दूसरे गांव के साथ हमारी लड़ाई चली और मैं उस गांव से भाग गया और मिलीट्री जॉइन कर लिया।
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04:25 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: दीपा मलिक ने अपने संघर्ष पर क्या कहा?
मेरे लिए जिद्द थोड़ी ज्यादा थी, क्योंकि मेरी उम्र ज्यादा थी। मैंने 36 साल की उम्र से खेलना शुरू किया। मेरे छाती का निचला हिस्सा लकवाग्रस्त हो चुका था। मेरे पर चैलेंज है मल और मूत्र को कंट्रोल करने की शक्ति नहीं थी। मेरे लिए चैलेंज बड़ा था। मेरी बेटी की भी इंजरी हुई और बायां हिस्सा लकवाग्रस्त हो गया। मेरे लिए चुनौती बढ़ी और मैंने कहा कि इस शरीर से कुछ तो करना है ताकि लोगों को बर्डेन नहीं लगे और ऐसे लोगों को हिम्मत मिले। जब हमने खेलना शुरू किया तो काफी चैलेंज था। साथ ही पहली महिला होना तो काफी मुश्किल था। खेल बदलने की जहां तक बात है तो मैं देखना चाहती थी कि इस शरीर के साथ मैं अच्छा क्या खेल सकती हूं। जब मेरा खेल नहीं आया, जेवलिन में वर्ल्ड नंबर दो बन चुकी थी। 2012 मेरा मिस हुआ था लंदन पैरालंपिक्स। 2016 में जेवलिन नहीं था और शॉटपुट था। तो मैंने कोच बदला, जगह बदली, लोग बदले लेकिन पदक जीतकर ही मानी।04:20 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: देवेंद्र झाझरिया ने अपने संघर्षों पर क्या कहा?
आज देहरादून में आने का सौभाग्य मिला है। मैं अमर उजाला की 75वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं देता हूं। 8-9 की उम्र में हाथ गंवाना पड़ा था। उस समय पैरा खेलों को कोई जानता नहीं था। जब स्कूल में मैंने भाला उठाया तो सबने कहा कि आप यहां मैदान में क्यों हैं। मुझे ऐसा महसूस कराया गया कि खेल मेरे लिए नहीं है। मैंने घर पर लकड़ा का भाला बनाया और आम लड़कों के बीच खेला। कहीं न कहीं मेरी जिद्द ने ही मुझे चैंपियन बनाया है। मुझे सहानुभूति नहीं चाहिए। प्यार दे सकते हो।02:38 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: कौन हैं मुरलीकांत पेटकर?
मुरलीकांत पेटकर
- फोटो : Amar Ujala
कहां हुआ जन्म?
मुरली पेटकर का जन्म महाराष्ट्र के सांगली जिले के पेठ इस्लामपुर गांव में एक नवंबर, 1944 को हुआ था। उन्हें बचपन से ही खेल-कूद का शौक था। पढ़ाई के समय वह अक्सर खेलने के लिए मैदान पहुंच जाते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जब मुरलीकांत 12 साल के हुए तब उनके जीवन में बहुत बड़ा बदलाव हुआ था। दरअसल, 12 साल की उम्र में मुरलीकांत और गांव के बेटे के बीच कुश्ती का मुकाबला हुआ जिसमें पेटकर को जीत मिली। आमतौर पर मुकाबला जीतने के बाद विजेताओं को बधाई मिलती है लेकिन मुरलीकांत के साथ उल्टा हुआ। उन्हें और उनके परिवार को जान से मारने की धमकी मिली। मुरलीकांत पेटकर की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
02:37 PM, 04-Aug-2024
Amar Ujala Samvad 2024 Live: कौन हैं देवेंद्र झाझरिया?
पद्मभूषण से सम्मानित जैवलिन थ्रोअर देवेंद्र झाझरिया रविवार को देहरादून में होने वाले अमर उजाला संवाद कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। वह पैरालंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय हैं। झाझरिया फिलहाल पैरालंपिक समिति के अध्यक्ष हैं। खेल के अलावा झाझरिया राजनीति में भी सक्रिय हैं। लोक सभा चुनाव 2024 में उन्हें भाजपा ने चुरू से मैदान में उतारा था। हालांकि, उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले पहले पैरा एथलीट
देवेंद्र पद्मभूषण पुरस्कार पाने वाले देश के पहले पैरा एथलीट हैं। झाझरिया ने तीन ओलंपिक में देश को मेडल दिलाया है। उनके इस शानदार प्रदर्शन की बदौलत ही उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है। झाझरिया राजस्थान के पहले खिलाड़ी हैं, जिन्हें यह अवार्ड दिया गया है। उन्होंने पिछले साल टोक्यो पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीता था। इससे पहले एथेंस 2004 और रियो 2016 के पैरा ओलंपिक खेलों में देवेंद्र देश के लिए स्वर्ण पदक जीत चुके हैं।
भारत सरकार द्वारा खेल उपलब्धियों के लिए देवेंद्र को खेल जगत का सर्वोच्च मेजर ध्यान चंद खेल रत्न पुरस्कार दिया गया। इससे पूर्व उन्हें पद्मश्री पुरस्कार, स्पेशल स्पोर्ट्स अवार्ड (2004), अर्जुन अवार्ड (2005), राजस्थान खेल रत्न, महाराणा प्रताप पुरस्कार (2005), मेवाड़ फाउंडेशन के प्रतिष्ठित अरावली सम्मान (2009) सहित अनेक इनाम-इकराम मिल चुके हैं। वे खेलों से जुड़ी विभिन्न समितियों के सदस्य रह चुके हैं। देवेंद्र झाझरिया की पूरी कहानी पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें