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Bhopal News: मध्य प्रदेश मानव अधिकार आयोग में नियुक्तियों पर बवाल, नेता प्रतिपक्ष ने पारदर्शिता पर उठाए सवाल
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल
Published by: संदीप तिवारी
Updated Mon, 29 Sep 2025 04:11 PM IST
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सार
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति से पहले नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चयन प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्तियां जताई हैं। उन्होंने प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनदेखी का आरोप लगाया है।

नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग में अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियों को लेकर आज शाम मुख्यमंत्री निवास पर अहम बैठक होने जा रही है। इस बैठक से पहले नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार ने चयन प्रक्रिया को लेकर गंभीर आपत्तियां जताई हैं। उन्होंने प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी और सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों की अनदेखी का आरोप लगाया है। नेता प्रतिपक्ष ने कहा है कि मुख्यमंत्री इस बैठक में जनता के अधिकारों की रक्षा को प्राथमिकता देंगे और चयन प्रक्रिया को निष्पक्ष तथा पारदर्शी बनाएंगे। उन्होंने कहा कि मानव अधिकार आयोग एक संवैधानिक संस्था है, जिसे राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रहना चाहिए।
निष्पक्ष और योग्यता आधारित हों नियुक्तियां
नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने कहा कि आयोग जैसी संवैधानिक संस्था में निष्पक्ष और योग्यता आधारित नियुक्तियां होनी चाहिए, लेकिन सरकार अपने पसंदीदा लोगों को जिम्मेदार पदों पर बैठाना चाहती है। उन्होंने पूछा कि क्या इन पदों के लिए सार्वजनिक रूप से आवेदन आमंत्रित किए गए थे या केवल नामांकन के आधार पर चयन हो रहा है?
यह भी पढ़ें-मध्य प्रदेश के 26 लाख विद्यार्थियों का आधार अपडेट पेंडिंग, 1 अक्टूबर से स्कूलों में शुरू होगा अभियान
संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी का आरोप
नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा कि मानव अधिकार आयोग अधिनियम के अनुसार, पद रिक्त होने के तीन माह के भीतर नियुक्ति होना चाहिए, लेकिन बीते कई वर्षों से नियुक्तियों में देरी की जा रही है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिन व्यक्तियों को नामित किया गया है, उनकी योग्यता और चयन की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी रही।
यह भी पढ़ें-एम्स में हाईटेक जांच सुविधा शुरू,अब 230 से ज्यादा बीमारियों की जांच एक ही मशीन से, रिपोर्ट मिलेगी तेज
न्यायिक पद का नाम बदलने पर आपत्ति
उमंग सिंघार ने यह आरोप भी लगाया कि न्यायिक सदस्य के पद का नाम बदलकर 'प्रशासकीय सदस्य' कर दिया गया है ताकि एक विशेष व्यक्ति को पद दिया जा सके। उन्होंने इसे पद के स्वरूप में अनावश्यक फेरबदल बताते हुए संविधान और कानून के विरुद्ध बताया।उन्होंने कहा कि आयोग में नियुक्तियों को लेकर व्यापक सूचना सार्वजनिक नहीं की गई, बल्कि केवल चुनिंदा लोगों को ही जानकारी देकर उनसे आवेदन मंगवाए गए। इस तरह की प्रक्रिया से आम लोगों के अवसरों को सीमित किया गया है। सिंघार ने यह भी पूछा कि आखिर एक ही व्यक्ति को बार-बार अध्यक्ष का प्रभार क्यों सौंपा जा रहा है? उन्होंने इसे एक्ट का उल्लंघन बताते हुए, निष्पक्षता और पारदर्शिता की मांग की।

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निष्पक्ष और योग्यता आधारित हों नियुक्तियां
नेता प्रतिपक्ष सिंघार ने कहा कि आयोग जैसी संवैधानिक संस्था में निष्पक्ष और योग्यता आधारित नियुक्तियां होनी चाहिए, लेकिन सरकार अपने पसंदीदा लोगों को जिम्मेदार पदों पर बैठाना चाहती है। उन्होंने पूछा कि क्या इन पदों के लिए सार्वजनिक रूप से आवेदन आमंत्रित किए गए थे या केवल नामांकन के आधार पर चयन हो रहा है?
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संवैधानिक प्रावधानों की अनदेखी का आरोप
नेता प्रतिपक्ष ने यह भी कहा कि मानव अधिकार आयोग अधिनियम के अनुसार, पद रिक्त होने के तीन माह के भीतर नियुक्ति होना चाहिए, लेकिन बीते कई वर्षों से नियुक्तियों में देरी की जा रही है। उन्होंने यह भी सवाल किया कि जिन व्यक्तियों को नामित किया गया है, उनकी योग्यता और चयन की प्रक्रिया कितनी पारदर्शी रही।
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न्यायिक पद का नाम बदलने पर आपत्ति
उमंग सिंघार ने यह आरोप भी लगाया कि न्यायिक सदस्य के पद का नाम बदलकर 'प्रशासकीय सदस्य' कर दिया गया है ताकि एक विशेष व्यक्ति को पद दिया जा सके। उन्होंने इसे पद के स्वरूप में अनावश्यक फेरबदल बताते हुए संविधान और कानून के विरुद्ध बताया।उन्होंने कहा कि आयोग में नियुक्तियों को लेकर व्यापक सूचना सार्वजनिक नहीं की गई, बल्कि केवल चुनिंदा लोगों को ही जानकारी देकर उनसे आवेदन मंगवाए गए। इस तरह की प्रक्रिया से आम लोगों के अवसरों को सीमित किया गया है। सिंघार ने यह भी पूछा कि आखिर एक ही व्यक्ति को बार-बार अध्यक्ष का प्रभार क्यों सौंपा जा रहा है? उन्होंने इसे एक्ट का उल्लंघन बताते हुए, निष्पक्षता और पारदर्शिता की मांग की।