Narmada Jayanti: नर्मदा नदी को नहर नहीं बनने देंगे, इसकी निर्मलता-पावनता देख मन खुश हो जाता; प्रहलाद सिंह पटेल
Narmada Jayanti: बचपन में जिस नर्मदा को देखकर हम गौरवान्वित होते थे, आज उसी नर्मदा की टूटती धार और मलीनता को देखकर मन व्यथित होता है। प्रदूषण की आंख-मिचौली, बूंद-बूंद दोहन और किनारे के कटते जंगल से आज पतित पावन नर्मदा अशुद्ध हो रही है।
विस्तार
आज नर्मदा जयंती है। हम सब अत्यंत सौभाग्यशाली हैं, जो परम पावनी मां नर्मदा का प्रत्यक्ष दर्शन कर रहे हैं। भगवती नर्मदा के लिए पुराणों में एक शब्द आया है, वो है ‘नर्मदा सरितां वरा’-अर्थात् सरिताओं में नर्मदा सर्वश्रेष्ठ हैं। माता नर्मदा असंख्य विशेषताओं से सम्पन्न हैं। भारत में बहुत सी पवित्र नदियां हैं, लेकिन पुराण तो केवल नर्मदा जी के नाम पर ही (नर्मदा पुराण) है। जिसमें माता नर्मदा के परम पावन चरित्र का वर्णन है और उनके उस दिव्यातिदिव्य चरित्र में अवगाहन करके असंख्य प्राणी भगद्धाम के अधिकारी होते हैं।
यहां एक और बात उल्लेखनीय है कि भारत में किसी भी नदी की परिक्रमा नहीं होती, केवल नर्मदा की ही परिक्रमा होती है। वे लोग सौभाग्यशाली हैं, जिन्होंने नियम पूर्वक मां नर्मदा की परिक्रमा की है।
पुराणों में इस बात को लिखा गया है कि सरस्वती तीन दिन में, यमुना एक सप्ताह में, गंगा तत्काल पवित्र करती हैं, लेकिन मां नर्मदा तो दर्शन मात्र से मानव जीवन को पवित्र कर देती हैं। ऐसे में आज मां नर्मदा जयंती पर हम संकल्प लें कि नदी को नहर न बनने देंगे।
मैं अपने बाल्य काल से ही नर्मदा को देखते आ रहा हूं। बचपन में जब भी मैं नर्मदा को देखता था, उसके जल की निर्मलता, पावनता और प्रवाह देखकर मन प्रफुल्लित हो उठता था। लेकिन विकास के क्रम में नर्मदा की निर्मलता शहरों के अपशिष्ट से कम होने लगी है। बचपन में जिस नर्मदा को देखकर हम गौरवान्वित होते थे, आज उसी नर्मदा की टूटती धार और मलीनता को देखकर मन व्यथित होता है। प्रदूषण की आंख-मिचौली, बूंद-बूंद दोहन और किनारे के कटते जंगल से आज पतित पावन नर्मदा अशुद्ध हो रही है। नर्मदा नदी भारतवर्ष की प्रमुख सरिताओं में से एक है।
अनूपपुर जिले में मेंकल पर्वत-मालाओं से आच्छादित अमरकंटक नर्मदा का उद्गम स्थल है। नर्मदा मप्र में 1077 किलोमीटर, महाराष्ट्र में 32 किलोमीटर, महाराष्ट्र-गुजरात में 42 किलोमीटर एवं गुजरात में 161 किलोमीटर प्रवाहित होकर कुल 1312 किलोमीटर पश्चात् अंतत: गुजरात में भडूच के निकट खम्भात की खाड़ी के अरब सागर में समाहित होती है। मुड़ती-उमड़ती नर्मदा जैसे-जैसे अमरकंटक से आगे बढ़ती है, इसके दोहन की योजनाएं भी साथ-साथ बनती चलती हैं।
मध्य भारत को अन्न-धन से परिपूर्ण बनाने वाली इस सदानीरा पर आबादी का बोझ पिछली एक शताब्दी में काफी बढ़ गया है। नर्मदा और इसकी सहायक नदियों पर दोहन और प्रदूषण का बोझ भी इतना ही बढ़ गया है। नर्मदा किनारे के छोटे-बड़े 52 शहरों की गंदगी नर्मदा में गिरती है। नर्मदा की निर्मल-अविरल छवि पर तरह-तरह के खतरे भी इसके साथ-साथ आगे बढ़ते हैं। हर 100-50 किलोमीटर की दूरी एक नई समस्या और उससे निपटने के उपाय सामने आते हैं। लेकिन प्रभावी ढंग से इनका असर होता दिखाई नहीं दे रहा है।
ताज्जुब की बात है कि जिस आबादी का अपशिष्ट ढोने के लिए नर्मदा अभिशप्त है। वे सभी शहर पेयजल के लिए भी नर्मदा पर ही निर्भर हैं। राजस्थान में बाड़मेर से लेकर गुजरात में सौराष्ट्र और मध्य प्रदेश के 35 शहरों और उद्योगों की प्यास बुझाने का जिम्मा नर्मदा पर है। परंपरागत तौर पर नर्मदा कछार जल प्रबंधन की स्थानीय प्रणालियों के लिए जानी जाती है। लेकिन अब यहां जलापूर्ति की केंद्रीकृत व्यवस्था पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
इंदौर, भोपाल समेत मध्य प्रदेश के 18 शहरों को नर्मदा का पानी दिया जा रहा है। दोहन का यह दबाव नर्मदा की हर बूंद निगल लेना चाहता है। नर्मदा अपने किनारे ही नहीं, बल्कि दूर-दराज के इलाकों के लिए भी जीवन दायिनी बनी हुई है। लेकिन विडंबना यह है कि नर्मदा जयंती पर मां की पूजा-अर्चना और अन्य धार्मिक अवसरों पर ध्यान स्नान कर हम पुण्य लाभ प्राप्त करने की मनोकामना तो रखते हैं, लेकिन नदी पर मंडरा रहे संकट के बारे में कम ही सोचते हैं।
मेरी आप लोगों से यही विनती है कि इस बार नर्मदा जयंती पर हम सामूहिकता के साथ संकल्प लें कि मां नर्मदा के संरक्षण, सफाई, सुरक्षा और पवित्रता पर ध्यान देंगे। हम सभी जानते हैं कि गंगा-यमुना की तरह नर्मदा ग्लेशियर से निकली नदी नहीं है। यह मुख्य रूप से मानसूनी वर्षा और अपनी सहायक नदियों के जल पर निर्भर है।
ये सहायक नदियां ही सतपुड़ा, विन्ध और मैकल पर्वतों से बूंद-बूंद पानी लाकर नर्मदा को सदानीरा बनाती हैं। लेकिन इनमें से कई नदियां सूखने के कगार पर हैं या फिर शहरों के आसपास नालों में तब्दील हो रही हैं।
नर्मदा घाटी में बॉक्साइट जैसे खनिजों की मौजूदगी भी पर्यावरण से जुड़े कई संकटों की वजह बनी है। नर्मदा के उद्गम वाले क्षेत्रों में 1975 में बॉक्साइट का खनन शुरू हुआ था, जिसके कारण वनों की अंधाधुंध कटाई हुई। हालांकि, बाद में वहां बॉक्साइट के खनन पर काफी हद तक अंकुश लगा। लेकिन तब तक पर्यावरण को काफी क्षति पहुंच चुकी थी।
अब ऐसा ही खतरा नर्मदा नदी में रेत के खनन से उत्पन्न हो रहा है। हालांकि सरकार अपनी ओर से पूरी कोशिश कर रही है कि नर्मदा को निर्मल और सदानीरा बनाया जाए। लेकिन सरकार की अकेले की कोशिश तभी कामयाब होगी, जब आप लोग तन-मन और धन के साथ इस अभियान में जुड़ेंगे।
मुझे पूरी उम्मीद है कि इस नर्मदा जयंती पर आप सभी नर्मदा के संरक्षण के लिए संकल्प लेंगे और अपने संकल्प को पूरा करने के अभियान में जुटेंगे। मैं आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि स्वयं और सरकार को भी इस मुहिम में जोड़ने की भरपूर कोशिश करूंगा।
नर्मदे हर...
लेखक मध्य प्रदेश शासन में पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री हैं