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MP News: मध्य प्रदेश सरकार को माफ करने पर सुप्रीम कोर्ट ने एमपी हाईकोर्ट के प्रति जताई नाराजगी, जानें मामला

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, भोपाल Published by: दिनेश शर्मा Updated Mon, 15 Dec 2025 10:54 PM IST
सार

सुप्रीम कोर्ट ने 1612 दिन की देरी माफ करने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट पर नाराजगी जताई। कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने बिना ठोस कारण पूछे देरी माफ की और पूर्व फैसलों की अनदेखी की। आदेश पर रोक लगाकर मामले पर दोबारा सुनवाई के निर्देश दिए।

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The Supreme Court expressed displeasure with the MP High Court for pardoning the Madhya Pradesh government.
सुप्रीम कोर्ट - फोटो : पीटीआई
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विस्तार
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एक दीवानी मामले में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा याचिका दायर करने में 1612 दिनों की रिकॉर्ड देरी के लिए माफ करने पर  सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के प्रति नाराजगी जताई है। शीर्ष कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले दिए गए फैसलों को नजरअंदाज कर दिया। 
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और पीबी वराले की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने एक सितंबर को मध्य प्रदेश सरकार को बिना पूछे ही देरी के लिए माफ कर दिया। शीर्ष अदालत ने पांच दिसंबर के अपने आदेश में कहा कि विवादित आदेश के लहजे से हमें यह कहते हुए खेद है कि हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से देरी का कारण पूछे बिना सिर्फ कहने मात्र से 1,612 दिनों की देरी के लिए उसे माफ कर दिया। अपने पूर्ववर्ती आदेशों का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समय सीमा और देरी के मामलों में उसके पूर्व के फैसलों को हाईकोर्ट को ध्यान में रखना चाहिए था। 
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सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट से पूछा कि क्या उसे समय सीमा और देरी के मामलों में केंद्र सरकार बनाम जहांगीर बीरमजी जीजीभाई, स्व. शिवम्मा बनाम कर्नाटक हाउसिंग बोर्ड व अन्य के मामलों की जानकारी है? हाल ही में शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि देरी के मामलों में क्षमा याचिका पर विचार करते हुए किन पर्याप्त कारणों पर विचार किया जाना चाहिए। 

कोविड-19 के कारण देरी हुई
मध्य प्रदेश सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान पेश अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि उक्त मामले में देरी कोविड-19 महामारी की वजह से हुई। इस पर सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने 1 सितंबर के अपने आदेश में इस कारण का जिक्र नहीं किया है। ऐसी परिस्थितियों में हम हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हैं और संबंधित मामले में क्षमा याचिका पर नए सिरे से विचार करने का निर्देश देते हैं। हाईकोर्ट को मामले के संबंधित पक्षों को एक बार फिर से सुनना चाहिए और कानून के मुताबिक ताजा आदेश करना होगा। इसके साथ ही शीर्ष कोर्ट ने मामले का निपटारा कर दिया।
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