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Damoh News: छात्रावास में 46 लाख का खरीदी घोटाला, डिप्टी कलेक्टर सहित दो अधिकारी निलंबित
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, दमोह
Published by: दमोह ब्यूरो
Updated Fri, 05 Dec 2025 08:50 AM IST
सार
एडीएम मीना मसराम की जांच में नियम-विरुद्ध भुगतान, रिकॉर्ड में हेरफेर और कथित कमीशन के लेनदेन के प्रमाण मिले। कलेक्टर ने इस पर कठोर अनुशासनात्मक कार्रवाई की सिफारिश की, जिसके बाद निलंबन आदेश जारी हुए।
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दमोह कलेक्ट्रेट।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
दमोह जिले के आदिम जाति कल्याण विभाग में एससी वर्ग के छात्रावासों के लिए करीब 46 लाख रुपये की खरीदी में उजागर हुई। अनियमितताओं के मामले में सागर संभागायुक्त अनिल सुचारी ने बड़ी कार्रवाई की है। उन्होंने दमोह कलेक्टर के प्रतिवेदन पर डिप्टी कलेक्टर बृजेंद्र सिंह, आदिम जाति कल्याण विभाग की तत्कालीन जिला संयोजक रिया जैन और विभाग के लेखापाल महेंद्र अहिरवार को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है।
इन अधिकारियों ने असली सामग्री के नाम पर राशि खर्च कर दी और हॉस्टलों में नकली और घटिया सामग्री की खरीदी कराकर भिजवा दी। यह गड़बड़ी एडीएम की जांच में प्रक्रिया के दौरान गंभीर गड़बड़ी, नियम-विरुद्ध भुगतान और रिकॉर्ड में हेराफेरी स्पष्ट रूप से प्रमाणित हुई थी। फिलहाल इस मामले में क्रय समिति में शामिल जिला पंचायत सीईओ, अतिरिक्त महाप्रबंधक जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र, जिला सूचना विज्ञान अधिकारी राष्ट्रीय सूचना केंद्र और जिला कोषालय अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि खरीदी के लिए इसी समिति ने स्वीकृति दी थी।
दरअसल मामला वर्ष 2024-25 में एससी छात्रावासों के लिए की गई सामग्री खरीदी से जुड़ा है। विभाग ने जेम पोर्टल के माध्यम से घटिया क्वालिटी के किट, स्टेशनरी, बर्तन,
गर्म कपड़े और दैनिक उपयोग की सामग्री खरीदी थी। जांच में सामने आया कि खरीदी में शामिल अधिकारियों ने मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार कर सामान की वास्तविक मात्रा और गुणवत्ता का सत्यापन किए बिना भुगतान जारी कर दिया। जिन वस्तुओं के बिल विभाग को प्रस्तुत किए गए, उनमें कई वस्तुओं की आपूर्ति वास्तविकता में छात्रावासों तक पहुंची ही नहीं। इसमें खरीदी करने की अनुमति से लेकर सप्लाई करने वालों के बीच में कमीशन का खेल चला।
ये भी पढ़ें- आईएएस अधिकारी संतोष वर्मा के बयान पर अदालत ने पुलिस से रिपोर्ट मांगी, 20 जनवरी तक पेश करने के निर्देश
कलेक्टर ने इन गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए एडीएम मीना मसराम के नेतृत्व में विस्तृत जांच कराई। जांच रिपोर्ट में यह पाया गया कि खरीदी की पूरी प्रक्रिया डिप्टी कलेक्टर की निगरानी में संचालित हुई, जबकि जिला संयोजक स्तर पर सत्यापन और प्रमाणीकरण की जिम्मेदारी थी, जिसे निभाया नहीं गया। लेखापाल महेंद्र अहिरवार ने भुगतान किया था।
रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने सागर संभागायुक्त को प्रतिवेदन भेजते हुए कहा कि तीनों अधिकारियों की भूमिका घोटाले में सीधे तौर पर जिम्मेदार पाई गई है और उनके विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बाद कमिश्नर ने सभी तीनों अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए आगे विभागीय जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। कलेक्टर सुधीर कोचर ने बताया कि मामले के प्रस्ताव अलग अलग भेजे गए थे। जिनके आधार पर यह कार्रवाई हुई है। इस मामले में अभी और कार्रवाई भी होगी।
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इन अधिकारियों ने असली सामग्री के नाम पर राशि खर्च कर दी और हॉस्टलों में नकली और घटिया सामग्री की खरीदी कराकर भिजवा दी। यह गड़बड़ी एडीएम की जांच में प्रक्रिया के दौरान गंभीर गड़बड़ी, नियम-विरुद्ध भुगतान और रिकॉर्ड में हेराफेरी स्पष्ट रूप से प्रमाणित हुई थी। फिलहाल इस मामले में क्रय समिति में शामिल जिला पंचायत सीईओ, अतिरिक्त महाप्रबंधक जिला उद्योग एवं व्यापार केंद्र, जिला सूचना विज्ञान अधिकारी राष्ट्रीय सूचना केंद्र और जिला कोषालय अधिकारी पर कार्रवाई नहीं हुई है, जबकि खरीदी के लिए इसी समिति ने स्वीकृति दी थी।
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दरअसल मामला वर्ष 2024-25 में एससी छात्रावासों के लिए की गई सामग्री खरीदी से जुड़ा है। विभाग ने जेम पोर्टल के माध्यम से घटिया क्वालिटी के किट, स्टेशनरी, बर्तन,
गर्म कपड़े और दैनिक उपयोग की सामग्री खरीदी थी। जांच में सामने आया कि खरीदी में शामिल अधिकारियों ने मूल्यांकन प्रक्रिया को दरकिनार कर सामान की वास्तविक मात्रा और गुणवत्ता का सत्यापन किए बिना भुगतान जारी कर दिया। जिन वस्तुओं के बिल विभाग को प्रस्तुत किए गए, उनमें कई वस्तुओं की आपूर्ति वास्तविकता में छात्रावासों तक पहुंची ही नहीं। इसमें खरीदी करने की अनुमति से लेकर सप्लाई करने वालों के बीच में कमीशन का खेल चला।
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कलेक्टर ने इन गंभीर अनियमितताओं को देखते हुए एडीएम मीना मसराम के नेतृत्व में विस्तृत जांच कराई। जांच रिपोर्ट में यह पाया गया कि खरीदी की पूरी प्रक्रिया डिप्टी कलेक्टर की निगरानी में संचालित हुई, जबकि जिला संयोजक स्तर पर सत्यापन और प्रमाणीकरण की जिम्मेदारी थी, जिसे निभाया नहीं गया। लेखापाल महेंद्र अहिरवार ने भुगतान किया था।
रिपोर्ट के आधार पर कलेक्टर ने सागर संभागायुक्त को प्रतिवेदन भेजते हुए कहा कि तीनों अधिकारियों की भूमिका घोटाले में सीधे तौर पर जिम्मेदार पाई गई है और उनके विरुद्ध कड़ी अनुशासनात्मक कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके बाद कमिश्नर ने सभी तीनों अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करते हुए आगे विभागीय जांच के आदेश जारी कर दिए हैं। कलेक्टर सुधीर कोचर ने बताया कि मामले के प्रस्ताव अलग अलग भेजे गए थे। जिनके आधार पर यह कार्रवाई हुई है। इस मामले में अभी और कार्रवाई भी होगी।
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