कमलनाथ सरकार को 10 दिन की संजीवनी, बड़ा सवाल- अब आगे क्या होगा?
16 मार्च को मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र राज्यपाल के अभिभाषण के साथ शुरू हुआ। हालांकि अभिभाषण नाम मात्र का था। इसके बाद सदन को 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया गया। विधानसभा अध्यक्ष ने कोरोना संक्रमण से बचाव की बात कहकर सदन को दस दिन के लिए स्थगित कर दिया है। हालांकि इससे मध्यप्रदेश का राजनीतिक संकट समाप्त नहीं हुआ है।
कांग्रेस का बागी गुट जो इस समय कर्नाटक में है, वो सदन की कार्यवाही में शामिल नहीं हुआ था। लेकिन भाजपा विधायकों का वो गुट जो पिछले कुछ दिनों से गुरुग्राम के होटल में था, वो सदन में मौजूद था। कांग्रेस के 80 से ज्यादा विधायक भी जयपुर से वापस लौट आए थे।
शनिवार को विधानसभा अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने कांग्रेस के छह बागी विधायकों के इस्तीफे स्वीकार कर लिए थे। यह सभी विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक माने जाते हैं। शेष 16 बागी विधायक भी अध्यक्ष से इस्तीफा स्वीकार करने की मांग कर चुके हैं।
राज्यपाल लालजी टंडन ने मुख्यमंत्री कमलनाथ को पत्र लिखकर 16 मार्च को अभिभाषण के बाद शक्ति परीक्षण कराने के लिए कहा था। हालांकि अध्यक्ष ने सदन को दस दिन के लिए स्थगित कर दिया है।
कानूनी पेचीदगियों में उलझी सरकार
फिलहाल मध्यप्रदेश सरकार अपने ही विधायकों की बगावत से कानूनी पेचीदगियों में उलझ गई है। सरकार और अध्यक्ष उन्हें विधानसभा में उपस्थित होने के लिए मजबूर नहीं कर पाए। ऐसा संभव भी नहीं था क्योंकि ऐसा करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। जुलाई 2019 में जब कर्नाटक में ऐसी स्थिति बनी थी, तब तत्कालीन राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी, लेकिन अदालत ने कह दिया कि मौजूदा कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
विधानसभा अध्यक्ष के पास अब क्या विकल्प हैं
कांग्रेस के जिन 16 विधायकों ने दोबारा अपने इस्तीफे भेजे हैं, उन पर अध्यक्ष नर्मदा प्रसाद प्रजापति को ही फैसला लेना है। कर्नाटक के प्रतापगौड़ा पाटिल बनाम कर्नाटक सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि इस्तीफा दिए जाने के सात दिन के अंदर अध्यक्ष उनकी वैधता जांचें, यदि वे सही हों तो मंजूर करें, अन्यथा खारिज भी कर सकते हैं।
अगर शेष 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हो जाएं तो क्या होगा
यदि कांग्रेस के बकाया 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो उनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी और इसी के साथ विधानसभा में कांग्रेस के विधायकों की संख्या बहुमत से कम हो जाएगी। अगर ऐसा होता है तो कांग्रेस के विधायकों की संख्या 92 रह जाएगी। 230 सदस्यों वाली मध्यप्रदेश विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 116 का है। छह विधायकों के इस्तीफे के बाद आंकड़ा घटकर 112 रह गया है। यदि 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तब यह आंकड़ा 104 का हो जाएगा।
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि वर्तमान सदन में भारतीय जनता पार्टी के विधायकों की संख्या 107 है। इसका अर्थ यह है कि यदि कांग्रेस के 16 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार हुए तो कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ जाएगी और सत्ता भाजपा के हाथ में चली जाएगी।
यदि इस्तीफा स्वीकार नहीं करेंगे तो क्या होगा
यदि विधानसभा अध्यक्ष चाहें तो कांग्रेस के बागी विधायकों का इस्तीफा स्वीकार न करते हुए उन्हें अयोग्य ठहरा सकते हैं। लेकिन यह अयोग्यता छह महीने से ज्यादा वक्त के लिए लागू नहीं होगी। कर्नाटक के 17 बागी विधायकों के मामले में अयोग्य ठहराए जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बहुमत परीक्षण में शामिल होने की छूट दे दी थी। वह आदेश मप्र की परिस्थितियों पर भी लागू हो सकता है। इस तरह अध्यक्ष के द्वारा इस्तीफा स्वीकार करना या न करना, कोई महत्व नहीं रखता है।
कांग्रेस अदालत गई तो क्या होगा
यदि कांग्रेस पार्टी अपने विधायकों के अपहरण का आरोप लगाकर कानून का दरवाजा खटखटाती है तो हैबियस कॉर्पस के तहत केस दर्ज होगा। विधायकों के कोर्ट में हाजिर होने पर ही केस खारिज होगा लेकिन कोर्ट से उन्हें सदन में हाजिर कराने के लिए फिर भी बाध्य नहीं किया जा सकेगा।
क्या राज्यपाल लालजी टंडन विधानसभा भंग कर सकते हैं
यदि राज्यपाल इस बात से सहमत हो जाएं कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बन गई है, तो वे विधानसभा भंग कर सकते हैं। या फिर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होने की संभावना कम है।