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मध्यप्रदेश संकट: बागी विधायकों ने किस तरह बिगाड़ा कमलनाथ का खेल, समझें
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: Amit Mandal
Updated Fri, 20 Mar 2020 07:11 AM IST
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कमलनाथ-दिग्विजय सिंह (फाइल फोटो)
- फोटो : PTI
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मध्यप्रदेश का सियासी संकट अब अपने अंतिम दौर में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आज फैसला सुना दिया कि शुक्रवार शाम पांच बजे तक बहुमत परीक्षण करवा लिया जाए। आइए समझते हैं कि इस वक्त विधानसभा का क्या है आंकड़ा और बागी विधायकों ने किस तरह कमलनाथ का खेल बिगाड़ा है।
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- छह विधायकों के इस्तीफा मंजूर किए जा चुके हैं। 16 बागी विधायक भी स्पीकर से इस्तीफा स्वीकार करने की मांग कर चुके हैं। भारतीय जनता पार्टी की मांग पर शक्ति परीक्षण की मांग मानी जा चुकी है।
- दरअसल, मध्य प्रदेश सरकार अपने ही विधायकों की बगावत से कानूनी पेचीदगियों में उलझ गई है। सरकार और स्पीकर उन्हें विधानसभा में उपस्थित होने के लिए मजबूर भी नहीं कर पाए, क्योंकि ऐसी स्थिति का सामना करने के लिए कोई कानूनी प्रावधान ही नहीं है। जुलाई 2019 में जब कर्नाटक में ऐसी स्थिति बनी थी, तब सरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मांग लेकर गई, लेकिन कोर्ट ने कह दिया कि मौजूदा कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।
- जिन 16 विधायकों ने दोबारा इस्तीफे दिए हैं, उन पर स्पीकर को ही फैसला लेना है। प्रताप गौड़ा पाटिल बनाम कर्नाटक सरकार केस में सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि इस्तीफा दिए जाने के 7 दिन के अंदर स्पीकर उनकी वैधता जांचें, यदि वे सही हों तो मंजूर करें, अन्यथा खारिज कर सकते हैं।
- यदि इनके इस्तीफे स्वीकार हो जाते हैं तो 16 विधायकों की सदस्यता चली जाएगी। छह के इस्तीफे स्वीकार किए जा चुके हैं। ऐसा होता है तो कांग्रेस सरकार में शामिल विधायकों की संख्या 115 (कुल 121 विधायक) से गिरकर 99 पर आ जाएगी। सदन की संख्या 206 और बहुमत का आंकड़ा 104 पर आ जाएगा। इस तरह कांग्रेस की सरकार गिर जाएगी। इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों की सीट पर उपचुनाव होंगे। तब तक भारतीय जनता पार्टी की सरकार रहेगी।
- यदि स्पीकर इस्तीफा स्वीकार नहीं करते हैं तब सदस्यों को अयोग्य ठहरा सकते हैं, लेकिन यह अयोग्यता 6 महीने से ज्यादा वक्त के लिए लागू नहीं होगी। कर्नाटक के 17 बागी विधायकों के केस में अयोग्य ठहराए जाने के बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चुनाव लड़ने की छूट दे दी थी। वह आदेश मप्र की परिस्थितियों पर भी लागू होगा। इस तरह स्पीकर के द्वारा इस्तीफा स्वीकार करना या न करना, कोई महत्व नहीं रखता।
- पार्टी ने व्हिप जारी कर विधायकों को सदन में हाजिर होने को कह दिया। यदि वे फिर भी नहीं आते तो ऐसे में पार्टी उन्हें निष्कासित कर सकती है, तो उनकी सदस्यता बच सकती है। यानी 16 विधायक निर्दलीय हो जाएंगे। (22 में से 6 विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जा चुके हैं। इसलिए अब सिर्फ 16 विधायक बचे हैं।)
- राज्यपाल इस बात से सहमत हो जाएं कि प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता की स्थिति बन गई है, तो वे विधानसभा भंग कर सकते हैं या राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं। लेकिन ऐसा होने की संभावना कम है।
- स्पीकर विधानसभा भंग नहीं कर सकते लेकिन राज्यपाल को इसकी सिफारिश जरूर भेज सकते हैं। सिफारिश को मानना या न मानना राज्यपाल के विवेक पर निर्भर करेगा।
- 22 विधायकों के इस्तीफे मंजूर होने के बाद कांग्रेस के बाकी विधायक प्रजातंत्र की हत्या का आरोप लगाकर सामूहिक रूप से इस्तीफा दे दें और स्पीकर इन्हें मंजूर कर ले, तो सदन की सदस्य संख्या आधी रह जाएगी। ऐसे में यदि स्पीकर विधानसभा भंग करने की सिफारिश राज्यपाल को करे तो राज्यपाल उसे मान सकते हैं या रिक्त सीटों पर उपचुनाव की सिफारिश चुनाव आयोग से कर सकता है।
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