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बूचड़खाने का विरोध: यदि बना तो हर दिन कटेंगी 1000 भैंस व 5000 बकरा-बकरियां, सीहोर में ग्रामीणों ने खोला मोर्चा
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सीहोर
Published by: तरुणेंद्र चतुर्वेदी
Updated Wed, 03 Dec 2025 09:27 AM IST
सार
ये बूचड़खाना हम नहीं बनने देंगे। यदि इसका निर्माण हमारे गांव में हुआ तो यहां हर दिन 1000 भैंसे और 5000 बकरा-बकरियां कटेंगी। यह निर्माण गांव की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भावनाओं के खिलाफ है। ऐसा कहना है दोराहा क्षेत्र के लोगों का।
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बूचड़खाने को लेकर ज्ञापन सौंपते हुए ग्रामीण।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
सीहोर जिले के दोराहा क्षेत्र के ग्राम सतपोन में एक बड़े बूचड़खाने के निर्माण की खबर सामने आते ही पूरे इलाके में गुस्से की लहर दौड़ गई। ग्रामीणों का आरोप है कि प्रतिदिन 1000 भैंसें और 5000 तक बकरा-बकरियां काटे जाने की तैयारी चल रही है। यह निर्माण गांव की धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक भावनाओं के खिलाफ बताया जा रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि बिना अनुमति के, धोखे से और गुप्त तरीके से निर्माण का कार्य किया जा रहा है।
कलेक्ट्रेट पर नारेबाज़ी, पांच दिन का अल्टीमेटम
मंगलवार को हजारों ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे और जोरदार नारेबाजी करते हुए बूचड़खाने को तत्काल बंद करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों में जिला सरपंच संघ के जिलाध्यक्ष एलम सिंह दांगी, भाजपा मंडल अध्यक्ष सुरेश विश्वकर्मा सहित कई जनप्रतिनिधि मौजूद रहे। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि पांच दिनों में निर्माण नहीं रोका गया तो हजारों लोग सड़क पर उतरकर उग्र आंदोलन करेंगे।
ग्रामीणों का आरोप-धोखे से ली गई अनुमति
ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के नाम दिए ज्ञापन में बड़ा आरोप लगाया कि कंपनी एस.ए.जी फूड्स एक्सपोर्ट प्रा. लि. ने पंजीयन और अनुमतियों में भारी फर्जीवाड़ा किया है। फल-सब्जी संरक्षण यूनिट बताकर अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया, लेकिन वास्तविकता में बूचड़खाना बनाया जा रहा है। ग्राम सभा ने धोखे का पता लगने पर पूर्व अनुमति को रद्द कर दिया है, इसके बावजूद निर्माण जारी है। ग्रामीणों ने इसे कानून और पंचायत अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया।
प्रदूषण, बदबू और बीमारियों का डर सताने लगा
ग्रामीणों ने कहा कि रोजाना सैकड़ों जानवर काटे जाने से खून, चमड़ा और हड्डियों का भारी कचरा निकलेगा, जिससे हवा और पानी दूषित होगा। बदबू असहनीय होगी और बच्चों-बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य संकट पैदा होगा। पशु-अपशिष्ट के कारण गंभीर महामारी फैलने की आशंका जताई गई। ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने परिवार-बच्चों को बीमारियों की आग में नहीं झोंक सकते।
सामाजिक माहौल पर खतरे की आशंका
ग्रामीणों के अनुसार बूचड़खाना केवल स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि सामाजिक तनाव और अशांति का कारण भी बन सकता है। धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में ऐसे बड़े बूचड़खाने का निर्माण गांव में वैमनस्य, विवाद और संघर्ष को जन्म देगा। लोगों ने कहा कि आज जब पूरा देश शांति की राह पर है, तब सीहोर में ऐसे निर्माण की अनुमति देना समाज के बीच खाई पैदा करने जैसा है।
ये भी पढ़ें- MP Weather Today: मध्य प्रदेश में ठिठुरन का दौर, 5 दिसंबर से नया सिस्टम होगा एक्टिव, टूटेंगे रिकॉर्ड
यह लड़ाई जमीन, गांव और आने वाली पीढ़ियों की है
ग्रामीणों ने कहा कि गांव की संस्कृति, पर्यावरण और सुरक्षा बचाने के लिए वे किसी भी स्तर तक संघर्ष करेंगे। उन्होंने दो टूक कहा कि यह जमीन सिर्फ खेतों की नहीं, हमारी आस्था की है… बूचड़खाना नहीं बनने देंगे, चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती सामने आए।
अंत में ग्रामीणों ने अनुरोध किया कि प्रशासन तत्काल निर्माण रोककर जांच कराए, अन्यथा आंदोलन की ज़िम्मेदारी प्रशासन पर होगी।
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मंगलवार को हजारों ग्रामीण कलेक्ट्रेट पहुंचे और जोरदार नारेबाजी करते हुए बूचड़खाने को तत्काल बंद करने की मांग की। प्रदर्शनकारियों में जिला सरपंच संघ के जिलाध्यक्ष एलम सिंह दांगी, भाजपा मंडल अध्यक्ष सुरेश विश्वकर्मा सहित कई जनप्रतिनिधि मौजूद रहे। ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि पांच दिनों में निर्माण नहीं रोका गया तो हजारों लोग सड़क पर उतरकर उग्र आंदोलन करेंगे।
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ग्रामीणों का आरोप-धोखे से ली गई अनुमति
ग्रामीणों ने मुख्यमंत्री के नाम दिए ज्ञापन में बड़ा आरोप लगाया कि कंपनी एस.ए.जी फूड्स एक्सपोर्ट प्रा. लि. ने पंजीयन और अनुमतियों में भारी फर्जीवाड़ा किया है। फल-सब्जी संरक्षण यूनिट बताकर अनापत्ति प्रमाण पत्र लिया, लेकिन वास्तविकता में बूचड़खाना बनाया जा रहा है। ग्राम सभा ने धोखे का पता लगने पर पूर्व अनुमति को रद्द कर दिया है, इसके बावजूद निर्माण जारी है। ग्रामीणों ने इसे कानून और पंचायत अधिकारों का खुला उल्लंघन बताया।
प्रदूषण, बदबू और बीमारियों का डर सताने लगा
ग्रामीणों ने कहा कि रोजाना सैकड़ों जानवर काटे जाने से खून, चमड़ा और हड्डियों का भारी कचरा निकलेगा, जिससे हवा और पानी दूषित होगा। बदबू असहनीय होगी और बच्चों-बुजुर्गों के लिए स्वास्थ्य संकट पैदा होगा। पशु-अपशिष्ट के कारण गंभीर महामारी फैलने की आशंका जताई गई। ग्रामीणों का कहना है कि हम अपने परिवार-बच्चों को बीमारियों की आग में नहीं झोंक सकते।
सामाजिक माहौल पर खतरे की आशंका
ग्रामीणों के अनुसार बूचड़खाना केवल स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि सामाजिक तनाव और अशांति का कारण भी बन सकता है। धार्मिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में ऐसे बड़े बूचड़खाने का निर्माण गांव में वैमनस्य, विवाद और संघर्ष को जन्म देगा। लोगों ने कहा कि आज जब पूरा देश शांति की राह पर है, तब सीहोर में ऐसे निर्माण की अनुमति देना समाज के बीच खाई पैदा करने जैसा है।
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यह लड़ाई जमीन, गांव और आने वाली पीढ़ियों की है
ग्रामीणों ने कहा कि गांव की संस्कृति, पर्यावरण और सुरक्षा बचाने के लिए वे किसी भी स्तर तक संघर्ष करेंगे। उन्होंने दो टूक कहा कि यह जमीन सिर्फ खेतों की नहीं, हमारी आस्था की है… बूचड़खाना नहीं बनने देंगे, चाहे कितनी भी बड़ी चुनौती सामने आए।
अंत में ग्रामीणों ने अनुरोध किया कि प्रशासन तत्काल निर्माण रोककर जांच कराए, अन्यथा आंदोलन की ज़िम्मेदारी प्रशासन पर होगी।