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MP News: विवादास्पद बयान मामले में पंडित धीरेन्द्र शास्त्री को राहत, दायर परिवाद न्यायालय ने किया निरस्त
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, शहडोल
Published by: शहडोल ब्यूरो
Updated Sun, 12 Oct 2025 10:57 AM IST
सार
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कहा कि आरोपों का कोई ठोस आधार नहीं है और बयान में किसी प्रकार की भड़काऊ या आपत्तिजनक मंशा नहीं पाई गई, इसलिए परिवाद निरस्त किया जाता है।
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पंडित धीरेंद्र शास्त्री।
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
न्यायालय न्यायिक मजिस्ट्रेट सीताशरण यादव ने बागेश्वर धाम के प्रसिद्ध पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री के खिलाफ प्रस्तुत परिवाद को निरस्त कर दिया। यह निर्णय उस समय आया जब पंडित शास्त्री के एक विवादास्पद बयान को लेकर एक अधिवक्ता द्वारा आरोप लगाया गया था कि उनके शब्दों से एक नागरिक वर्ग को आहत किया गया है।
परिवाद की शुरुआत तब हुई जब पंडित शास्त्री ने प्रयागराज महाकुंभ के दौरान एक सार्वजनिक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि जो महाकुंभ में नहीं आएगा, वह पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा। इस बयान को लेकर अधिवक्ता संदीप तिवारी ने न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने इसे असंवैधानिक और भड़काऊ करार दिया।
परिवाद में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे, जिसमें 196, 197(2), 299, 352, 353 और आईटी एक्ट की धारा 66ए, 67 शामिल थीं। तिवारी का कहना था कि पंडित शास्त्री के बयान से उनके मुवक्किल को मानसिक और भावनात्मक आघात पहुंचा है।
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पंडित शास्त्री की ओर से पेश हुए अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने न्यायालय में तर्क प्रस्तुत किया कि पंडित शास्त्री द्वारा कहे गए शब्द किसी भी तरह से भड़काऊ या अमर्यादित नहीं थे। उनका कहना था, इतना स्पष्ट है कि पंडित शास्त्री का बयान किसी को उकसाने, अपमानित करने या दुष्प्रेरित करने के उद्देश्य से नहीं था। उनका बयान एक धार्मिक समारोह का हिस्सा था और इसे ऐसे नहीं लिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद पाया कि प्रस्तुत परिवाद में कोई ठोस आधार नहीं है। न्यायालय ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा, प्रस्तुत बयान से यह प्रमाणित नहीं होता कि पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने किसी वर्ग, सम्प्रदाय या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया है।और परिवाद को किया निरस्त कर दिया है।
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परिवाद की शुरुआत तब हुई जब पंडित शास्त्री ने प्रयागराज महाकुंभ के दौरान एक सार्वजनिक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि जो महाकुंभ में नहीं आएगा, वह पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा। इस बयान को लेकर अधिवक्ता संदीप तिवारी ने न्यायालय में परिवाद प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने इसे असंवैधानिक और भड़काऊ करार दिया।
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परिवाद में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे, जिसमें 196, 197(2), 299, 352, 353 और आईटी एक्ट की धारा 66ए, 67 शामिल थीं। तिवारी का कहना था कि पंडित शास्त्री के बयान से उनके मुवक्किल को मानसिक और भावनात्मक आघात पहुंचा है।
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पंडित शास्त्री की ओर से पेश हुए अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने न्यायालय में तर्क प्रस्तुत किया कि पंडित शास्त्री द्वारा कहे गए शब्द किसी भी तरह से भड़काऊ या अमर्यादित नहीं थे। उनका कहना था, इतना स्पष्ट है कि पंडित शास्त्री का बयान किसी को उकसाने, अपमानित करने या दुष्प्रेरित करने के उद्देश्य से नहीं था। उनका बयान एक धार्मिक समारोह का हिस्सा था और इसे ऐसे नहीं लिया जाना चाहिए।
न्यायालय ने दोनों पक्षों के तर्क सुनने के बाद पाया कि प्रस्तुत परिवाद में कोई ठोस आधार नहीं है। न्यायालय ने यह निर्णय सुनाते हुए कहा, प्रस्तुत बयान से यह प्रमाणित नहीं होता कि पंडित धीरेन्द्र शास्त्री ने किसी वर्ग, सम्प्रदाय या व्यक्ति की भावनाओं को आहत करने का प्रयास किया है।और परिवाद को किया निरस्त कर दिया है।