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Tikamgarh News: बेरोजगार इंजीनियर भाई और बीएससी बहन ने लगाया समोसे का ठेला, स्टॉल का नाम रखा 'बीई समोसा'
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, टीकमगढ़
Published by: दिनेश शर्मा
Updated Mon, 30 Dec 2024 08:18 PM IST
सार
रोजगार की तलाश में असफल होने के बाद युवक आदर्श और उनकी बड़ी बहन (बीएससी) ने मिलकर टीकमगढ़ में समोसे और पानी पुरी की दुकान लगाने का फैसला किया। वे सिविल लाइन में उमा भारती के बंगले के सामने अपनी रेडी लगा रहे हैं।
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टीकमगढ़ में इंजीनियर पास युवक ने लगाया समोसे का ठेला
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
कंप्यूटर साइंस में इंजीनियरिंग की डिग्री लेने वाले आदर्श खरे और उनकी बीएससी पास बहन ने रोजगार के लिए संघर्ष करते हुए अंततः समोसे और पानी पुरी की दुकान शुरू कर दी है। यह स्टॉल टीकमगढ़ में उमा भारती के बंगले के सामने लगता है। भाई-बहन की इस मेहनत और स्वावलंबन की कहानी स्थानीय लोगों के लिए प्रेरणा बन गई है।
चार साल का संघर्ष, लेकिन नहीं मिला रोजगार
आदर्श खरे ने 2020 में सागर से कंप्यूटर साइंस में बी.ई. (इंजीनियरिंग) की डिग्री ली। पढ़ाई के बाद उन्होंने चार साल तक नौकरी की तलाश में कई जगह आवेदन किया और इंटरव्यू दिए, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। उनके पिता का 2012 में और मां का हाल ही में निधन हो गया, जिससे उन पर परिवार का भार आ गया।
रोजगार की तलाश में असफल होने के बाद आदर्श और उनकी बड़ी बहन, जिन्होंने बीएससी की पढ़ाई की है, ने मिलकर टीकमगढ़ में समोसे और पानी पुरी की दुकान लगाने का फैसला किया। वे सिविल लाइन में उमा भारती के बंगले के सामने अपनी रेडी लगा रहे हैं। सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाली इस दुकान में बहन समोसे बनाती हैं और आदर्श उन्हें तलते हैं।
स्टॉल का नाम 'बी.ई. समोसा' क्यों?
आदर्श ने अपनी दुकान का नाम 'बी.ई. समोसा' रखा है, ताकि लोग जान सकें कि उच्च शिक्षा के बाद भी अगर नौकरी नहीं मिलती है, तो खुद का व्यवसाय शुरू करके भी आत्मनिर्भर बना जा सकता है। उनका कहना है कि शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती, यह जीवन में चुनौतियों से लड़ने का साहस देती है।
बेरोजगारी पर उठे सवाल
इलाके के पत्रकार अनिल रावत ने इसे प्रदेश की बढ़ती बेरोजगारी पर एक तमाचा बताया। उन्होंने कहा, "यह कहानी उच्च शिक्षा की स्थिति और बेरोजगारी के मुद्दे को उजागर करती है। सरकार को युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए, न कि उन्हें फ्री की योजनाओं पर निर्भर बनाना चाहिए।"
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चार साल का संघर्ष, लेकिन नहीं मिला रोजगार
आदर्श खरे ने 2020 में सागर से कंप्यूटर साइंस में बी.ई. (इंजीनियरिंग) की डिग्री ली। पढ़ाई के बाद उन्होंने चार साल तक नौकरी की तलाश में कई जगह आवेदन किया और इंटरव्यू दिए, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। उनके पिता का 2012 में और मां का हाल ही में निधन हो गया, जिससे उन पर परिवार का भार आ गया।
रोजगार की तलाश में असफल होने के बाद आदर्श और उनकी बड़ी बहन, जिन्होंने बीएससी की पढ़ाई की है, ने मिलकर टीकमगढ़ में समोसे और पानी पुरी की दुकान लगाने का फैसला किया। वे सिविल लाइन में उमा भारती के बंगले के सामने अपनी रेडी लगा रहे हैं। सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाली इस दुकान में बहन समोसे बनाती हैं और आदर्श उन्हें तलते हैं।
स्टॉल का नाम 'बी.ई. समोसा' क्यों?
आदर्श ने अपनी दुकान का नाम 'बी.ई. समोसा' रखा है, ताकि लोग जान सकें कि उच्च शिक्षा के बाद भी अगर नौकरी नहीं मिलती है, तो खुद का व्यवसाय शुरू करके भी आत्मनिर्भर बना जा सकता है। उनका कहना है कि शिक्षा कभी व्यर्थ नहीं जाती, यह जीवन में चुनौतियों से लड़ने का साहस देती है।
बेरोजगारी पर उठे सवाल
इलाके के पत्रकार अनिल रावत ने इसे प्रदेश की बढ़ती बेरोजगारी पर एक तमाचा बताया। उन्होंने कहा, "यह कहानी उच्च शिक्षा की स्थिति और बेरोजगारी के मुद्दे को उजागर करती है। सरकार को युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बढ़ाने चाहिए, न कि उन्हें फ्री की योजनाओं पर निर्भर बनाना चाहिए।"

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