अब मंगल से डिजिटल डाटा मिलने का इंतजार
मंगलयान की सफलता से जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में खुशी का माहौल है। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि ठीक तीन महीने के बाद मंगल से आने वाले अंकों के पीछे छिपे राज से पर्दा उठाने के लिए जेएनयू के जियोलॉजी व रिमोट सेनसिंग के वैज्ञानिक प्रो. सौमित्र मुखर्जी भी इसरो की टीम में शामिल हो जाएंगे।
शोध के दौरान प्रो. मुखर्जी मंगल पर पानी, जमीन के अंदर व सतह, तत्व और वातावरण पर नजर रखेंगे। प्रो. सौमित्र के मुताबिक, इसरो के मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के बाद अब हमें डिजिटल डाटा का इंतजार रहेगा।
तीन से छह महीनों के बीच इसरो में मंगलयान कक्ष से सैटेलाइट का पहला डिजिटल डेटा (वहां से सूचना अंकों जैसे 5,6,7,8,9,10 के आधार पर आएगा) आना शुरू हो जाएगा। डिजिटल डाटा आगे-पीछे होकर आएगा, उसके बाद उसे एकत्र कर देखेंगे कि कोई अंक छूट तो नहीं रहा। इसके बाद उन अंकों के आधार पर शोध शुरू किया जाएगा।
ये हे शोध के विषय
. मंगल की जमीन पर पानी था या नहीं। यदि था तो पानी कैसे गायब हुआ।
. शोध के दौरान जमीन की सतह और अंदर के तत्वों को परखा व जांचा जाएगा।
. मंगल की सतह किस प्रकार प्रारूप लेती है।
. मंगल की जमीन के बाहर और अंदर की हलचल।
. जमीन के अंदर के तत्व।
चंद्रयान प्रोजेक्ट में भी था योगदान
चंद्रयान प्रोजेक्ट बेशक बेहद पुराना है, लेकिन उसमें भी प्रो. मुखर्जी का योगदान बेहद अहम था, क्योंकि भारतीय वैज्ञानिकों की टीम ने ही सबसे पहले शोध में पाया था कि चंद्रमा धरती की तरह ही है।
वहां भी छोटी-छोटी सतह हैं, जैसे धरती पर छोटे-छोटे टापू, जिन पर देश बसे हुए हैं। इस रिसर्च के लिए प्रो. मुखर्जी को देश समेत विदेशों में सम्मान व अवार्ड मिले हैं। इसके अलावा वे भाभा, इसरो व नासा के कई प्रोजेक्ट पर शोध कार्य कर रहे हैं।
डीटीयू भी भाग लेने की तैयारी में
दिल्ली प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के फिजिक्स विभाग के प्रो. एससी शर्मा के मुताबिक, हम भी इसरो से इस प्रोजेक्ट में शोध कार्य में सहयोग देने के लिए पत्र लिख रहे हैं। क्योंकि हमने कई प्रोजेक्ट में इससे पहले सहयोग दिया है।