चैत्र नवरात्रि का पवित्र त्योहार इस साल 13 अप्रैल से शुरू होने वाला है। नवरात्रि के पावन नौ दिनों में आदिशक्ति की उपासना करने का शास्त्रों में विधान है। माता के भक्त इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग रूपों की उपासना करके व्रत रखते हैं और माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यदि श्रद्धा भक्ति के साथ-साथ यदि कुछ वास्तु नियमों को ध्यान में रखकर मां की आराधना की जाए तो इससे पूजा में मन लगता है और पूजा के शुभ फलों में वृद्धि होती है।
Chaitra Navratri 2021: नवरात्रि पर वास्तु नियमों के अनुसार पूजा करने पर होगी अधिक फलदाई
सर्वप्रथम तो पूजन कक्ष साफ-सुथरा हो, उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे, बैंगनी जैसे आध्यात्मिक रंग की हो तो अच्छा है, क्योंकि ये रंग सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते है। काले, नीले और भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं होना चाहिए।
यहां हो कलश की स्थापना
वास्तुविज्ञान के अनुसार मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा का दिशा क्षेत्र ईशान कोण यानि कि उत्तर-पूर्व दिशा को पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ माना गया है यहां पूजा करने से शुभ प्रभाव मिलता है और आपको हमेशा ईश्वर का मार्गदर्शन मिलता रहता है। इसलिए नवरात्रि काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए।
यद्धपि देवी माँ का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा माना गया है इसलिए यह ध्यान रहे कि पूजा करते वक्त आराधक का मुख दक्षिण या पूर्व में ही रहे। शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से हमारी प्रज्ञा जागृत होती है एवं दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से आराधक को मानसिक शांति अनुभव होती है।
दीपक जले इस दिशा में
अखंड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय यानि दक्षिण-पूर्व में रखना शुभ होता है क्योंकि यह दिशा अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है। आग्नेय कोण में अखंड ज्योति या दीपक रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा घर में सुख-समृद्धि का निवास होता है । संध्याकाल में पूजन स्थल पर घी का दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। घर के सदस्यों को प्रसिद्धि मिलती है व रोग एवं क्लेश दूर होते है।

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