कोकुरा शहर अब अस्तित्व में नहीं है। ये उन नगरपालिकाओं में से एक था जिन्हें 1963 में मिलाकर एक नया शहर कीटाक्यूशू बना दिया गया, जिसकी आबादी 10 लाख से कुछ कम है। लेकिन आज भी जापानी लोगों के जेहन में कोकुरा की ना मिटने वाली यादें है। क्योंकि दो दशक पहले इसका अस्तित्व में ना रहना और भी दर्दनाक हो सकता था।
हिरोशिमा और नागासाकीः आखिर अमेरिकी परमाणु बम से कैचे बचा जापान का कोकुरा शहर?
लेकिन काकुरा में आखिर हुआ क्या था?
बादल और धुआं
जुलाई 1945 के मध्य में अमेरिकी सेना के अधिकारियों ने जापान के कई शहरों को चुना जहां परमाणु बम गिराये जा सकते थे। ये वो शहर थे जहां फैक्ट्रियां और सैन्य अड्डे थे। कोकुरा प्राथमिकता के क्रम में सिर्फ हिरोशिमा से पीछे था। यानी सूची में हिरोशिमा के बाद उसका नाम था। कोकुरा हथियार उत्पादन का बड़ा केंद्र था। यहां जापान की सबसे बड़ी और सबसे ज़्यादा गोला-बारूद बनाने वाली फैक्टरियां थी। कोकुरा में जापान की सेना की एक बहुत बड़ी आयुधशाला भी थी।
6 अगस्त को ये परमाणु बम स्टैंड-बाय पर था, ताकि अगर किसी वजह से हिरोशिमा पर बम नहीं गिर सके, तो इसका इस्तेमाल किया जा सके। तीन दिन बाद बी-29 बमवर्षक सुबह-सुबह कोकुरा के लिए उड़े, उनमें से एक पर 'फैट मैन' लदा हुआ था जो हिरोशिमा पर गिराये गए यूरेनियम बम से भी अधिक शक्तिशाली एक प्लूटोनियम बम था। लेकिन कोकुरा के ऊपर बादलों का डेरा था, धुआं भी हो गया था। धुआं शायद पड़ोस के यवाटा में एक दिन पहले हुई बमबारी से उठी आग की वजह से हो गया था।
कुछ इतिहासकारों ने यह दावा भी किया कि जब पूरे जापान में हवाई हमले लगातार हो रहे थे, तब कोकुरा के कारखानों ने जानबूझकर कोयला जलाया था ताकि पूरे शहर में एक समय में एक 'स्मोक स्क्रीन' बनाई जा सके। अमेरिकी सैन्य दस्तावेजों और एक विमान में बैठे न्यूयॉर्क के पत्रकार विलियम लॉरेंस की रिपोर्ट के अनुसार, बी-29 बमवर्षकों ने तीन बार कोकुरा का चक्कर लगाया था। दरअसल, आदेश था कि बम तभी गिराया जाये जब टारगेट दिख रहा हो, ताकि ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो सके। समस्या ये भी थी कि जमीन पर मौजूद सेना ने विमान को देख लिया था और विमानों पर गोलीबारी शुरू कर दी थी। जिस बी-29 बॉक्स्कार पर बम लदा था उसे उड़ा रहे मेजर चार्ल्स स्वीनी ने नागासाकी की ओर बढ़ने का निर्णय लिया और कोकुरा बच गया।
एक बार फिर बख्शा
अमेरिका के विमान मार्च, 1945 से ही जापान पर लगातार हमले कर रहे थे। विमान से ऐसे आग लगाने वाले बम फेंके जा रहे थे जो जमीन पर शहरों को जला रहे थे। अनुमान है कि टोक्यो में 9 मार्च की रात सिर्फ एक रेड के दौरान 83 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी और 10 लाख से ज्यादा लोग बेघर हो गए थे। लेकिन बी-29 बमवर्षक जब कोकुरा पहुंचे तो वो शहर एकदम सही सलामत था। परमाणु बम के संभावित निशानों पर आग लगाने वाले हमले नहीं किये गए थे। इसलिए कोकुरा को भी इन हमलों से बख्श दिया गया था। इन शहरों को पहले हमलों से इसलिए बचाए रखा गया क्योंकि अमेरिकी सेना चाहती थी कि वो शक्तिशाली हथियारों से होने वाले नुकसान का बेहतर अध्ययन कर सकें।
राहत भी और दुख भी
15 अगस्त को सम्राट हिरोहितो ने बिना शर्त जापान के आत्मसमर्पण की घोषणा कर दी। कोकुरा विनाश से बच चुका था लेकिन लोगों में अब भी घबराहट थी। जब खबर आई कि नागासाकी पर गिरा बम पहले कोकुरा पर गिरने वाला था तो वहां के लोगों को राहत तो महसूस हुई, लेकिन उस राहत में दुख और सहानुभूति भी शामिल थी। कीटाक्यूशू में एक नागासाकी परमाणु बम स्मारक है जो एक पूर्व आयुधशाला के मैदान में बने एक पार्क में स्थित है। स्मारक में शहर के बम से बचने के भाग्य और नागासागी की दुर्दशा, दोनों का वर्णन है।