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Naga Sadhu: राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर, कहां और कैसे रखे जाते हैं नाम

फीचर डेस्क, अमर उजाला Published by: धर्मेंद्र सिंह Updated Mon, 24 Feb 2025 01:44 PM IST
सार

Naga Sadhu: वसंत पचंमी के आखिरी अमृत स्नान के बाद अब नागा साधु लौट चुके हैं। कई प्रकार के नागा साधु होते हैं। आज हम आपको नागा साधुओं से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां बताएंगे। 
 

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maha kumbh 2025 rajeshwar khooni khichdi and barfani how many types of naga sadhus what is the difference
राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर - फोटो : अमर उजाला

Naga Sadhu: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, युमना और सरस्वती नदी के संगम तट पर दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला महाकुंभ चल रहा है। गंगा, युमना और सरस्वती नदी के संगम में अभी तक करीब 60 करोड़ से ज्यादा श्रद्धालु पवित्र डुबकी लगा चुके हैं। महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी 2025 को हुई थी, जो 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। गंगा, यमुना और सरस्वती के पवित्र संगम में स्नान करने के लिए साधु-संतों के अलावा दुनियाभर से श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। महाकुंभ में सबसे अधिक नागा साधु आकर्षण का केंद्र होते हैं। सनातन धर्म में नागा साधुओं को धर्म का रक्षक माना जाता है। 



नागा साधुओं को 12 वर्षों की कठोर तपस्या करनी पड़ती है। नागा साधु भगवान शिव के वैरागी स्वरूप की पूजा करते हैं। महाकुंभ में देशभर से नागा साधु पहुंचे थे, जो लोगों के लिए सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र रहे। नागा साधु, बिना कपड़े के, शरीर पर भस्म और लंबी जटाओं की वजह से भीड़ में सबसे अलग नजर आते हैं। वसंत पचंमी के आखिरी अमृत स्नान के बाद अब नागा साधु लौट चुके हैं। कई प्रकार के नागा साधु होते हैं। आज हम आपको नागा साधुओं से जुड़ी कुछ दिलचस्प कहानियां बताएंगे। 
 

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राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर - फोटो : अमर उजाला

चार प्रकार के होते हैं नागा साधु 

प्रयागराज में त्रिवेणी संगम पर होने वाले कुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा साधु को राजेश्वर कहा जाता है। उज्जैन के सिंहस्थ कुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को खूनी नागा साधु कहा जाता है, क्योंकि इनका स्वभाव बेहद उग्र होता है। हरिद्वार कुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी कहा जाता है, क्योंकि शांत स्वभाव के होते हैं। नासिक कुंभ में दीक्षा लेने वाले नागा साधु को खिचड़ी नागा साधु कहा जाता है, क्योंकि इनका कोई निश्चित स्वभाव नहीं होता है। 
 

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राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर - फोटो : अमर उजाला

नागा साधु बनने के लिए करनी पड़ती है कठिन तपस्या

नागा साधु बनने के लिए 12 वर्ष की कठिन तपस्या करनी पड़ती है। नागा साधुओं का जीवन बेहद ही जटिल होता है। बताया जाता है कि किसी भी इंसान को नागा साधु बनने में 12 साल का लंबा समय लगता है। नागा साधु बनने के बाद वह गांव या शहर की भीड़भाड़ भरी जिंदगी को त्याग देते हैं और रहने के लिए पहाड़ों पर जंगलों में चले जाते हैं। उनका ठिकाना उस जगह पर होता है, जहां कोई भी न आता जाता हो। अखाड़ों में नागा साधु को अनुशासन और संगठित जीवन जीने की शिक्षा दी जाती है। अखाड़े नागा साधु बनाते हैं। सभी अखाड़ों की अपनी अलग-अलग परंपरा होती है। 

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राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर - फोटो : अमर उजाला।

बिस्तर पर नहीं सोते हैं नागा साधु 

नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 6 साल बेहद महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान वह नागा साधु बनने के लिए जरूरी जानकारी हासिल करते हैं। इस अवधि में वह सिर्फ लंगोट पहनते हैं। वह कुंभ मेले में प्रण लेते हैं जिसके बाद लंगोट को भी त्याग देते हैं और पूरा जीवन कपड़ा धारण नहीं करते हैं। सबसे खास बात यह है कि वह बिस्तर पर नहीं सोते हैं। 

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राजेश्वर, बर्फानी, खिचड़ी और खूनी नागा साधु में क्या होता है अंतर - फोटो : अमर उजाला।

सिर्फ सात घरों से भिक्षा मांगने की होती है इजाजत 

नागा साधु बनने की प्रक्रिया की शुरुआत में सबसे पहले ब्रह्मचर्य की शिक्षा लेनी होती है। इसमें सफलता प्राप्त करने के बाद महापुरुष की दीक्षा दी जाती है। इसके बाद यज्ञोपवीत होता है। इस प्रकिया को पूरी करने के बाद वह अपना और अपने परिवार का पिंडदान करते हैं जिसे बिजवान कहा जाता है।

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