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आखिर कैसे चलता है हैकिंग का ये साम्राज्य, सच्चाई जानकर चौंक जाएंगे आप

बीबीसी हिंदी Updated Fri, 07 Sep 2018 03:37 PM IST
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इस साल अगस्त महीने में हर साल की तरह, अमरीका के लास वेगस में एक खास मेला लगा। ये मेला था, हैकर्स का, जिसमें साइबर एक्सपर्ट से लेकर बच्चों तक, हर उम्र के लोग हैकिंग का हुनर दिखा रहे थे। लास वेगस में हर साल हैकर्स जमा होते हैं। इनके हुनर की निगरानी करके अमरीका के साइबर एक्सपर्ट ये समझते हैं कि हैकर्स का दिमाग कैसे काम करता है। वो कैसे बड़ा ऑपरेशन चलाते हैं।


जिस वक्त हैकर्स का ये मेला लास वेगस में लगा था, ठीक उसी वक्त हैकर्स ने एक भारतीय बैंक पर साइबर अटैक करके क़रीब 3 करोड़ डॉलर की रकम उड़ा ली। दुनिया भर में हर वक्त सरकारी वेबसाइट से लेकर बड़ी निजी कंपनियों और आम लोगों पर साइबर अटैक होते रहते हैं।

 
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आखिर कैसे चलता है हैकिंग का ये साम्राज्य?
बीबीसी की रेडियो सिरीज द इन्क्वायरी में हेलेना मेरीमैन ने इस बार इसी सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की। उन्होंने साइबर एक्सपर्ट्स की मदद से हैकर्स की खतरनाक और रहस्यमयी दुनिया में झांकने की कोशिश की। 1990 के दशक में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में बहुत से एक्सपर्ट अचानक बेरोजगार हो गए।

ये इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर थे और गणितज्ञ थे। रोजी कमाने के लिए इन्होंने इंटरनेट की दुनिया खंगालनी शुरू की। उस वक्त साइबर सिक्योरिटी को लेकर बहुत ज्यादा संवेदनशीलता नहीं थी और न जानकारी थी। इन रूसी एक्सपर्ट ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी। इन रूसी हैकरों ने बैंकों, वित्तीय संस्थानों, दूसरे देशों की सरकारी वेबसाइट को निशाना बनाना शुरू किया। अपनी कामयाबी के किस्से ये अखबारों और पत्रिकाओं को बताते थे।

रूस के खोजी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ बताते हैं कि उस दौर में हैकर्स खुद को हीरो समझते थे। उस दौर में रूस में हैकर्स नाम की एक पत्रिका भी छपती थी। आंद्रेई बताते हैं कि उस दौर के हर बड़े रूसी हैकर का ताल्लुक हैकर पत्रिका से था। रूस की खुफिया एजेंसी एफएसबी को इन हैकर्स के बारे में मालूम था।

मगर ताज्जुब की बात ये थी कि रूस की सरकार को इन हैकर्स की करतूतों से कोई नाराजगी नहीं थी बल्कि वो तो इन हैकर्स का फायदा उठाना चाहते थे। रूसी पत्रकार आंद्रेई शॉश्निकॉफ बताते हैं कि एफएसबी के चीफ निजी तौर पर कई रूसी हैकर्स को जानते थे। 2007 में रूसी हैकर्स ने पड़ोसी देश एस्टोनिया पर बड़ा साइबर हमला किया। इन हैकर्स ने एस्टोनिया की सैकड़ों वेबसाइट को हैक कर लिया। ऐसा उन्होंने रूस की सरकार के इशारे पर किया था। अगले ही साल रूसी हैकर्स ने एक और पड़ोसी देश जॉर्जिया की तमाम सरकारी वेबसाइट को साइबर अटैक से तबाह कर दिया।

 
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रूस के सरकारी हैकर्स
रूसी पत्रकार आंद्रेई बताते हैं कि 2008 में जॉर्जिया पर हुआ साइबर हमला रूस के सरकारी हैकर्स ने किया था। ये रूस की खुफिया एजेंसी के कर्मचारी थे। रूस की सरकार को लगा कि वो फ्रीलांस हैकर्स पर बहुत भरोसा नहीं कर सकते। इससे बेहतर तो ये होगा कि वो अपनी हैकर आर्मी तैयार करें। रूसी हैकर्स की इसी साइबर सेना ने जॉर्जिया पर 2008 में हमला किया था।

आज की तारीख में रूस के पास सबसे ताकतवर साइबर सेना है। रूसी हैकर्स पर आरोप है कि उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दखलंदाजी की। उन्होंने व्हाइट हाउस पर साइबर हमला किया। नैटो और पश्चिमी देशों के मीडिया नेटवर्क भी रूसी हैकर्स के निशाने पर रहे हैं। रूस से हुए साइबर हमले में एक खास ग्रुप का नाम कई बार आया है। इसका नाम है-फैंसी बियर। माना जाता है कि हैकर्स के इस ग्रुप को रूस की मिलिट्री इंटेलिजेंस चलाती है। हैकरों के इसी ग्रुप पर आरोप है कि इसने पिछले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में दखलंदाजी की थी।

रूसी पत्रकार आंद्रेई शोश्निकॉफ कहते हैं कि इन साइबर हमलों के जरिए रूस दुनिया को ये बताना चाहता है कि वो साइबर साम्राज्य का बादशाह है। 90 के दशक में हॉलीवुड फिल्म मैट्रिक्स से प्रभावित होकर जिन रूसी साइबर इंजीनियरों ने हैकिंग के साम्राज्य की बुनियाद रखी थी, वो आज खूब फल-फूल रहा है। आज बहुत से हैकर रूस की सरकार के लिए काम करते हैं। मगर, हैकिंग के इस खेल में रूस अकेला नहीं है।

 
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ईरान के पास भी है हैकर्स की सेना
ईरान भी हैकिंग की दुनिया का एक बड़ा खिलाड़ी है। 1990 के दशक में इंटरनेट के आने के साथ ही ईरान ने अपने यहां के लोगों को साइबर हमलों के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था। ईरान जैसे देशों में सोशल मीडिया, सरकार के खिलाफ आवाज उठाने का बड़ा मंच होते हैं। सरकार इनकी निगरानी करती है। ईरान में हैकर्स का इस्तेमाल वहां की सरकार अपने खिलाफ बोलने वालों का मुंह बंद करने के लिए करती है।

2009 में जब ईरान में सरकार विरोधी प्रदर्शन तेज हो रहे थे। तब ईरान के सरकारी हैकर्स ने तमाम सोशल मीडिया अकाउंट हैक करके ये पता लगाया कि आखिर इन आंदोलनों के पीछे कौन है। उन लोगों की शिनाख्त होने के बाद उन्हें डराया-धमकाया और जेल में डाल दिया गया। यानी साइबर दुनिया की ताकत से ईरान की सरकार ने अपने खिलाफ तेज हो रहे बगावती सुर को शांत कर दिया था।

ईरान के पास रूस जैसी ताकत वाली साइबर सेना तो नहीं है, मगर ये ट्विटर जैसे सोशल मीडिया को परेशान करने का माद्दा जरूर रखती है। जानकार बताते हैं कि ईरान की साइबर सेना को वहां के मशहूर रिवोल्यूशनरी गार्ड्स चलाते हैं। ईरान में दुनिया के एक से एक काबिल इंजीनियर और वैज्ञानिक तैयार होते हैं। दिक्कत ये है कि इनमें से ज्यादातर पढ़ाई पूरी करने के बाद अमरीका या दूसरे पश्चिमी देशों का रुख करते हैं। तो, ईरान की साइबर सेना को बचे-खुचे लोगों से ही काम चलाना पड़ता है।

अमरीकी थिंक टैंक कार्नेगी एंडोमेंट के लिए काम करने वाले करीम कहते हैं कि ईरान तीसरे दर्जे की साइबर पावर है। अमरीका, रूस, चीन और इजराइल, साइबर ताकत के मामले में पहले पायदान पर आते हैं। यूरोपीय देशों की साइबर सेनाएं दूसरे नंबर पर आती हैं। ईरान अक्सर साइबर हमलों के निशाने पर रहता है। खास तौर से अमरीका और इसराइल से। 2012 में ईरान के तेल उद्योग पर हुए साइबर हमलों में उसके सिस्टम की हार्ड ड्राइव से डेटा उड़ा दिए गए थे। ईरान पर इस साइबर हमले के पीछे अमरीका या इसराइल का हाथ होने की आशंका थी।

ईरान ने इसी हमले से सबक लेते हुए तीन महीने बाद अपने दुश्मन सऊदी अरब पर बड़ा साइबर हमला किया। इस हमले में ईरान के हैकर्स ने सऊदी अरब के तीस हजार कंप्यूटरों के डेटा उड़ा दिए थे। आज हैकर्स ने अपने साम्राज्य को पूरी दुनिया में फैला लिया है। कमोबेश हर देश में हैकर मौजूद हैं। कहीं वो सरकार के लिए काम करते हैं, तो कहीं सरकार के खिलाफ।

 
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जहां साइबर हैकिंग पूरी तरह सरकारी
मगर, एक देश ऐसा है, जहां की साइबर हैकिंग सेना पूरी तरह से सरकारी है। इस देश का नाम है उत्तर कोरिया। उत्तर कोरिया में हैकर्स की सेना को चलाती है वहां की ख़ुफिया एजेंसी आरजीबी। उत्तर कोरिया में 13-14 साल की उम्र से ही बच्चों को हैकिंग के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगती है। स्कूलों से ही प्रतिभाशाली बच्चों को छांटकर हैकिंग की ख़ुफिया सेना में दाखिल कर दिया जाता है।

गणित और इंजीनियरिंग में तेज छात्रों को सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग दी जाती है। फिर या तो वो हैकर बनते हैं या सॉफ्टवेयर इंजीनियर। संसाधनों की कमी की वजह से उत्तर कोरिया में बच्चे पहले कागज के की-बोर्ड पर अभ्यास करते हैं। जो तेज-तर्रार होते हैं, बाद में उन्हें कंप्यूटर मुहैया कराया जाता है।

उत्तर कोरिया अपने यहां के बहुत से छात्रों को चीन या दूसरे एशियाई देशों में आईटी की पढ़ाई करने के लिए भेजता है, ताकि वो साइबर दुनिया को अच्छे से समझ सकें और देश के काम आ सकें। इनमें से कई छात्र पढ़ाई पूरी करके चीन या दूसरे देशों में ही रुक जाते हैं और वहीं से अपने देश के लिए हैकिंग का काम करते हैं। उनका मकसद कमाई करके अपने देश को पैसे भेजना होता है।

ये उत्तर कोरियाई हैकर्स 80 हजार से एक लाख डॉलर लेकर फ्रीलांस हैकिंग करते हैं, ताकि अपने देश के लिए पैसे कमा सकें। जानकार मानते हैं कि करीब 2-3 हजार उत्तर कोरिया हैकर फ्रीलांस का काम करते हैं, इनके निशाने पर क्रेडिट कार्ड, बैंक के खाते हुआ करते हैं, ताकि आसानी से कमाई हो सके।

उत्तर कोरिया के हैकर्स ने दुनिया के कई बैकों पर बड़े साइबर हमले करके करोड़ों की रकम उड़ाई है। इनके निशाने पर लैटिन अमरीकी देश इक्वाडोर से लेकर पड़ोस के देश तक रहे हैं। अब जब साइबर क्राइम बढ़ रहे हैं, तो जाहिर है तमाम देशों ने साइबर सुरक्षा के लिए पुलिस बल भी तैयार किए हैं। ऐसी ही साइबर सिक्योरिटी एक्सपर्ट हैं, माया होरोवित्ज। माया साइबर हमले करने वाले हैकर्स को तलाशती और पकड़ती हैं। हैकिंग के केस सुलझाती हैं। वो साइबर सिक्योरिटी कंपनी चेक प्वाइंट के लिए काम करती हैं।
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