जापान के आसपास समुद्र की तलहटी के नीचे मीथेन के भंडार जमा हैं जो बर्फ के पिंजरे में फंसे हैं। कुछ जगहों पर इस भंडार के ऊपर जमा तलछट हट गए हैं जिससे इस सफेद बर्फ के कुछ टुकड़े समुद्र की सतह तक आ गए हैं। यह हूबहू बर्फ जैसा दिखता है। इसे हथेली पर रखें तो सनसनाहट महसूस होती है। लेकिन इसे माचिस की तीली दिखा दें तो यह पिघलती नहीं बल्कि जलने लगती है। समुद्र तल से निकालकर इसके मीथेन को ईंधन के रूप में इस्तेमाल करने के लिए बड़े-बड़े अंतरराष्ट्रीय शोध कार्यक्रम और कंपनियां लगी हुई हैं। यदि सब कुछ योजना के मुताबिक रहा तो अगला दशक खत्म होने से पहले इस जलने वाली बर्फ को निकालने का काम शुरू हो सकता है। लेकिन अब तक का सफर आसान नहीं रहा है।
रहस्यमयी बर्फ के बारे में नहीं जानते होंगे आप, छूने में ठंडी लेकिन माचिस दिखाते ही निकलने लगेगी आग
इसमें कोई संदेह नहीं है कि मीथेन हाइड्रेट ईंधन का मुख्य स्रोत हो सकता है। ताजा अनुमानों के मुताबिक इसमें कार्बन की कुल मात्रा अन्य जीवाश्म ईंधनों (तेल, गैस और कोयला) की एक तिहाई हो सकती है। कई देश, खास तौर पर जापान, इसे निकालना चाहते हैं। समस्या इसके गैस को निकालने और उसे समुद्र से बाहर लाने में है। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के गैस हाइड्रेट प्रोजेक्ट की प्रमुख कैरोलीन रपेल कहती हैं, "हम नीचे जाकर वहां से इस बर्फ जैसे भंडार का खनन नहीं करने वाले।" सारा दारोमदार भौतिकी विज्ञान पर है। मीथेन हाईड्रेट दबाव और तापमान के प्रति इतने संवेदनशील हैं कि सामान्य तरीके से खुदाई करके उसे धरती पर लाना संभव नहीं। यह समुद्र तल से कई सौ मीटर नीचे बनती है, जहां धरती के मुकाबले दबाव बहुत ज्यादा होता है और तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस के करीब। सामान्य परिस्थितियों में बाहर लाने पर यह "बर्फ" टूट जाती है और इस्तेमाल से पहले ही मीथेन बाहर आ जाता है। लेकिन इसका दूसरा तरीका भी है।
रपेल कहती हैं, "आप समुद्र की तलहटी के भंडार को मीथेन छोड़ने के लिए तैयार कर सकते है। फिर जो गैस बाहर आए उसे निकाल सकते हैं।" जापान सरकार के फंड से चल रहे एक रिसर्च प्रोग्राम में ठीक यही करने की कोशिश की जा रही है। कई साल की शुरुआती रिसर्च के बाद 2013 में मीथेन हाइड्रेट भंडार के कुछ स्पॉट चिह्नित किए गए। जापान के ऑयल, गैस एंड मेटल्स नेशनल कॉरपोरेशन में मीथेन हाइड्रेट रिसर्च एंड डेवलपमेंट ग्रुप के महानिदेशक कोजी यामामोटा का दावा है कि "दुनिया में पहली बार ऐसा हुआ।"
वैज्ञानिक जापान के पूर्वी तट पर ननकाई गर्त की तलहटी में मीथेन हाइड्रेट के भंडार में ड्रिल करके वहां से गैस निकालने में कामयाब रहे। भंडार के ऊपर दबाव घटाकर वे गैस को मुक्त कराने और उसे इकट्ठा करने में सफल रहे। यह परीक्षण छह दिनों तक चला, फिर उस कुएं में रेत भर गई और सप्लाई रुक गई। 2017 में ननकाई गर्त में ही दूसरा परीक्षण हुआ। इस बार शोधकर्ताओं ने दो कुएं बनाए। पहले कुएं में फिर से रेत वाली समस्या आई। लेकिन दूसरा कुआं बिना किसी तकनीकी समस्या के 24 दिनों तक चला। ये परीक्षण कम दिनों तक चले, लेकिन यह पता चल गया कि जापान में उपयोगी कार्बन-आधारित प्राकृतिक संसाधन हैं और उन्हें निकालने की संभावनाएं हैं। हवाई के नेचुरल एनर्जी इंस्टीट्यूट में मीथेन हाइड्रेट पर काम कर चुके शोध विश्लेषक आई ओयामा बताते हैं कि लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली रहीं।
कुछ लोगों ने इस बात को पसंद किया कि जापान ऊर्जा के मामले में आत्मनिर्भर हो जाएगा। लेकिन कुछ दूसरे लोगों को चिंता हुई कि इस तकनीक से टेक्टोनिक प्लेट की सीमा के पास समुद्र की तलहटी में हलचल होगी। "लोग तलहटी में कुछ भी करने से डर गए। यह जगह अस्थिर मानी जाती है और यहां भूकंप आते रहते हैं।" डर यह है कि मीथेन हाइड्रेट के भंडार में एक जगह दबाव कम करने से पूरे भंडार अस्थिर हो सकते हैं। रपेल कहती हैं, "लोग चिंतित हैं कि हम गैस हाइड्रेट से मीथेन निकालने लगेंगे और ऐसी स्थिति में पहुंच जाएंगे जहां हम उसे रोक नहीं पाएंगे।" समस्या दो हैं- पहली यह कि समुद्र में ढेर सारी मीथेन गैस मुक्त हो जाएगी जो पर्यावरण में ग्रीनहाउस गैस की मात्रा बढ़ा देगी। दूसरी समस्या यह है कि मीथेन हाइड्रेट से मीथेन निकलेगी तो उससे ढेर सारा पानी भी निकलेगा। समुद्र की तलहटी के नीचे जमी गाद में पानी की मात्रा बढ़ेगी तो वह अस्थिर हो जाएगी। कुछ पर्यावरणविदों को डर है कि इससे सुनामी भी आ सकती है।