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Diamond Jubilee of Indo-Pak War 1965 Exhibition of military equipment and weapons in Chandigarh
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सेना की ताकत: खुली आंख से नहीं दिखेगा निंजा, सटीक ग्रेनेड हमले में माहिर डेविल, जानिए इन ड्रोन की खासियत
मोहित धुपड़, चंडीगढ़
Published by: अंकेश ठाकुर
Updated Sat, 13 Sep 2025 12:12 AM IST
सार
चंडीगढ़ के सेक्टर-17 तिरंगा पार्क में शुक्रवार को भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 की डायमंड जुबली के उपलक्ष्य में सैन्य उपकरणों व हथियारों की प्रदर्शनी लगाई गई थी। प्रदर्शनी में बड़ी संख्या में एनसीसी कैडेट्स और आम लोग भी पहुंचे थे।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारतीय सेना ने टेक्निकल फ्यूचर वॉर पर फोकस बढ़ा दिया है। जासूसी से लेकर हमलों तक में इस्तेमाल होने वाली नई मानव रहित हवाई वाहन तकनीक यानी ड्रोन के निर्माण पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है।
खास बात यह कि विभिन्न सैन्य इकाइयों के अंतर्गत इंजीनियरिंग, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल व एविएशन विंगों के विशेषज्ञ ही देश निर्मित ड्रोन बनाने में जुटे हुए हैं। एडवांस तकनीकों से लैस कई ड्रोन तैयार भी कर लिए गए हैं। इनमें से कुछ ऑपरेशनल हो चुके हैं जबकि कुछ को तकनीकी मंजूरी मिल गई है। वे भी जल्द ऑपरेशनल हो जाएंगे।
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निंजा ड्रोन।
- फोटो : अमर उजाला
पकड़ में नहीं आएगा फुर्तीला ड्रोन
सेना की एक इकाई ने फर्स्ट पर्सन व्यू फ्रेबिकेटेड ड्रोन निंजा तैयार किया है। पांच किमी रेंज वाला यह ड्रोन इतना फुर्तीला है कि इसे खुली आंख से देख और पकड़ पाना मुश्किल है। ऑपरेट करने वाले को विशेष ड्रोन गोगल पहनकर इसे चलाना पड़ेगा। इसकी गति 160 किलोमीटर प्रति घंटा है। पांच किलोमीटर की रेंज वाला यह ड्रोन 400 ग्राम पेलोड क्षमता रखता है। एक लाख रुपये की लागत से तैयार किया गया यह ड्रोन काफी तेज गति से दुश्मन के क्षेत्र की जासूसी कर वहां के रियल टाइम वीडियो उपलब्ध करवाएगा। हाई स्पीड फॉलकन एफपीवी ड्रोन की गति भी 180 किमी प्रति घंटा है और इसका पेलोड 500 ग्राम है। इसके अलावा गरुड़ ड्रोन की गति 50 किमी प्रतिघंटा है मगर इसकी रेंज 3 किमी होगी।
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सेना के आधुनिक हथियार।
- फोटो : अमर उजाला
डेविल की हरकत से दुश्मन रहेगा बेखबर
सटीक ग्रेनेड हमले में माहिर डेविल ड्रोन को पंजाब स्थित संगरूर की एक यूनिट के विशेषज्ञों ने तैयार किया है। खास बात है कि इस यूनिट को अन्य यूनिटों के लिए भी खतरनाक ड्रोन बनाने के लिए निर्देश दिए गए हैं। यह ड्रोन टारगेट पर सटीक ग्रेनेड हमला करने में माहिर है। इसका एंटी जैमिंग मोड दुश्मन को इसकी हरकत से पूरी तरह बेखबर रखेगा। डे एंड नाइट ऑपरेशन में सक्षम यह ड्रोन पहाड़ी क्षेत्र में भी टारगेट को लोकेट कर उसे नेस्तनाबूद करने में सक्षम है। इसमें छह ग्रेनेड लोड किए जा सकते हैं। मैपिंग के जरिये टारगेट को रिमोट में फीड कर इसे ऑपरेशन में भेज दिया जाता है। इसका रिटर्न टू लाॅन्च (आरटीएल) सिस्टम भी गजब का है। टारगेट सेट कर इस कमांड के बाद जीपीएस व कम्युनिकेशन गड़बड़ी के दौरान भी यह ड्रोन अपना काम कर लॉन्च पैड पर वापस आ आएगा।
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सेना के ड्रोन।
- फोटो : अमर उजाला
टारगेट को तबाह कर खुद भी उड़ जाएगा सुसाइड ड्रोन
खड्ग टू कोर के विशेषज्ञों ने भी कामीकेज ड्रोन तैयार कर लिया है। हालांकि अभी यह ऑपरेशनल नहीं है मगर कमांड स्तर पर इसे मंजूरी दे दी गई है। सुसाइड ड्रोन के नाम से दुनिया में फेमस यह ड्रोन काॅस्ट फ्रेंडली है। 3.85 लाख की लागत से तैयार यह ड्रोन टारगेट को तबाह कर खुद भी ब्लास्ट होकर खत्म हो जाएगा। इसकी रेंज 10 किमी रहेगी जबकि पेलोड क्षमता 1 किलो होगी। एचडी डिजिटल कैमरे से लैस इस ड्रोन में ग्रिड रेफरेंस के माध्यम से टारगेट फीड किया जाएगा। इस हैंड लॉन्च ड्रोन का छोटा वर्जन भी तैयार किया गया है, जिसका खर्च महज 60 से 70 हजार रुपये है।
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चंडीगढ़ के सेक्टर-17 तिरंगा पार्क में सेना के हथियारों की प्रदर्शनी के दौरान महिला।
- फोटो : अमर उजाला
ऑपरेशन सिंदूर में इस्तेमाल हथियार देखने का उत्साह
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1965 की डायमंड जुबली के उपलक्ष्य में शुक्रवार को चंडीगढ़ के तिरंगा पार्क में सैन्य उपकरणों व हथियारों की एक प्रदर्शनी लगाई गई। इस प्रदर्शनी में पहुंचे लोगों में खासा उत्साह था। सेना के जवानों ने भी डिस्प्ले में रखे उपकरणों के बारे में लोगों खासकर युवाओं व किशोरों को विस्तृत जानकारी दी। विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के एनसीसी कैडेट भी यहां पहुंचे हुए थे। प्रदर्शनी में सेना के कुछ उन उपकरणों को भी प्रदर्शित किया गया जिनका इस्तेमाल कुछ माह पूर्व सेना ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किया था। इस दौरान वहां पहुंचे युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए भी प्रेरित किया गया।
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