यूपी से नहीं इस बार पश्चिम बंगाल से निकलेगा दिल्ली की सत्ता का रास्ता, क्या है गणित?
चुनाव तो पूरे देश में हुए। लेकिन चुनाव का केंद्रबिंदु पश्चिम बंगाल रहा। सारे देश में चुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हुए। लेकिन पश्चिम बंगाल में हिंसा हुई। अंतिम चरण के चुनाव प्रचार के दौरान कोलकता में हुई हिंसा के चपेट में ईश्वरचंद्र विदा सागर की मूर्ति आ गई। अमित शाह को अपना रोड शो बीच में ही रोकना पड़ा। वैसे तो पूरे देश में नरेंद्र मोदी की सबसे ज्यादा आलोचना राहुल गांधी ने की है। लेकिन नरेंद्र मोदी औऱ ममता बनर्जी की दुश्मनी इस स्तर पर आ गई कि दोनों एक दूसरे को जेल भेजने तक की धमकी सामने आई।
दरअसल, भाजपा ने इस बार अपनी पूरी ताकत पश्चिम बंगाल में झोंक दी है। वजह भी साफ है कि इस बार भाजपा को हिंदी पट्टी में सीटें घटने की आशंका है और भाजपा इसकी भरपाई पश्चिम बंगाल से करना चाहती है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी को लगता है कि देश में त्रिशंकु संसद की स्थिति बन गई है और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस अब दिल्ली में किंगमेकर की भूमिका में आएगी।
दोनों दलों को अपनी राजनीति पर भरोसा
पश्चिम बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं। ममता बनर्जी को उम्मीद है कि उनकी अल्पसंख्यक और गरीब समर्थक कल्याणकारी राजनीति बंगाल में टीएमसी को 35 से ज्यादा सीटें दिलवा सकती हैं। भाजपा को उम्मीद है कि हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का लाभ भाजपा को इस लोकसभा चुनाव में हुआ है। भाजपा पश्चिम बंगाल से कम से कम 20 सीट जीतने की उम्मीद लगाए हुए है। 7 चरणों के दौरान जिस तरह से दोनों दलों के कार्यकर्ताओं के बीच हिंसा हुई, उससे पता चलता है कि दोनों दलों के बीच जमीन पर जबर्दस्त संघर्ष हुआ है। अगर चुनाव टीएमसी के पक्ष में एकतरफा होता तो ममता बनर्जी भाजपा के प्रति इतनी आक्रमक नजर नहीं आती। टीएमसी और बीजेपी के वर्करों के बीच हिंसक लड़ाई नहीं होती।
यह लड़ाई ठीक उसी तरह से हो रही है जिस तरह से किसी जमाने में टीएमसी और सीपीएम के वर्करों के बीच पश्चिम बंगाल में होती थी। उस समय सीपीएम पावर में थी और टीएमसी विपक्ष में थी। लेकिन आज ममता कांग्रेस औऱ सीपीएम के प्रति आक्रमकता छोड़ चुकी है। ममता पूरे चुनाव के दौरान भाजपा के प्रति आक्रमक रही है। यह आक्रमकता दर्शाती है कि भाजपा का हिंदू कार्ड पश्चिम बंगाल में कुछ हद तक चल गया है। दोनों दलों के बीच हिंसक संघर्ष ने स्पष्ट कर दिया है कि बंगाल में भाजपा की हिंदुत्ववादी राजनीति को जमीन मिल गई है। लेकिन अभी भी अहम सवाल यह है कि इस चुनाव में भाजपा के सिर्फ वोट बढ़ेंगे या सीटें भी अच्छी खासी बढ़ेंगी।
बंगाल में कैसा था 2014 का हाल?
2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 17 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि सीपीएम को 30 प्रतिशत वोट मिले थे। भाजपा को उम्मीद है कि इस बार सीपीएम और कांग्रेस का वोट भाजपा की तरफ शिफ्ट कर रहा है। क्योंकि दोनों दलों के कार्यकर्ता टीएमसी के वर्करों की गुंडागर्दी से परेशान हैं। बंगाल के युवा भाजपा से प्रभावित भी हुए हैं। भाजपा ने हिंदू युवाओं में भाजपा के प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए कैलाश विजयवर्गीय को काफी पहले ही पश्चिम बंगाल में लगा दिया था। विजयवर्गीय की रणनीति कुछ हदतक जमीन पर काम करते दिख रही है।
भाजपा की कमजोर कड़ी
भाजपा की कुछ कमजोर कड़ी भी है। भाजपा दूसरे राज्यों से खासी भीड़ पश्चिम बंगाल में लेकर गई है। अमित शाह के रोड शो के दौरान कोलकता में हुई हिंसा ने भाजपा की रणनीति को एक्सपोज किया। रोड शो में दूसरे राज्यों से आई भीड़ थी। ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मूर्ति तोड़े जाने से भाजपा डिफेंसिव हो गई। इस घटना का प्रभाव अंतिम चरण के चुनाव में पड़ने की आशंका बताई गई।
ईश्वरचंद्र विद्यासागर की मुर्ति को तोड़े जाने को टीएमसी ने मुद्दा बना लिया, इसे पश्चिम बंगाल के स्वाभिमान से जोड़ दिया। वहीं पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में टीएमसी का कैडरों ने साइंटिफिक तरीके से मतदान के दिन चुनाव प्रबंधन किया। गांवों में भाजपा सिर्फ हिंदुत्व के मुद्दे पर लड़ रही थी। लेकिन बूथ मैनेजमेंट कमजोर था। भाजपा समर्थक मतदाता अभी भी गांवों में कमजोर हैं। वे टीएमसी के कैडरों से डरते हैं। गांवों में भाजपा समर्थक कितने मतदाता बूथ तक पहुंचे है, इसके अभी कयास लगाए जा रहे है। इसी पर भाजपा की जीत-हार तय होगी।