बुलंदियों का सफर और इसरो: सबसे भारी संचार उपग्रह का प्रक्षेपण और अंतरिक्ष में सशक्त होता भारत
लगभग 4.4 टन वजनी, CMS-03, अब तक का भारत द्वारा छोड़ा गया सबसे भारी संचार उपग्रह है। यह उपग्रह जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित किया गया है और अगले 12 से 15 वर्षों तक भारत के संचार नेटवर्क की रीढ़ बनेगा।
विस्तार
भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह अंतरिक्ष विज्ञान में न केवल आत्मनिर्भर है, बल्कि भविष्य का मार्गदर्शक भी बन सकता है। 2 नवंबर 2025 की रात श्रीहरिकोटा से जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह CMS-03 (GSAT-7R) नामक उपग्रह को LVM3-M5 रॉकेट के माध्यम से प्रक्षेपित किया, तो यह सिर्फ एक तकनीकी उपलब्धि नहीं थी। यह राष्ट्र की डिजिटल संप्रभुता और सामरिक क्षमता का प्रतीक बन गया।
भारत का अब तक का सबसे भारी संचार उपग्रह
लगभग 4.4 टन वजनी, CMS-03, अब तक का भारत द्वारा छोड़ा गया सबसे भारी संचार उपग्रह है। यह उपग्रह जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (GTO) में स्थापित किया गया है और अगले 12 से 15 वर्षों तक भारत के संचार नेटवर्क की रीढ़ बनेगा। यह मिशन GSAT-7 श्रृंखला का विस्तार है, जो भारतीय नौसेना, वायुसेना और अन्य रक्षा एजेंसियों के लिए अत्याधुनिक, सुरक्षित संचार प्रदान करने हेतु बनाई गई है।
पहले के उपग्रह GSAT-7 (रुख्मिणी) और GSAT-7A के बाद अब CMS-03 (या GSAT-7R) को एक “नेक्स्ट-जनरेशन सैटेलाइट” माना जा रहा है — जो आधुनिक तकनीकों, अधिक बैंडविड्थ और बेहतर कवरेज के साथ भारत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाएगा।
विज्ञान और रणनीति का संगम
यह उपग्रह भारत की सामरिक संचार प्रणाली के लिए एक मजबूत कड़ी है। भारतीय नौसेना अब समुद्र के बीचों-बीच भी जहाजों, बेस और हेडक्वार्टर्स के बीच सुरक्षित एवं निर्बाध संचार बनाए रख सकेगी। यूएचएफ , एस -बैंड , सी -बैंड और कू -बैंड जैसी बहु-आवृत्ति (मल्टी -बैंड ) तकनीक इसे समुद्री, हवाई और जमीनी अभियानों में समान रूप से सक्षम बनाती है। इसके अलावा, यह उपग्रह “बीम स्टीयरिंग टेक्नोलॉजी” का उपयोग करता है, यानी यह अपने संचार बीम को आवश्यक दिशा में मोड़ सकता है। इससे गतिशील जहाजों या विमानों से जुड़ाव बना रहता है।
संपूर्ण डेटा और आवाज संचार एन्क्रिप्टेड रहेगा, जिससे साइबर जासूसी या सुरक्षा जोखिमों की संभावना लगभग शून्य हो जाएगी।
भारतीय महासागर में सशक्त उपस्थिति
CMS-03 भारत को पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में एक सशक्त सामरिक स्थिति देगा। जहां चीन जैसे देश तेजी से अपनी समुद्री उपस्थिति बढ़ा रहे हैं, वहीं यह उपग्रह भारत को उस क्षेत्र में रीयल-टाइम मॉनिटरिंग और कमांड क्षमता देगा। समुद्री सीमा सुरक्षा, तटीय निगरानी और समुद्र में आपातकालीन संचार के लिए यह उपग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
आर्थिक और सामाजिक लाभ
यह मिशन केवल रक्षा क्षेत्र तक सीमित नहीं रहेगा। इससे दूरस्थ तटीय इलाकों, द्वीपों और सीमांत क्षेत्रों में ब्रॉडबैंड और इंटरनेट कनेक्टिविटी बेहतर होगी। डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस और समुद्री शिक्षा जैसे क्षेत्रों को भी इस उपग्रह से लाभ मिलेगा।
इसरो की यह सफलता भारत को “स्पेस-टेक्नोलॉजी निर्यातक राष्ट्र” बनने की दिशा में और आगे ले जाएगी, जिससे वैश्विक उपग्रह संचार बाजार में भारत की हिस्सेदारी बढ़ेगी। CMS-03 जैसे उपग्रहों से सेना के “नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर सिस्टम” को और बेहतर बनाया जाएगा।
आत्मनिर्भरता की नई ऊंचाई
CMS-03 का सफल प्रक्षेपण केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं है; यह “आत्मनिर्भर भारत” के लक्ष्य की दिशा में एक ठोस कदम है। अब भारत को किसी विदेशी उपग्रह या प्राइवेट नेटवर्क पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। LVM3-M5 रॉकेट की सफलता ने यह सिद्ध कर दिया है कि भारत 4-5 टन से अधिक वजन वाले उपग्रहों को स्वदेशी तकनीक से अंतरिक्ष में भेज सकता है। इस उपग्रह को तीन चरणों वाला रॉकेट से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया है।
पहला चरण दो ठोस रॉकेट बूस्टर (S200) का है , दूसरा चरण तरल ईंधन आधारित (L110) का है , तीसरा चरण क्रायोजेनिक अपर स्टेज (C25), जो उच्च ऊंचाई पर उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करता है। CMS-03 को पहले ट्रांसफर ऑर्बिट में भेजा गया और फिर अपने ऑनबोर्ड प्रोपल्शन सिस्टम की मदद से यह स्वयं जियोसिंक्रोनस कक्षा में पहुंचा। चार अलग-अलग आवृत्ति बैंडों में एक साथ संचार करने की क्षमता। इससे स्पीड, बैंडविड्थ और नेटवर्क विश्वसनीयता तीनों बढ़ती हैं।
भविष्य की ओर संकेत
इसरो की योजना आने वाले समय में CMS-04 (GSAT-20) और नेक्स्ट-जनरेशन नेविगेशन सैटेलाइट्स लॉन्च करने की है। इन मिशनों से भारत को एक एकीकृत अंतरिक्ष-आधारित कम्युनिकेशन और नेविगेशन नेटवर्क प्राप्त होगा। गगनयान मानव मिशन और भारतीय स्पेस स्टेशन जैसी परियोजनाओं के लिए भी LVM3 रॉकेट की सफलता एक भरोसेमंद आधार बन गई है।
कुलमिलाकर , CMS-03 का प्रक्षेपण इस बात का स्पष्ट संकेत है कि भारत अब केवल “अंतरिक्ष तक पहुंचने वाला देश” नहीं रहा, बल्कि वह “अंतरिक्ष को साधने वाला राष्ट्र” बन चुका है। यह मिशन भारत की सामरिक सुरक्षा, डिजिटल संचार और तकनीकी क्षमता — तीनों को नई दिशा देता है। अब भारत को किसी विदेशी सैटेलाइट सिस्टम पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। भारत अब वैश्विक स्तर पर “हाई-थ्रूपुट सैटेलाइट” सेवाएं देने में सक्षम है, जिससे भविष्य में वाणिज्यिक अनुबंध भी मिल सकते हैं।
यह उपग्रह अंतरिक्ष से भारत की रक्षा करेगा, और धरती पर करोड़ों भारतीयों को जोड़ेगा। यह केवल इसरो की सफलता नहीं है बल्कि यह हर उस भारतीय की सफलता है, जो मानता है कि विकसित भारत का युग अब शुरू हो चुका है।
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