अपने घर में ऑस्ट्रेलिया के हाथों वन-डे सीरीज मे मिली 2-3 से हार को अगर छोड़ दिया जाए तो भारतीय टीम पिछले कुछ साल में सफेद बॉल के साथ जमकर धमाल मचाते आ रही है। विश्व कप इतिहास की बात करें तो 1983 में पहला और 28 साल बाद 2011 में दूसरा विश्व कप जीतने वाली यह टीम 30 मई से इंग्लैंड में शुरू होने जा रहे 12वें विश्व कप में अपने तीसरे खिताब के लिए उतरेगी। ऐसे में आइए एक नजर डालते हैं भारतीय क्रिकेट के उन दिग्गजों पर जिन्होंने वर्ल्ड कप में टीम इंडिया की कप्तानी संभाली।
अजहर से लेकर धोनी तक, World Cup में टीम इंडिया के कप्तानों पर एक नजर
श्री. वेंकटराघवन (1975-1979)
एक चतुर रणनीतिकार के तौर पर मशहूर वेंकटराघवन ने 1975 में खेले गए पहले और 1979 के दूसरे विश्व कप में वेंकटराघवन ने भारतीय टीम की अगुवाई की थी। दोनों ही टूर्नामेंट में भारतीय टीम का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। खुद वेंकटराघवन कुछ खास छाप नहीं छोड़ पाए। पहले वर्ल्ड कप में भारत को तीन मैच खेलने को मिले जिसमें दो में हार मिली और एक में जीत। भारत ने इकलौता मैच ईस्ट अफ्रीका के खिलाफ 10 विकेट से जीता था। जिसमें फारुख इंजीनियर को मैन ऑफ द मैच चुना गया। इसी के साथ फारुख किसी वर्ल्ड कप में पहला मैन ऑफ द मैच जीतने वाले भारतीय खिलाड़ी बने।
कपिल देव (1983-1987)
भारत को 1983 में पहला विश्व कप दिलाने वाले कपिल देव की मैदानी सफलताओं ने समूचे देश को गौरवान्वित किया। कपिल देव में वे सभी गुण और काबिलियित मौजूद थी जो किसी आदर्श खिलाड़ी में होने चाहिए। वे शारीरिक रूप से हमेशा चुस्त-फुर्तीले बने रहे। शानदार फिल्डर-बल्लेबाज और गेंदबाज रहे कपिल की जिम्बॉब्वे के खिलाफ 175 रन की नाबाद पारी विश्व कप में भारत की जीत की अहम कड़ी रही। खिताबी मुकाबले में पीछे भागते हुए विवियन रिचर्ड्स का कैच इतिहास में दर्ज हो गया।
मोहम्मद अजहरुद्दीन (1992-96-99)
मोहम्मद अजहरुद्दीन एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्होंने लगातार तीन विश्व कप में भारतीय टीम की कप्तानी की। 1992 में हालांकि टीम आठ में से सिर्फ 2 ही मुकाबले जीत पाई थी, लेकिन चार साल बाद सचिन तेंदुलकर ने अकेले अपने दम पर टीम को सेमीफाइनल तक पहुंचाया। उन्होंने सात मैचों में सर्वाधिक 523 रन बनाए। बावजूद इसके अजहर की टीम 1996 में विश्व कप जीतने का सुनहरा मौका गंवा बैठी। फिर 1999 के अगले विश्व कप में अजहरुद्दीन की कप्तानी में टीम सुपर सिक्स स्टेज भी पार नहीं कर पाई।
सौरव गांगुली (2003)
सौरव गांगुली की टीम 2003 में 1983 की कहानी दोहराने से ठीक एक कदम पहले चूक गई। पूरे टूर्नामेंट में रंग में दिखीं 'मैन इन ब्लूज' जोहानसबर्ग में हुए फाइनल मुकाबले में ऑस्ट्रेलिया के हाथों मात खा बैठी। बेहद खराब दौर से गुजर रहे भारतीय क्रिकेट को उठना, लड़ना और भिड़ना सिखाने वाले गांगुली की लीडरशिप का लोहा पूरी दुनिया ने माना। खुद इस बाएं हाथ के बल्लेबाज ने विश्व कप में जमकर रन ठोके। सचिन तेंदुलकर के बाद यह खब्बू बल्लेबाज टूर्नामेंट का दूसरा सर्वोच्च रन स्कोरर रहा।