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चमोली आपदाः इस वजह से मरीं धौलीगंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा में पाई जाने वाली मछलियां
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, देहरादून
Published by: Nirmala Suyal Nirmala Suyal
Updated Thu, 11 Feb 2021 01:00 PM IST
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चमोली आपदा
- फोटो : अमर उजाला
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चमोली की नीती घाटी में बड़ी चट्टानों और हैंगिंग ग्लेशियर टूटने के बाद आई आपदा में न सिर्फ इंसानी जिंदगियां गईं वरन जलीय जंतुओं की मौत हुई है। आपदा से धौलीगंगा, ऋषि गंगा, अलकनंदा में पाई जाने वाली कोल्ड वाटर फिश भी बड़ी संख्या में मर गई हैं।
भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. के शिवकुमार के अनुसार आपदा के प्रभाव से ऋषि गंगा, धौलीगंगा और अलकनंदा आदि नदियों में भारी हलचल व उछल-पुथल हुई। इससे मछलियों की लेटरल लाइन टूट गई। मछलियों की लेटरल लाइन बेहद संवेदनशील होती हैं और मछली इसी लेटरल लाइन के जरिए पानी के भीतर अपना संतुलन कायम रखती है।
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चमोली आपदा
- फोटो : अमर उजाला
डॉ. के शिवकुमार भूस्खलन, हिमस्खलन जैसी प्राकृतिक आपदाओं के बाद नदियों में बड़े पैमाने पर मलबा भी आता है। हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली मछलियां ठंडे पानी की मछलियां होती हैं और वे बेहद साफ-सुथरे पानी में ही रहने की आदी होती हैं। प्राकृतिक आपदा के बाद नदियों में तेज हलचल के साथ ही पानी बेहद गंदा हो जाता है। ऐसे में कोल्ड वाटर फिश का जीवन संकट में पड़ जाता है और ज्यादातर मछलियां मर जाती हैं।
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चमोली आपदा
- फोटो : अमर उजाला
डॉ. के शिवकुमार के अनुसार हिमस्खलन, भूस्खलन, भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं को लेकर नदियों में पाए जाने वाली मछलियों के साथ ही अन्य जलीय जंतुओं को पूर्वानुमान हो जाता है इस संबंध में कोई शोध नहीं हुआ है। न ही यह तथ्य विज्ञान की कसौटी पर खरा उतरा है। हालांकि 26 दिसंबर 2004 को हिंद महासागर में आई भयावह सुनामी के बाद समुद्र के तटीय इलाकों में रहने वाले ज्यादातर हाथी आपदा से पहले ही दूरदराज के घने जंगलों की ओर चले गए थे।
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चमोली आपदा
- फोटो : अमर उजाला
ऐसे में इस बात का अनुमान लगाया गया था कि हाथियों को सुनामी का पूर्वानुमान हो गया था, लेकिन वैज्ञानिकों की ओर से इस संबंध में अभी तक कोई शोध नहीं किया गया है। बहरहाल अब आपदाओं के बाद जलीय जंतुओं और स्थलीय जीव जंतुओं में हलचल देखे जाने की बात सामने आ रही है तो इस दिशा में शोध किए जाने की जरूरत है।
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