ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) के विशेषज्ञों ने ओडिशा से दिल्ली पहुंचे सिर से जुड़े भाइयों का इलाज शुरू कर दिया है। हालांकि, एम्स के इतिहास में अपनी तरह का यह पहला मामला है। विशेषज्ञों की पहली प्राथमिकता इन दोनों बच्चों का इंफेक्शन दूर करने के साथ उनका कुपोषण ठीक करना है। ताकि सर्जरी की संभावनाओं को लेकर एमआरआई और एंजियोग्राम समेत अन्य टेस्ट किए जा सके। इन्हीं टेस्ट की रिपोर्ट के आधार पर तय होगा कि सर्जरी में विशेषज्ञों को सफलता मिलेगी या नहीं।
सिर से जुड़े ओडिशा के इन जुड़वां भाइयों को मिलेगी नई जिंदगी, AIIMS में पहली बार होगी ऐसी सर्जरी
एम्स के डायरेक्टर प्रोफेसर रणदीप गुलेरिया के मुताबिक, ओडिशा सरकार ने दोनों बच्चों के इलाज के लिए पत्र भेजा था। उसी आधार पर उक्त बच्चे अस्पताल पहुंचे और दोनों का निशुल्क इलाज शुरू कर दिया गया। न्यूरोसर्जरी के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. एके महापात्र ने बताया कि पहले हमें यह देखना जरूरी है कि उनके दिमाग में नसें किस हद तक जुड़ी हैं और सर्जरी संभव है या नहीं। इसके लिए जुड़वा बच्चों के एमआरआई, सीटी स्कैन और एंजियोग्राम जैसे कई टेस्ट किए जाएंगे। हालांकि इन बच्चों की सर्जरी बेहद जटिल है, क्योंकि सिर आपस में जुड़े हुए हैं। इनके इलाज से लेकर सर्जरी में न्यूरोसर्जरी, एनेस्थीसिया, पीडियाट्रिक से लेकर डाइटिशियन डिपार्टमेंट के विशेषज्ञों की टीम काम करेंगी।
डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरो सर्जरी के प्रोफेसर डॉ. दीपक गुप्ता के मुताबिक, एमआरआई व एंजियोग्राम की रिपोर्ट पॉजीटिव आती है तो फिर एक से तीन महीने तक इनकी सर्जरी की योजना तैयार होगी। सर्जरी चार से पांच चरणों में होगी। पहली सर्जरी 10-25 घंटे की हो सकती है। उसके बाद की सर्जरी का समय कम होगा। पहली सर्जरी से पहले मॉक ड्रिल होगी। यानी नकली खोपड़ी पर विशेषज्ञों की टीम सर्जरी करेगी। यह भी संभावना है कि सर्जरी के दौरान किसी एक को बचाने का निर्णय भी लेना पड़े। हालांकि, विशेषज्ञों की टीम दोनों बच्चों को सुरक्षित सर्जरी करवाने पर जोर देगी।
डिपार्टमेंट ऑफ न्यूरोएनेस्थीस्या एंड क्रिटिकल केयर के प्रोफेसर डॉ. गिरिजा प्रसाद रथ के मुताबिक, दोनों बच्चों की छाती में सर्दी और जुकाम के चलते इंफेक्शन है। इसलिए एमआरआई और एंजियोग्राम व अन्य टेस्ट नहीं हो सकते हैं। बच्चे बेहद छोटे हैं और डर के चलते वे एमआरआई करवाने में सहयोग नहीं कर पाएंगे। इसलिए उन्हें एनेस्थीस्यिा देकर सुलाना होगा। इस प्रक्रिया के दौरान उनकी सांस सामान्य होनी चाहिए, इसलिए टैकिथल टयूब डाली जाएगी। हालांकि दोनों बच्चों के नाक से ट्यूब डालने के दौरान उनकी गर्दन व सिर की मूवमेंट सही होनी चाहिए। इसलिए दो एनेस्थीस्यिा की टीम एक साथ काम करेंगी, जोकि बेहद बड़ी चुनौती है।
ये भी जानें
- दो साल तीन महीने के इन दोनों बच्चों का कुल भार 20 किलो है। यानी एक बच्चे का दस किलो और दूसरे का भी दस किलो। हालांकि इस उम्र में सामान्य बच्चों का भार 15 किलो होना चाहिए।
- बच्चों में कुपोषण है, जिसके चलते डाइटिशियन के विशेषज्ञों ने उनके ब्रेकफास्ट, लंच और डिनर के लिए स्पेशल चार्ट तैयार किया है, जिसमें हाई प्रोटीन को शामिल किया गया है।