'तेवर' और 'बधाई हो' जैसी फिल्मों का निर्देशन कर चुके निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा की फिल्म 'मैदान' गुमनाम नायक सैयद अब्दुल रहीम की सच्ची कहानी पर आधारित है। सैयद अब्दुल रहीम के नेतृत्व में भारतीय फुटबॉल टीम ने अपना स्वर्णिम युग देखा और इस फिल्म में 1951 और 1962 के एशियाई खेलों के दौरान भारतीय टीम के जुझारूपन को दर्शाया गया है। फिल्म ‘मैदान’ के निर्देशक अमित रविंद्रनाथ शर्मा से एक खास बातचीत।
Amit Ravindernath Sharma: सात हजार लोगों के ऑडिशन से तलाशे गए 15 कलाकार, ये सबके हौसले की फिल्म है
फुटबॉल कोच सैयद अब्दुल रहीम के जीवन पर फिल्म बनाने का विचार कैसे आया?
यह विचार बोनी कपूर का था। उन्होंने ही मुझे सैयद अब्दुल रहीम के बारे में बताया। मुझे लगा कि जब मुझ जैसे जागरूक फिल्मकार को ही उनके बारे में नहीं पता है तो बहुत सारे दूसरे लोगों को भी उनके बारे में नहीं पता होगा। मैंने कई लोगों से उनके बारे में बात भी की लेकिन ज्यादातर लोगों को कुछ नहीं पता था। तब मैंने फैसला किया कि इस गुमनाम नायक की कहानी मैं परदे पर लेकर जरूर आऊंगा।
हां, जब फिल्म का विषय मुझे पता चला, तभी मुझे लग गया था कि ये फिल्म बनाना आसान नहीं होगा क्योंकि इसके लिए मुझे बहुत शोध करना पड़ेगा और लोगों से मिलना पड़ेगा। उस समय के जो खिलाड़ी रहे हैं, उनमें से काफी लोगों से हमने मुलाकात की भी। पी के बनर्जी, अरुण घोष, चुन्नी गोस्वामी, बलराम के अलावा अब्दुल रहीम के बेटे हकीम से भी खूब बातें हुईं। आज भी सारे खिलाड़ी रहीम साहब को बहुत इज्जत के साथ याद करते हैं। इन खिलाड़ियों के लिए तो रहीम साहब उनके फुटबॉल के भगवान है।
मेरे इस फिल्म से जुड़ने से पहले ही अजय देगन ने बोनी कपूर से फिल्म की कहानी सुन ली थी। वह पहले ही हां कर चुके थे। बस शर्त उनकी यही थी कि फिल्म की पटकथा पूरी हो जाने के बाद ही वह इस पर अंतिम फैसला करेंगे। अजय को लेकर मेरे दिमाग मे उनकी ‘सिंघम’ वाली छवि थी लेकिन उन्होंने जिस तरह से खुद को सैयद अब्दुल रहीम के किरदार में परिवर्तित किया है, वह उनके अलावा और कोई नहीं कर सकता।
फिल्म के बाकी किरदारों को चुनना कितना मुश्किल रहा?
इस फिल्म के लिए हमें 15 ऐसे लोग चाहिए थे, जो अच्छे खिलाड़ी भी हों और अच्छे अभिनेता भी। साथ ही उनका असल खिलाड़ियों जैसा दिखना भी जरूरी थी। सभी खिलाड़ियों की तस्वीरें हमारे पास मौजूद थीं और हम एक एक करके अपने कलाकार चुनते गए। आपको जानकर अचरज होगा कि इन सारे कलाकारों को ढूंढने में ही हमें सवा साल लग गया। सात हजार लोगों के ऑडिशन हमने उस दौरान देखे थे। फिर इनकी डेढ़ साल ट्रेनिंग चली।