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Apna Adda Alok Pandey: दाऊद के मामा के रोल ने बदल दी आलोक की जिंदगी, सूरज बड़जात्या यूं साबित हुए पारस पत्थर
हिंदी सिनेमा को सोशल मीडिया पर जितनी गालियां अपने ही भाषा के दर्शकों की मिलती हैं, उतनी शायद ही किसी दूसरी भाषा के सिनेमा को मिलती होंगी। वंशवाद के आरोपों से घिरी रहने वाली हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में इसके बावजूद छोटे छोटे शहरों और गांव-देहात से आए तमाम कलाकार अपनी जगह धीरे धीरे बनाने में लगे हुए हैं। लोग उनके काम को देख रहे हैं। उन्हें उनके नाम से पहचान रहे हैं लेकिन उनके बारे में बातें कम ही कर रहे हैं। हमने ऐसे ही उदीयमान कलाकारों तक पहुंचने के लिए मुंबई में हर महीने ‘अपना अड्डा’ का आयोजन शुरू किया है, इसमें कोई भी उदीयमान कलाकार अपने बारे में बातें कर सकता है और अपनी सफलता की कहानी से दूसरों को प्रेरित कर सकता है। ‘अपना अड्डा’ सीरीज के पहले कलाकार हैं आलोक पांडे, जिनके लिए अमेजन प्राइम वीडियो की सीरीज 'बंबई मेरी जान' टर्निंग प्वाइंट साबित हुई है। इस सीरीज में आलोक ने दाऊद इब्राहिम से प्रेरित किरदार दारा कादरी के मामा का रोल किया है। आलोक पांडे से ‘अमर उजाला’ की एक खास बातचीत...
मैं उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर जिले के गांव ददऊं का रहने वाला हूं। गांव के प्राथमिक विद्यालय से आठवीं तक पढ़ाई की। फिर देवी प्रसाद इंटर कॉलेज, शाहजहांपुर से हाईस्कूल और इंटर द संजय कुमार सरस्वती इंटर कॉलेज विद्या मंदिर से किया।बचपन से कविताएं और कहानियां सुनाने का शौक था। स्वामी सुखदेवानंद विद्यालय से ग्रेजुएशन के दौरान ही थियेटर की तरफ झुकाव हुआ और फिर संस्कृति थियेटर ग्रुप ज्वाइन कर लिया। पहला नाटक मैने 'अग्नि और बरखा' किया। वहां राजपाल यादव का आना जाना लगा रहता था। उनसे मेरी पहली बार मुलाकात 2009 में हुई।
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आलोक पांडे
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
लड़का हीरो बनना चाहता है, सुनकर पिताजी की क्या प्रतिक्रिया रही?
हम चार भाई हैं, सबसे छोटा मैं ही हूं। तीनों भाई अब भी गांव में खेती बाड़ी करते हैं। जब मैं थियेटर कर रहा था तो पिताजी कहा करते थे कि नाटक में क्या रखा है? पढाई पर ध्यान दो, लेकिन कभी उन्होंने कोई काम पर पाबंदी नहीं लगाई। वह कहा करते थे कि कुछ करना है करो, लेकिन एक बात ध्यान में रहे कि तुम्हे अपना भविष्य खुद सोचना है। जब मुंबई आया तो मेरे सभी भाइयो ने बहुत सहयोग किया। पिताजी शिवराम पांडे भी किसान रहे। कभी कभार पैसे भेज दिया करते थे। अभी बीते साल वह हमें छोड़कर गोलोक वासी हो गए।
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आलोक पांडे
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
शाहजहांपुर से बाहर निकलना कब हुआ?
मुंबई आने से पहले मैं पूरी तैयारी करके आना चाह रहा था इसीलिए शाहजहांपुर से ग्रेजुएशन करने के बाद लखनऊ में भारतेंदु नाट्य अकादमी ज्वाइन कर लिया। वहां पर 2009 से लेकर 2011 खूब नाटक किए। वहां नसीरुद्दीन शाह, अनुपम खेर और रजा मुराद आते थे, उनकी एक घंटे की स्पेशल क्लास होती थी। थियेटर से मुझे इतना फायदा हुआ कि मुझे बोलना आ गया। पहले मैं बहुत ही शर्मीला था। एक तरह से थियेटर में मेरा नया जन्म हुआ।
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आलोक पांडे
- फोटो : अमर उजाला ब्यूरो, मुंबई
फिर वहां से मुंबई?
नहीं, अभी तो खुद को परखना था। लखनऊ से लौटकर फिर शाहजहांपुर आया और 15 -20 बच्चों को इकट्ठा करके मैंने एक नाटक 'चयनपुर की दास्तान' किया। अपने कॉन्फिडेंस को परखने के लिए मैंने यह नाटक किया। उस नाटक से मैंने कुछ पैसे भी कमाए। उसी समय कोलकाता में एक नया कोर्स 'एक्टिंग फॉर स्क्रीन' शुरू हुआ था। मेरा सौभाग्य रहा की वहां मेरा दाखिला हो गया और कैमरे के प्रति मेरा जो डर था वह दूर हो गया। वहां से गांव आया और फिर दिवाली मनाकर लखनऊ से 29 दिसंबर 2012 को पुष्पक एक्सप्रेस पकड़कर मुंबई पहुंच गया और नया साल मुंबई में ही मनाया।
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