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Dada saheb Phalke : भारतीय सिनेमा के पितामह थे दादा साहब फाल्के, ऐसे दिया था भारत में फिल्मों को जीवन

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: अमरीन हुसैन Updated Thu, 01 Apr 2021 11:54 AM IST
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Dada Saheb Phalke : Know the journey of father of Indian Cinema
दादा साहेब फाल्के - फोटो : Social media

साउथ सिनेमा के दिग्गज अभिनेता रजनीकांत को 51वां दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गुरुवार को एलान किया है। दादा साहब फाल्के को भारतीय सिनेमा का सबसे प्रतिष्ठित अवॉर्ड माना जाता है। धुंदीराज फाल्के ने सिनेमा की दुनिया में उस वक्त कदम रखा जब भारत में सिनेमा का कोई अस्तित्व ही नहीं था। दादा साहेब ने ही फिल्मों को जीवन दिया और नई पहचान भी। बता दें कि दादा साहेब का निधन 16 फरवरी 1944 को हुआ था।

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Dada Saheb Phalke : Know the journey of father of Indian Cinema
दादा साहेब फाल्के - फोटो : Social media

भारतीय सिनेमा उद्योग दुनिया में हर साल सबसे ज्यादा फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है। भारत का लगभग हर दूसरा नौजवान फिल्मों में काम करने के बारे में सोचता है, लेकिन इसको शुरू करने में कितनी मुश्किलें आईं और दादा साहेब ने कितनी मुश्किलों का सामना किया, इसका कुछ रोचक तथ्य हम आपको बताते हैं।

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Dada Saheb Phalke : Know the journey of father of Indian Cinema
दादा साहेब फाल्के - फोटो : Social media

दादासाहब फाल्के का असल नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था। उनका जन्म 30 अप्रैल, 1870 को महाराष्ट्र के नासिक में एक मराठी परिवार में हुआ था। उनके पिता संस्कृत के विद्वान थे। दादा साहेब ने अपनी शिक्षा कला भवन, बड़ौदा में पूरी की थी। वहां उन्होंने मूर्तिकला, इंजीनियरिंग, चित्रकला, पेंटिंग और फोटॉग्राफी की शिक्षा ली।

 

Dada Saheb Phalke : Know the journey of father of Indian Cinema
दादा साहेब फाल्के - फोटो : Social media

1910 में तब के बंबई के अमरीका-इंडिया पिक्चर पैलेस में ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ दिखाई गई थी। थियेटर में बैठकर फिल्म देख रहे धुंदीराज गोविंद फाल्के ने तालियां पीटते हुए निश्चय किया कि वो भी भारतीय धार्मिक और मिथकीय चरित्रों को रूपहले पर्दे पर जीवंत करेंगे।

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दादा साहेब फाल्के - फोटो : Social media

दादा साहेब को अपना लक्ष्य बिल्कुल साफ दिख रहा था। वह अपनी फिल्म को बनाने के लिए इंग्लैंड जाकर फिल्म में काम आने वाले कुछ यंत्र लाना चाहते थे। इस यात्रा में उन्होंने अपनी जीवन बीमा की पूरी पूंजी भी दांव पर लगा दी। इंग्लैंड पहुंचते ही सबसे पहले दादा साहेब फाल्के ने बाइस्कोप फिल्म पत्रिका की सदस्यता ली। दादा साहेब तीन महीने की इंग्लैंड यात्रा के बाद भारत लौटे। 

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