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जन्मदिन: पत्नी के गहने गिरवी रखकर दादा साहब फाल्के ने बनाई थी पहली फिल्म, तब कहलाए 'पितामह'

एंटरटेनमेंट डेस्क, अमर उजाला Published by: स्वाति सिंह Updated Fri, 30 Apr 2021 09:45 AM IST
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Dadasaheb made his debut because of his wife here Lesser-known Facts About The Father of Indian Cinema
दादा साहब फाल्के

हिंदी सिनेमा के पितामह दादा साहब फाल्के का जन्म आज ही के दिन 1870 में हुआ। उनका असली नाम धुंडिराज गोविंद फाल्के था। वो एक निर्देशक ही नहीं बल्कि एक जाने माने निर्माता और स्क्रीन राइटर भी थे। उन्होंने 19 साल के फिल्मी करियर में 95 फिल्में और 27 शॉर्ट फिल्में बनाई थीं। दादासाहब फाल्के की रुचि हमेशा से कला में थी। वह इसी क्षेत्र में अपना करियर बनाना चाहते थे। उन्होंने 1885 में जे जे कॉलेज ऑफ आर्ट में दाखिला लिया। इसके साथ ही उन्होंने वडोदरा के कलाभवन से भई कला की शिक्षा ली। 

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दादा साहब फाल्के
इसके बाद उन्होंने नाटक कंपनी में चित्रकार के रूप में काम मिल गया। 1903 में वे पुरातत्व विभाग में फोटोग्राफर के तौर पर काम करने लगे थे। लेकिन दादा साहब का मन फोटोग्राफी से भी ऊब गया और उन्होंने बतौर फिल्मकार अपना करियर बनाने का निर्णय लिया। अपने इसी सपने को पूरा करने के लिए साल 1912 में अपने दोस्त से कुछ पैसे उधार लेकर वो लंदन चले गए। लगभग दो सप्ताह तक लंदन में फिल्म निर्माण के बारे में सीखा और इससे जुड़े उपकरण खरीदने के बाद मुंबई वापस लौट आए। 

 
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दादा साहब फाल्के - फोटो : Social media

फिल्म बनाने के लिए सबसे पहले पैसों की जरूरत थी। कला नई थी, कलाकार भी नया था, इसलिए कोई भी फिल्मों में पैसा नहीं लगाना चाहता था। लोगों को यकीन नहीं था कि दादा साहब फिल्म बना भी पाएंगे। लेकिन दादा साहेब ने प्रोड्यूसर को यकीन दिलाने के लिए पौधों के विकास पर छोटी फिल्म बनाई। तब जाकर दो लोग उन्हें पैसा देने के लिए राजी हुए। पर ये काफी नहीं था। दादा साहब ने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखे। संपत्ति भी गिरवी रखी। कर्ज भी लिया। 

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दादा साहब फाल्के

फिल्म में राजा हरिश्चंद्र की पत्नी तारामती के रोल के लिए महिला अभिनेत्री की जरूरत थी। उस समय फिल्मों में काम करना एक सभ्य पेशा नहीं माना जाता था। कोई भी महिला रोल के लिए राजी नहीं हुई। थक-हारकर फाल्के रेड लाइट एरिया में गए। पर वहां कुछ नहीं हुआ। तब उन्होंने एक बावर्ची अन्ना सालुंके को तारामती के रोल के लिए चुना। 

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पत्नी के साथ दादा साहब फाल्के - फोटो : Mumbai, Amar Ujala

कहते हैं न कि हर सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है। फिल्म निर्माण के दौरान दादा साहब फाल्के की पत्नी ने उनकी काफी सहायता की थी। वह फिल्म में काम करने वाले लगभग 500 लोगों के लिए खुद खाना बनाती थीं। इस फिल्म के निर्माण में लगभग 15,000 रूपये लगे, जो उन दिनों एक बड़ी रकम हुआ करती थी। तीन मई 1913 को मुंबई के कोरनेशन सिनेमा हॉल में यह फिल्म पहली बार दिखाई गयी। लगभग 40 मिनट की इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और सुपरहिट साबित हुई।

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