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इस तरह बनी थीं 'मन डोले मेरा तन डोले' गाने की नागिन धुन, ये थी सदाबहार गाने के पीछे की कहानी
बीबीसी हिंदी
Published by: anand anand
Updated Fri, 06 Mar 2020 11:24 PM IST
मन डोले मेरा तन डोले, मेरे दिल का गया करार रे, ये कौन बजाये बाँसुरिया…। सन 1954 में प्रदर्शित फिल्म 'नागिन' के इस गीत पर जब अभिनेता प्रदीप कुमार बीन बजाते हैं तो उस बीन की धुन पर अभिनेत्री वैजयंतीमाला बेसुध होकर नाचने लगती हैं। बीन की इस धुन ने लाखों-करोड़ों लोगों पर भी ऐसा जादू चलाया था कि आज तक वह जादू कायम है जबकि अब फिल्म 'नागिन', इस गीत और इस बीन धुन को आये 65 साल का लंबा अरसा हो गया है। लेकिन इस बीन का आज तक कोई और ऐसा मधुर तोड़ नहीं आया। आज भी बहुत सी फिल्मों और गीतों में संपेरे की यही पुरानी बीन धुन इस्तेमाल की जाती है। इस बीन वाली धुन को बनाया था संगीतकार कल्याणजी आनंदजी की उस संगीतकार जोड़ी ने जिन्होंने आगे चलकर सन 1960 से 1990 के तीन दशकों में, कानों में रस घोलने वाली एक से एक कर्णप्रिय धुन देकर सिने संगीत को मालामाल कर दिया। फिल्म संगीत की दुनिया की इस सुपर हिट जोड़ी के कल्याणजी तो पिछले बीस बरसों से इस दुनिया में नहीं हैं। लेकिन कल्याणजी के जोड़ीदार और छोटे भाई आनंदजी अब 2 मार्च 2020 को 87 साल के हो गए हैं। फिल्मों में संगीत देना तो इन्होंने बरसों पहले ही बंद कर दिया था। लेकिन आनंदजी इसके बावजूद आज भी संगीत के लिए समर्पित हैं।
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Nagin
- फोटो : social media
पिछले दिनों मुंबई के पैडर रोड स्थित घर में उनसे मुलाकात हुई तो बहुत सी नई पुरानी बातों का लंबा सिलसिला चल निकला। अपनी बातचीत में वह हमेशा अपने बड़े भाई कल्याणजी को बहुत मान-सम्मान देते हैं। साथ ही, उन्हें तमाम पुरानी बातें आज भी ज्यों की त्यों याद हैं। बात 'नागिन' की बीन धुन की ही की जाए तो आनंदजी बताते हैं, "नागिन फिल्म से पहले फिल्मों में बीन के लिए संपेरे की असली बीन को ही बजाया जाता था। लेकिन उसमें खास मज़ा नहीं आता था। तभी भाईसाहब कल्याणजी लंदन से एक नया संगीत यंत्र कल्वायलिन लेकर आये। इसमें अलग-अलग किस्म की बहुत-सी ध्वनियां निकल सकती थीं।" ये वाद्य यंत्र की-बोर्ड का पुराना रूप है और धुन फूंक मारकर नहीं, बल्कि ऊंगलियों से बजाई गई है। "कल्याणजी ने उन्हीं ध्वनियों के माध्यम से बीन की यह धुन इजाद की। तब 'नागिन' का संगीत हेमंत कुमार दे रहे थे। कल्याणजी हेमंत दा के सहायक थे। मैं भी भाईसाहब के साथ ही मिलकर काम करता था। लेकिन शुरू में जब 'सम्राट चन्द्रगुप्त' से भाईसाहब ने फिल्म में पूरा संगीत दिया तब भी संगीतकार के रूप में कल्याणजी वीरजी शाह का नाम गया, इसमें वीरजी हमारे पिताजी का नाम था।"
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Kalyanji, Anandji
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फिर आपका नाम उनके साथ जोड़ी के रूप में कब और कैसे गया? ये पूछने पर आनंदजी बताते हैं, "'सम्राट चन्द्रगुप्त' के बाद सिर्फ कल्याणजी के नाम से हमारी कुछ और फिल्में आ चुकी थीं। तभी इस फिल्म के निर्माता सुभाष देसाई ने अपने भाई मनमोहन देसाई को निर्देशक बनाने के लिए एक साथ तीन फिल्में बनाने का फैसला लिया। जिसमें एक राज कपूर के साथ थी 'छलिया'। राज कपूर के साथ संगीतकार शंकर-जयकिशन होते थे। उन्होंने भाईसाहब से कहा आप 'छलिया' का संगीत दीजिए और अपने साथ आनन्द का नाम जोड़कर कल्याणजी आनंदजी की जोड़ी के रूप में संगीत दीजिए। हमने कहा अब तो कल्याणजी नाम स्थापित हो गया है, बदलें कैसे। इस पर वो बोले तुम यह छोड़ो, यह मेरी जिम्मेदारी है। तब उनकी सलाह पर हमने 'छलिया' फिल्म से कल्याणजी-आनंदजी के नाम से संगीत देना शुरू कर दिया।" 'छलिया' में कमर जलालाबादी गीतकार को लिया गया और इस फिल्म का गीत 'डम डम डिगा डिगा' ऐसा सुपर हिट हुआ कि फिल्म और फिल्म से जुड़े सभी लोग लोग चल निकले। उसके बाद इनके पास फिल्मों का ढेर लग गया।
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Kalyanji, Anandji
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मनमोहन देसाई की ये पहली फिल्म थी। इसके बाद उनके साथ 'ब्लफ मास्टर' और 'सच्चा झूठा' जैसी फिल्में भी इन्होंने कीं। यहा भी इनका संगीत और फिल्म सभी कुछ हिट रहा। 'सच्चा झूठा' का 'मेरी प्यारी बहनियां, बनेगी दुल्हनियां' तो भाई-बहन के प्रेम का एक अमर गीत है। कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी की यदि बेहद खास बात देखी जाए तो उसमें एक यह भी है कि बहुत से निर्देशकों ने अपनी पहली फिल्म इसी जोड़ी के साथ शुरू की और उन सभी निर्देशकों की वह पहली फिल्म एक म्यूजिकल हिट साबित हुई। यहा तक कई सितारों की पहली हिट भी इन्हीं के साथ रही। मिसाल के तौर पर अर्जुन हिंगोरानी की धर्मेन्द्र के साथ पहली फिल्म 'दिल भी तेरा हम भी तेरे' (1960) जिसके गीत 'मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो' या फिर मनोज कुमार की बतौर निर्माता-निर्देशक पहली फिल्म 'उपकार' (1967), जिसने 'मेरे देश की धरती सोना उगले' से एक ओर देश भक्ति के अमर गीतों की नयी बानगी पेश की। तो दूसरी ओर 'कसमे वादे प्यार वफा, सब बातें हैं बातों का क्या' जैसे वह भावुक गीत। मनोज कुमार के साथ बाद में कल्याणजी-आनंदजी ने 'पूरब और पश्चिम' फिल्म भी की, जिसका गीत संगीत सभी को झकझोर कर रख देता है। चाहे वह 'दुल्हन चली' हो या फिर 'भारत का रहने वाला हूँ' और 'पुरवा सुहानी आई रे' और 'ओम जय जगदीश हरे' की आरती जो आज भी सभी मंदिरों और धार्मिक समारोहों में उसी धुन पर गई जाती है, जो इस फिल्म में थी। इन्हीं के साथ मुकेश के स्वर में कालजयी गीत -'जब कोई तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे।'
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सुभाष घई
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जब कोई तुम्हारा हृदय तोड़ दे गीत को लेकर आनंदजी बताते हैं, "इस गीत को लेकर मनोज कुमार ने हमसे कहा, यहा नायक अकेले में यह गीत गा रहा है। इसलिए यहा बहुत कम साज का इस्तेमाल कीजिए। हमने ऐसा ही किया सिर्फ तीन यंत्र रखे लेकिन जब हम रिकॉर्डिंग कर रहे थे तो हमको अजीब-सा लगता था क्योंकि हम अपने संगीत में बड़े ऑर्केस्ट्रा का इस्तेमाल करने के अभ्यस्त थे। इसके चलते इस गीत को हमको 40 बार रिकॉर्ड करना पड़ा तब जाकर वह गाना बना जो मनोज कुमार चाहते थे, हम चाहते थे।" मनोज कुमार, अर्जुन हिंगोरानी और मनमोहन देसाई के अलावा प्रकाश मेहरा, सुभाष घई, फिरोज खान, चंद्रा बारोट और सुलतान अहमद जैसे अन्य कई निर्देशकों ने भी अपनी पहली फिल्म कल्याणजी-आनंदजी के साथ की। इनमें प्रकाश मेहरा के साथ तो उनकी पहली फिल्म 'हसीना मान जाएगी' से 'जंजीर', 'हाथ की सफाई', 'हेराफेरी', 'मुकद्दर का सिकंदर', 'लावारिस' जैसी सुपर हिट फिल्मों के साथ 'घुंघरू', 'ईमानदार' और 'जादूगर' जैसी वे फिल्में भी हैं जो चल नहीं सकीं। लेकिन मेहरा की दूसरी फिल्मों में 'वादा करले साजना', 'मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है' जैसे सदाबहार गीत हैं। उधर, 'मुकद्दर का सिकंदर' के तो लगभग सभी गीत सुपर हिट रहे। 'रोते हुए आते हैं सब', 'दिल तो है दिल', 'सलाम ए इश्क मेरी जान जरा कुबूल कर लो', 'प्यार जिंदगी है' और 'ओ साथी रे तेरे बिना क्या जीना।'
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