{"_id":"5c45a953bdec224d04452e5c","slug":"know-facts-about-mughal-e-azam-director-karimuddin-asif","type":"photo-gallery","status":"publish","title_hn":"'मुग़ल-ए-आज़म' के असली शहंशाह के.आसिफ़ से मिलिए, जानिए उनके अनकहे तथ्य","category":{"title":"Bollywood","title_hn":"बॉलीवुड","slug":"bollywood"}}
'मुग़ल-ए-आज़म' के असली शहंशाह के.आसिफ़ से मिलिए, जानिए उनके अनकहे तथ्य
बीबीसी हिंदी
Published by: विजय जैन
Updated Mon, 21 Jan 2019 06:27 PM IST
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mughal e azam
- फोटो : file photo
पचास के दशक में बनी फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' को बनाने के लिए जिस पागलपन, कल्पनाशीलता और जीवट की ज़रूरत थी, वो के. आसिफ़ में कूट-कूट कर भरी हुई थी। हमेशा चुटकी से सिगरेट या सिगार की राख झाड़ने वाले करीमउद्दीन आसिफ़, अभिनेता नज़ीर के भतीजे थे। शुरू में नज़ीर ने उन्हें फ़िल्मों से जोड़ने की कोशिश की लेकिन आसिफ़ का वहाँ दिल न लगा। नज़ीर ने उनके लिए दर्ज़ी की एक दुकान खुलवा दी। थोड़े दिनों में ही वो दुकान बंद करवानी पड़ी, क्योंकि ये देखा गया कि आसिफ़ का अधिकतर समय पड़ोस के एक दर्ज़ी की लड़की से रोमांस करने में बीत रहा था। नज़ीर ने तब उन्हें ज़बरदस्ती ठेल कर फ़िल्म निर्माण की तरफ़ दोबारा भेजा।
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मुगल-ए-आजम
- फोटो : file photo
के. आसिफ़ ने अपने जीवन में सिर्फ़ दो फ़िल्मों का निर्देशन किया, 1944 में आई 'फूल' और फिर 'मुग़ल-ए-आज़म।' लेकिन इसके बावजूद उनका नाम भारतीय फ़िल्म इतिहास में हमेशा स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा। हाल में आई किताब 'ये उन दिनों की बात है' के लेखक यासिर अब्बासी बताते हैं, "मुग़ल-ए-आज़म मैं कम से कम 100 बार देख चुका हूँ।" "लेकिन आज भी जब वो टीवी पर आती है, तो मैं चैनल 'चेंज' नहीं कर पाता हूँ।" "कमाल का 'विज़न' और 'पैशन' था आसिफ़ में। सिर्फ़ दो फ़िल्म करने के बावजूद आसिफ़ को चोटी के निर्देशकों की क़तार में रखा जाता है।" यूँ तो 'मुग़ल-ए-आज़म' का हर पक्ष मज़बूत है, लेकिन इस फ़िल्म को दर्शकों के बीच लोकप्रिय बनाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी इसके संवादों ने।
यासिर अब्बासी बताते हैं कि अनारकली को ज़िंदा चुनवाए जाने से पहले का दृश्य था, जिसमें अकबर उनसे उनकी आख़िरी इच्छा पूछते हैं और वो कहती हैं कि वो एक दिन के लिए भारत की मलका-ए-आज़म बनना चाहती हैं। "आसिफ़ ने अपने तीनों संवाद में लेखकों से पूछा कि इस पर अनारकली को क्या कहना चाहिए। अमानउल्लाह साहब जो कि ज़ीनत अमान के पिता थे और एहसान रिज़वी ने अपने लिखे डायलॉग सुनाए। इसके बाद आसिफ़ साहब ने वजाहत मिर्ज़ा की तरफ़ देखा।"
"वजाहत मिर्ज़ा ने अपने मुंह से पान की पीक उगालदान में डाल कर कहा, 'ये सब 'डायलॉग' बकवास हैं। इतने शब्दों की ज़रूरत क्या है?" "उन्होंने फिर अपने पानदान से एक पर्चा निकाल कर पढ़ा, अनारकली सिर्फ़ सलाम करेगी और सिर्फ़ ये कहेगी कि 'शहंशाह की इन बेहिसाब बख़शीशों के बदले में ये कनीज़ जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर को अपना ये ख़ून माफ़ करती है।" "मिर्ज़ा का ये कहना था कि आसिफ़ ने दौड़ कर उन्हें गले लगा लिया और वहाँ मौजूद दोनों डायलॉग लेखकों ने अपने कागज़ फाड़ कर फेंक दिए।"
यासिर अब्बासी बताते हैं कि अनारकली को ज़िंदा चुनवाए जाने से पहले का दृश्य था, जिसमें अकबर उनसे उनकी आख़िरी इच्छा पूछते हैं और वो कहती हैं कि वो एक दिन के लिए भारत की मलका-ए-आज़म बनना चाहती हैं। "आसिफ़ ने अपने तीनों संवाद में लेखकों से पूछा कि इस पर अनारकली को क्या कहना चाहिए। अमानउल्लाह साहब जो कि ज़ीनत अमान के पिता थे और एहसान रिज़वी ने अपने लिखे डायलॉग सुनाए। इसके बाद आसिफ़ साहब ने वजाहत मिर्ज़ा की तरफ़ देखा।"
"वजाहत मिर्ज़ा ने अपने मुंह से पान की पीक उगालदान में डाल कर कहा, 'ये सब 'डायलॉग' बकवास हैं। इतने शब्दों की ज़रूरत क्या है?" "उन्होंने फिर अपने पानदान से एक पर्चा निकाल कर पढ़ा, अनारकली सिर्फ़ सलाम करेगी और सिर्फ़ ये कहेगी कि 'शहंशाह की इन बेहिसाब बख़शीशों के बदले में ये कनीज़ जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर को अपना ये ख़ून माफ़ करती है।" "मिर्ज़ा का ये कहना था कि आसिफ़ ने दौड़ कर उन्हें गले लगा लिया और वहाँ मौजूद दोनों डायलॉग लेखकों ने अपने कागज़ फाड़ कर फेंक दिए।"
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Karimuddin Asif
- फोटो : social media
जब 'मोहे पनघट पे नंदलाल छेड़ गयो' गाना फ़िल्माया जा रहा था तो पहले आसिफ़ और फिर नृत्य निर्देशक लच्छू महाराज नौशाद के पास आ कर बोले, "नौशाद साहब ये गाना ऐसा बनाएं कि वाजिद अली शाह के दरबार के ज़माने की ठुमरी और दादरा याद आ जाए।" "नौशाद ने कहा कि कथक नृत्य में चेहरे और हाथ के भाव सबसे महत्वपूर्ण होते हैं। इसे फ़िल्म में मधुबाला पर फ़िल्माया जाएगा। लेकिन क्या वो इसके साथ न्याय कर पाएंगी, क्योंकि वो कत्थक नृत्यागना तो हैं नहीं?" "लच्छू महाराज ने कहा, ये आप मेरे ऊपर छोड़ दीजिए।
उन्होंने शूटिंग से पहले मधुबाला से नृत्य का घंटों अभ्यास कराया। पूरा गाना उन पर फ़िल्माया गया और किसी 'डुप्लीकेट' का इस्तेमाल नहीं किया गया।" दिलचस्प बात ये है कि इस गाने की शूटिंग देखने कई बड़े लोग सेट पर पहुंचते थे। चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई, मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग देखी। यासिर अब्बासी बताते हैं, "उस ज़माने में भुट्टो मुंबई में ही रहा करते थे।
इस गाने की शूटिंग जितने दिन चली, वो रोज़ आए शूटिंग देखने। भुट्टो और आसिफ़ में गहरी दोस्ती थी। वो जब भी सेट पर होते थे, आसिफ़ साहब और सेट पर मौजूद लोगों के साथ खाना खाते थे।" "उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि मुग़ल-ए-आज़म के सेट पर मौजूद रहने वाला ये शख़्स एक दिन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनेगा।"
उन्होंने शूटिंग से पहले मधुबाला से नृत्य का घंटों अभ्यास कराया। पूरा गाना उन पर फ़िल्माया गया और किसी 'डुप्लीकेट' का इस्तेमाल नहीं किया गया।" दिलचस्प बात ये है कि इस गाने की शूटिंग देखने कई बड़े लोग सेट पर पहुंचते थे। चीन के प्रधानमंत्री चू एन लाई, मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ और बाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने मुग़ल-ए-आज़म की शूटिंग देखी। यासिर अब्बासी बताते हैं, "उस ज़माने में भुट्टो मुंबई में ही रहा करते थे।
इस गाने की शूटिंग जितने दिन चली, वो रोज़ आए शूटिंग देखने। भुट्टो और आसिफ़ में गहरी दोस्ती थी। वो जब भी सेट पर होते थे, आसिफ़ साहब और सेट पर मौजूद लोगों के साथ खाना खाते थे।" "उस समय किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि मुग़ल-ए-आज़म के सेट पर मौजूद रहने वाला ये शख़्स एक दिन पाकिस्तान का प्रधानमंत्री बनेगा।"
mughal-e-azam
- फोटो : social media
फ़िल्म में जोधाबाई द्वारा पहने गए कपड़ों को हैदराबाद के सालारजंग म्यूज़ियम से उधार लिया गया था। सेट के खंभे, दीवारें और मेहराब बनाने में महीनों लग गए थे। ख़तीजा अकबर अपनी किताब 'द स्टोरी ऑफ़ मधुबाला' में लिखती हैं, "शीश महल का सेट बनने में पूरे दो साल लग गए। आसिफ़ को इसकी प्रेरणा जयपुर के आमेर के क़िले में बने शीशमहल से मिली थी। उस समय भारत में उपलब्ध रंगीन शीशों की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी।
"उन शीशों को बहुत ज़्यादा क़ीमत चुका कर बेल्जियम से मंगवाया गया। इससे पहले ईद आ गई। रसम का पालन करते हुए मुग़ल-ए-आज़म के फ़ाइनांसर शाहपूरजी मिस्त्री आसिफ़ के घर पर ईदी लेकर पहुंचे।" "वो एक चाँदी की ट्रे पर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपये ले कर गए। आसिफ़ ने पैसे उठाए और मिस्त्री को वापस करते हुए कहा, 'इन पैसों का इस्तेमाल, मेरे लिए बेल्जियम से शीशे मंगवाने के लिए करिए।"
"उन शीशों को बहुत ज़्यादा क़ीमत चुका कर बेल्जियम से मंगवाया गया। इससे पहले ईद आ गई। रसम का पालन करते हुए मुग़ल-ए-आज़म के फ़ाइनांसर शाहपूरजी मिस्त्री आसिफ़ के घर पर ईदी लेकर पहुंचे।" "वो एक चाँदी की ट्रे पर कुछ सोने के सिक्के और एक लाख रुपये ले कर गए। आसिफ़ ने पैसे उठाए और मिस्त्री को वापस करते हुए कहा, 'इन पैसों का इस्तेमाल, मेरे लिए बेल्जियम से शीशे मंगवाने के लिए करिए।"
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mughal-e-azam
- फोटो : social media
'मुग़ल-ए-आज़म' फ़िल्म का सबसे मशहूर गाना था, 'प्यार किया तो डरना क्या....', इसको लिखने और संगीत में ढालने में नौशाद और शकील बदायूंनी को पूरी रात लग गई। यासिर अब्बासी बताते हैं, "जब आसिफ़ ने नौशाद को उस गाने की 'सिचयुएशन' बताई तो उस ज़माने में एक और फ़िल्म बन रही थी अनारकली, जो इसी तरह की कहानी पर आधारित थी। नौशाद ने उनसे कहा कि दोनों फ़िल्मों में बहुत समानता है। उनका गाना रिकॉर्ड हो चुका है जिसे मैंने सुना भी है।" "अगर हम भी उसी तरह का गाना चुनेगें तो ये 'रिपीटेशन' लगेगा। आप इस 'सिचयुएशन' को बदल क्यों नहीं देते।
आसिफ़ साहब ने कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे। मैंने ये चुनौती स्वीकार कर ली है। अब आप की बारी है इस पर खरा उतरने की। जब इसे संगीत में ढालने की बारी आई तो सबसे मुश्किल काम था इसे लिखना।" "शाम को छह बजे जब सूरज ढ़ल रहा था नौशाद और शकील बदायूंनी ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। शकील साहब ने क़रीब एक दर्जन मुखड़े लिखे, जिसमें कभी उन्होंने गीत का सहारा लिया तो कभी ग़ज़ल का। लेकिन बात बनी नहीं। कुछ देर में नौशाद का पूरा कमरा काग़ज़ की चिटों से भर गया।"
आसिफ़ साहब ने कहा कि हम ऐसा नहीं करेंगे। मैंने ये चुनौती स्वीकार कर ली है। अब आप की बारी है इस पर खरा उतरने की। जब इसे संगीत में ढालने की बारी आई तो सबसे मुश्किल काम था इसे लिखना।" "शाम को छह बजे जब सूरज ढ़ल रहा था नौशाद और शकील बदायूंनी ने अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया। शकील साहब ने क़रीब एक दर्जन मुखड़े लिखे, जिसमें कभी उन्होंने गीत का सहारा लिया तो कभी ग़ज़ल का। लेकिन बात बनी नहीं। कुछ देर में नौशाद का पूरा कमरा काग़ज़ की चिटों से भर गया।"