सब्सक्राइब करें

EXCLUSIVE: सात मिनट में पढ़िए सौरभ शुक्ला के अभिनय के सारे गुरुमंत्र, एक एक कर किए सारे खुलासे

Pankaj Shukla पंकज शुक्ल
Updated Sat, 30 Jan 2021 08:39 AM IST
विज्ञापन
Saurabh Shukla exclusive interview with Pankaj Shukla on his art of acting and his directors
सौरभ शुक्ला - फोटो : फाइल फोटो

सिनेमा में अभिनय के सिल्वर जुबली साल पार कर चुके सौरभ शुक्ल की पैदाइश भले गोरखपुर की हो, लेकिन सियासत उन्हें समझ नहीं आती। वह सिर्फ और सिर्फ सिनेमा समझते हैं, कैसे? समझा रहे हैं अमर उजाला के लिए पंकज शुक्ल के साथ हुई इस खास मुलाकात में।



आपको सिनेमा का शौक कैसे लगा?
सिनेमा का शौक हमें बचपन से ही लग गया। मेरा परिवार बड़ा विचित्र परिवार रहा है। पिता जी मेरे शत्रुघ्न शुक्ला आगरा घराने के मशहूर गायक और मां (जोगमाया शुक्ला) तो प्रथम तबला वादक थीं ही। दोनों को पिक्चर देखने का बड़ा शौक था। हम चार लोग, मैं, मेरा बड़ा भाई, मां और बाबा, हर संडे को सुबह मॉर्निंग शो में अंग्रेजी पिक्चर जरूर देखते थे। फिर घर आकर खाना वगैरह खाकर शाम को छह बजे एक हिंदी फिल्म का शो भी जरूर देखते थे। ये हमारा तय साप्ताहिक कार्यक्रम था, महीने में आठ फिल्में तो हम देखते ही देखते थे। मेरे कितने दोस्त थे जिन्होंने डेढ़-डेढ़ साल फिल्म नहीं देखी, जिनके पिताजी गर्व से कहते कि हमने 20 साल से पिक्चर नहीं देखी और देखने भी नहीं देते। लेकिन, हमारे घर में फिल्म का माहौल शुरू से रहा।

Trending Videos
Saurabh Shukla exclusive interview with Pankaj Shukla on his art of acting and his directors
सौरभ शुक्ला

आपने इतना सिनेमा देखा, आप खुद भी लेखक, निर्देशक हैं, आपको जब कोई किरदार मिलता है तो सिरा कहां से पकड़ते हैं?
मैं सबसे पहले पटकथा को लेकर चलता हूं। अपने जीवन से या आसपास के लोगों में उसका संदर्भ ढूंढता हूं। फिर जरूरत पड़ती है तो उसके दायरे से भी निकलकर पढ़ता हूं। उसकी पृष्ठभूमि देखता हूं। एक पटकथा में वे सारे सूत्र होते हैं जिनके आधार पर कोई कलाकार अपने किरदार की कल्पना कर सकता है। वही गीता है, वही बाइबल है। अपने आसपास के या जान पहचान के लोगों से भी कभी मदद मिल जाती है, जिनके साथ कभी ऐसा कुछ हुआ हो। हां, लेखक या निर्देशक होने का ये तो अंतर रहता है कि वह बाकी कलाकारों से अलग होता है। लेखक को अनुसंधान की आदत होती है। वह उसके पास एक अतिरिक्त गुण तो होता ही है।

विज्ञापन
विज्ञापन
Saurabh Shukla exclusive interview with Pankaj Shukla on his art of acting and his directors
सौरभ शुक्ला

फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में जो याद रह जाने लायक किरदार हैं, उनमें से एक आपका भी गॉडफादर जैसा किरदार है मास्टरजी का। आप अपने निभाए किरदारों को यादगार बनाने के लिए अलग से क्या कुछ करते हैं?
इसको मैं अपनी खुशकिस्मती मानूंगा कि जिस तरह से मैंने चीजों को सोचा और जिस तरह से मैंने चीजों को निभाया, वह लोगों को पसंद आया। कहना चाहिए कि वह लोगों से जुड़ पाया। किसी भी किरदार को दर्शक जब पसंद करते हैं तो वह उस चरित्र में अपने जीवन की कुछ न कुछ छाप देखते हैं। अभिनय में सबसे पहले मैं अपने आप से जुड़ता हूं क्योंकि मैं भी एक आम इंसान हूं। मैं खुद से सवाल करता हूं कि क्या जनता इस किरदार को अपना सकेगी?

Saurabh Shukla exclusive interview with Pankaj Shukla on his art of acting and his directors
सौरभ शुक्ला

ऐसा ही एक और किरदार मुझे याद आता है, जस्टिस सुंदरलाल त्रिपाठी...
ये कमाल की बात है कि मैं आज तक कोर्ट नहीं गया हूं। इस किरदार को निभाने में भी इस फिल्म के निर्देशक सुभाष कपूर काफी मददगार साबित हुए थे। उन्होंने अदालतों के बहुत सारे किस्से मुझे बताए थे। ‘जॉली एलएलबी’ से पहले हिंदी फिल्मों में जज को एक कार्डबोर्ड कैरेक्टर के तौर पर देखा जाता था, एक इंसान के तौर पर नहीं। लेकिन आखिर वह भी इंसान है। तो उसमें इंसानियत के सूत्र तलाशे गए कि सुंदरलाल त्रिपाठी रहता कहां होगा, तनख्वाह कितनी होगी? अमेरिका का जज तो है नहीं कि एक बंगला होगा और वहां एक उसका लैब्राडॉर होगा और चार पांच नौकर चाकर होंगे। नहीं, ऐसा जज वह है नहीं, वह तो आम जिंदगी जीने वाला जज है।

विज्ञापन
Saurabh Shukla exclusive interview with Pankaj Shukla on his art of acting and his directors
सौरभ शुक्ला

निर्देशक अनुराग बासु का भी काफी लगाव रहा है आपसे। सुभाष कपूर और अनुराग दोनों अलग अलग तरीके के निर्देशक हैं, आपकी संगत कैसी रही उनके साथ?
बहुत अच्छी रही। अगर मैं सुभाष कपूर और अनुराग को देखूं तो दोनों की कार्यप्रणाली बहुत अलग है। अनुराग जिस तरह से फिल्में बनाते हैं, वह हमेशा कहानी में कुछ न कुछ खोजते रहते हैं। फिल्म बनाते वक्त भी ढूंढते रहते हैं, छोटी छोटी चीजें ढूंढते रहते हैं। सुभाष भी ये कहते हैं लेकिन सुभाष ये सब पहले खोजते हैं और फिर पटकथा लिखते हैं। पटकथा पूरी हो जाने के बाद वह ये दुनिया रचने निकलते हैं। अनुराग के साथ ऐसा होता है कि आप किसी यात्रा पर निकल तो गए लेकिन रुकना कहां है ये पता नहीं। रात फाइवस्टार होटल में भी हो सकती है और किसी ढाबे पर भी। उनके साथ यात्रा का एक अलग रोमांच है।

विज्ञापन
अगली फोटो गैलरी देखें
सबसे विश्वसनीय Hindi News वेबसाइट अमर उजाला पर पढ़ें मनोरंजन समाचार से जुड़ी ब्रेकिंग अपडेट। मनोरंजन जगत की अन्य खबरें जैसे बॉलीवुड न्यूज़, लाइव टीवी न्यूज़, लेटेस्ट हॉलीवुड न्यूज़ और मूवी रिव्यु आदि से संबंधित ब्रेकिंग न्यूज़
 
रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें अमर उजाला हिंदी न्यूज़ APP अपने मोबाइल पर।
Amar Ujala Android Hindi News APP Amar Ujala iOS Hindi News APP
विज्ञापन
विज्ञापन

एड फ्री अनुभव के लिए अमर उजाला प्रीमियम सब्सक्राइब करें

Next Article

Election
एप में पढ़ें

Followed