हिंदी सिनेमा में चार बड़े सालाना जलसे पुरस्कारों के होते हैं। फिल्मफेयर पुरस्कार, स्क्रीन पुरस्कार, जी सिनेमा पुरस्कार और उमंग। सबसे आखिरी वाला पुरस्कार चूंकि मुंबई पुलिस खुद कराती है तो जिनको भी इसके लिए न्योता जाता है, उस सितारे को यहां आना ही होता है। फिल्मफेयर पुरस्कार खरीदने की बात ऋषि कपूर अपनी बायोग्राफी में लिख चुके हैं, अब स्क्रीन अवार्ड्स आयोजित करने वाले मीडिया समूह के पूर्व सीईओ और एडिटर इन चीफ रह चुके शेखर गुप्ता ने इन पुरस्कारों को लेकर कुछ सनसनीखेज खुलासे किए हैं।
स्क्रीन अवॉर्ड्स को लेकर शेखर गुप्ता ने किए सनसनीखेज खुलासे, कटरीना ने इसलिए बहाए थे बड़े बड़े आंसू
रेटिंग का पूरा खेल
अंग्रेजी न्यूज वेबसाइ़ट द प्रिंट में प्रकाशित इस आलेख में शेखर बताते हैं कि हिंदी फिल्मों के लिए होने वाले यह पुरस्कार समारोह रेटिंग का ही खेल है। उन्होंने लिखा, 'भारत में फिल्म अवॉर्ड्स ऑस्कर की तरह केवल पुरस्कार देने और बयान देने तक ही सीमित नहीं होते। यहां ये कई घंटों चलने वाले टीवी शो भी होते हैं जिनके लिए मेजबान चैनल भुगतान करता है और फिर अपने स्पॉन्सर्स से पैसा वसूलता है। यह रेटिंग का खेल है। रेटिंग दो तरह से बढ़ाई जाती है; एक तो मंच पर टॉप फिल्मी सितारों को बुलाकर उनसे उस साल के हिट गीत पर डांस करवा कर और दूसरा दर्शकों के बीच सबसे चहेते कलाकारों को दिखाकर।'
बच्चन परिवार ने किया बहिष्कार
शेखर इस लेख में खुलासा करते हैं कि इस समारोह में कौन फिल्मी सितारे मौजूद होंगे और कौन नहीं? यह मिलने वाले पुरस्कार पर निर्भर करता है। अगर उन्हें पुरस्कार मिल रहा है तो वह आएंगे और उनका पूरा गुट भी आएगा लेकिन अगर पुरस्कार नहीं मिलते तो एक साथ सभी मिलकर पुरस्कार समारोह का बहिष्कार कर देते हैं। शेखर ने बच्चन परिवार से संबंधित अपने एक अनुभव के बारे में लिखा, 'मुझे तारीख ठीक से याद नहीं है और फिल्मों के अपने कमजोर सामान्य ज्ञान के लिए मैं माफी मांगते हुए कहूंगा कि मेरा पहला अनुभव शायद 2004 का है। उस वक्त बच्चन परिवार ने एक साथ कुछ मतभेदों के चलते पुरस्कार समारोह का बहिष्कार किया था।'
अवॉर्ड न मिलने पर करण जौहर हुए नाराज
वर्ष 2011 के पुरस्कार समारोह का जिक्र करते हुए शेखर ने लिखा, 'उस साल फिल्म 'माय नेम इज खान' सबसे बड़ी हिट फिल्म थी लेकिन स्क्रीन अवॉर्ड में इसे किसी भी श्रेणी में नामित नहीं किया गया। उस वक्त जूरी के अध्यक्ष जाने माने कलाकार अमोल पालेकर थे। इस समारोह में शाहरुख को करार के तहत मंच पर एक प्रस्तुतकर्ता की भूमिका निभानी थी। समारोह के तीन दिन पहले ही मुझे बहिष्कार करने की धमकियां मिलने लगीं। करण जौहर मुझसे शिकायत कर रहे थे कि आखिर जूरी को उनकी फिल्म किसी भी अवॉर्ड के काबिल कैसे नहीं लगी?'
शेखर ने आगे लिखा, 'मुझे इस तरह के तर्क दिए गए कि अमोल पालेकर को साल की सबसे बड़ी हिट फिल्म आखिर नापसंद कैसे है? उन्होंने अनुराग कश्यप की मामूली सी फिल्म 'उड़ान' को चुनने की हिम्मत कैसे की? फिर हमने धैर्य रखा और जब व्यूअर्स चॉइस अवॉर्ड की घोषणा हुई तब हमारी सांस में सांस आई। वह अवॉर्ड उस फिल्म के पक्ष में था।'
अवॉर्ड लेने नहीं पहुंचे फरहान अख्तर
अगला किस्सा उन्होंने वर्ष 2012 का बताया है जब विद्या बालन की 'द डर्टी पिक्चर' और मल्टीस्टारर 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' को संयुक्त रूप से सर्वश्रेष्ठ फिल्म का स्क्रीन अवॉर्ड दिया गया। शेखर ने लिखा, 'यहां तक तो ठीक था लेकिन इन दोनों फिल्मों में सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का अवॉर्ड जोया अख्तर को छोड़कर मिलन लूथरा को घोषित कर दिया गया। इसके बाद 'जिंदगी ना मिलेगी दोबारा' के सभी कलाकारों और कर्मचारियों ने अवॉर्ड शो का बहिष्कार करने की घोषणा कर दी। अब जब सर्वश्रेष्ठ फिल्म के अवॉर्ड को लेने के लिए कोई मंच पर ही नहीं आएगा तो समारोह कैसा है।'
शेखर ने आगे लिखा, 'उस शाम हताशा में मैंने जावेद अख्तर तक से फोन पर गुजारिश की। फिर इस समारोह में फरहान आए जरूर लेकिन रुठे मूड में काले कपड़े पहनकर। उन्होंने कहा कि वह सिर्फ आदर जताने के लिए आए हैं लेकिन पुरस्कार ग्रहण नहीं करेंगे और कुछ मिनट के बाद ही वह चले भी गए। उस फिल्म की निर्माता इरोस नाउ की कर्ता धर्ता कृषिका लुल्ला उस समय वहां मौजूद थीं। हमने उनसे गुजारिश की लेकिन वह तो एकदम सन्न रह गईं। आखिर सभी कलाकारों के रहते इस पुरस्कार को वह कैसे ले सकती हैं। अंत में हमें अपने ही एक कर्मचारी को फिल्म की ओर से अवॉर्ड लेने के लिए भेजना पड़ा।'