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Kargil Vijay Diwas 2025: पिता वतन पर कुर्बान, अब बेटे सरहदों के निगहबान, कम नहीं हुआ जज्बा

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, शिमला Published by: अंकेश डोगरा Updated Sat, 26 Jul 2025 05:53 AM IST
सार

Kargil Vijay Diwas 2025: आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के उन सपूतों की कहानियां बताएंगे जिन्होंने अपने प्राण देश के लिए न्योछावर कर दिए। साल 1999 में ऑपरेशन विजय में सेना के 527 जवान बलिदान हुए। इनमें से 52 हिमाचली जवान थे। सबसे अधिक कांगड़ा के 15 जवान शामिल थे।

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Kargil Vijay Diwas 2025 52 soldiers from Himachal Pradesh sacrificed their lives in Operation Vijay
Kargil Vijay Diwas 2025 - फोटो : अमर उजाला नेटवर्क

Kargil Vijay Diwas 2025: कारगिल में पाकिस्तान पर भारत की जीत को आज 26 साल हो गए हैं। न जोश कम हुआ है न ही जज्बा। कारगिल युद्ध में हिमाचल के 52 जांबाज बलिदान हुए। सेना में हिमाचल के सैकड़ों जवानों ने विपरीत परिस्थितियों में दुश्मन के छक्के छुड़ाए। कैप्टन विक्रम बतरा और सूबेदार मेजर संजय कुमार को सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। कारगिल में देश के लिए कुर्बान हुए हिमाचल के कई जांबाजों के बेटे भी अब सरहद की निगहबानी कर रहे हैं। युद्ध में पति को खो चुकीं कई वीर नारियों ने अपने बेटों को सेना में भेज दिया है। जिस गांव के सपूत ने शहादत पाई, प्रेरित होकर उसी गांव के कई युवा सेना में भर्ती हो गए। इस जज्बे को सलाम...



52 हिमाचली जवानों के नाम कुछ इस प्रकार हैं- परमवीर चक्र विजेता कैप्टन बिक्रम बतरा, कैप्टन सौरभ कालिया, ग्रेनेडियर विजेंद्र सिंह नंदलु, बलराम दास, राइफलमैन राकेश कुमार, अशोक कुमार, लांस नायक वीर सिंह बलदोआ, लखबीर सिंह, संतोष सिंह, जगजीत सिंह, हवलदार सुरेंद्र सिंह, राइफलमैन सुनील जंग, योगिंद्र सिंह, सुरजीत सिंह और लांस नायक पदम सिंह शामिल हैं। मंडी से कैप्टन दीपक गुलेरिया, नायब सूबेदार खेम चंद राणा, हवलदार कृष्ण चंद, नायक सरवन कुमार, सिपाही टेक राम मस्ताना, सिपाही राकेश कुमार चौहान, सिपाही नरेश कुमार, सिपाही हीरा सिंह, जीडीआर पूर्ण सिंह, हवलदार गुरदास सिंह। हवलदार कश्मीर सिंह(एम-इन-डी), हवलदार राजकुमार (एम-इन-डी), सिपाही दिनेश कुमार, हवलदार स्वामी दास चंदेल, सिपाही राकेश कुमार, आरएफएन प्रवीण कुमार, सिपाही सुनील कुमार, आरएफएन दीप चंद(एम-इन-डी)। हवलदार उधम सिंह, नायक मंगल सिंह, आरएफएन विजय पाल, हवलदार राजकुमार, नायक अश्वनी कुमार, हवलदार प्यार सिंह, नायक मस्त राम। जीएनआर यशवंत सिंह, आरएफएन श्याम सिंह (वीआरसी), जीडीआर नरेश कुमार, जीडीआर अनंत राम। ऊना से कैप्टन अमोल कालिया वीर चक्र, आरएफएन मनोहर लाल। सोलन (2) सोलन से सिपाही धर्मेंद्र सिंह, आरएफएन प्रदीप कुमार, सिरमौर (2) सिरमौर से आरएफएन कुलविंद सिंह, आरएफएन कल्याण सिंह (सेना मेडल) चंबा (1) सिपाही खेम राज, कुल्लू (1)  हवलदार डोला राम (सेना मेडल)

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Kargil Vijay Diwas 2025 52 soldiers from Himachal Pradesh sacrificed their lives in Operation Vijay
बलिदानी प्रदीप कुमार - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी

प्रदीप ने कारगिल में शहादत पाई तो पंदल गांव के 12 युवक हो गए सेना में भर्ती 
सोलन के रामशहर के पंदल के बलिदानी प्रदीप कुमार कारगिल युद्ध में देश की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए थे। आज उनसे प्रेरणा लेकर गांव के बारह युवा देश की सरहदों के निगेहबान बने हैं। गांव के 12 युवाओं ने प्रदीप कुमार से प्रेरणा ली और देश के लिए कुछ भी करने की ठानी और सेना में भर्ती हो गए। नालागढ़ उपमंडल के रामशहर के पंदल गांव के 4 जेक राइफल के राइफलमैन प्रदीप कुमार (23) नौ जुलाई 1999 को बलिदान हो गए थे। प्रदीप कुमार उस समय 20 आरआर यूनिट में कुपवाड़ा में तैनात थे। भारत-पाक युद्ध शुरू होने से परिजनों की बेटे की शादी के लिए की तैयारियां भी धरी की धरी रह गईं। शहीद प्रदीप कुमार की बहन जमना कौशिक ने बताया कि कारगिल युद्ध के दौरान नौ जुलाई 1999 को उनके भाई ने देश के लिए कुर्बानी दी थी। उन्होंने कहा कि घर में भाई की शादी की तैयारियां चल रही थीं। भाई ताबूत में लिपटकर वापस आया। जमना ने बताया कि उनके जाने के बाद गांव के युवाओं ने उनसे प्रेरणा ली और आज गांव के 12 युवा देश सेवा के लिए सरहदों पर तैनात हैं। जब भी वह छुट्टियों में घर आते हैं तो उनके भाई की शहादत को याद करते हैं। जमना ने बताया कि उनके परिवार में भी देश सेवा का जज्बा पहले से ही है। उनके पिता जगन्नाथ भी सेना से सूबेदार के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं और 1961 और 1965 की लड़ाई लड़ चुके हैं।

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कारगिल विजय दिवस/ बलिदानी श्याम सिंह भीखटा - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
कैप्टन विक्रम बतरा की टीम का हिस्सा थे बलिदानी श्याम सिंह भीखटा
चौपाल उपमंडल के कलारा गांव के सपूत राइफलमैन श्याम सिंह भीखटा ने मात्र 25 वर्ष की आयु में 1999 में ऑपरेशन विजय के दौरान बलिदान दिया था। कलारा में 26 जनवरी 1974 को नंद राम और देवकू देवी के घर जन्मे श्याम सिंह को बचपन से ही सेना में भर्ती होने का जुनून था। 29 दिसंबर 1994 को वह 13 जैक राइफल में भर्ती हो गए। 1999 में पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल से खदेड़ने के लिए भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय चलाया। ऑपरेशन विजय में चार्ली कंपनी की असॉल्ट टीम के सदस्य बने श्याम सिंह कंपनी के साथ परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बतरा के नेतृत्व में पांच जुलाई को कारगिल में टाइगर हिल की मशको घाटी के प्वाइंट 4875 के लिए निकले थे। बेहद खराब मौसम और विपरीत परिस्थितियों के बीच उनकी टीम आगे बढ़ रही थी। प्वांइट 4875 में बड़ी संख्या में दुश्मन छिपे थे, जिसका उन को अंदाजा नहीं था। इस दौरान घात लगाकर बैठे दुश्मनों ने भारतीय जवानों पर हमला कर दिया। अदम्य साहस का परिचय देते हुए श्याम सिंह ने एक घुसपैठिए को वहीं ढेर कर दिया, जबकि एक को घायल कर दिया। श्याम सिंह के साहस से प्रेरणा ले कर उनकी टुकड़ी के अन्य जवान भी दोगुने जोश के साथ लक्ष्य की ओर बढ़ते गए। दुश्मन को खदेड़ कर उनकी टीम ने प्वाइंट विक्रम बत्रा के नेतृत्व में 4875 पर कब्जा कर लिया। चार्ली कंपनी जीत का जश्न मना भी नहीं सकी थी कि श्याम सिंह दुश्मन की एक स्नाइपर राइफल से चली गोली से बलिदान हो गए। शहीद श्याम सिंह को मरणोपरांत विशेष सेना मेडल वीर चक्र प्रदान किया गया।
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शहीद राजकुमार की वीर नारी रक्षा देवी/कारगिल शहीद हवलदार राजकुमार। (फाइल फोटो) - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी

तीन बेटे हैं, एक ही जा पाया सेना में, नाती- पोतों को भी देश सेवा के लिए भेजूंगी : रक्षा
शहादत के 26 साल बाद भी उनकी वीर पत्नी रक्षा देवी की आंखों में गर्व है और जुबां पर संकल्प। कहती हैं कि अब नाती-पोतों को भी फौज में भेजूंगी। जब राजकुमार बलिदान हुए। तब उनके बड़े बेटे राहुल वशिष्ठ की उम्र आठ साल, दूसरे बेटे रजत की उम्र महज छह साल। छोटा बेटा रॉबिन महज चार साल का था। रक्षा देवी ने उसी समय ठान लिया था कि उनके बेटे भी सेना में जाएंगे। उसी समय बेटे रजत ने छह साल की उम्र में ही सेना में जाने का निश्चय कर लिया। आज वह भारतीय सेना में जम्मू की अग्रिम चौकी पर तैनात हैं। हालांकि, दो बेटे किन्हीं कारणों से सेना में नहीं जा सके। उनमें से बड़े बेटे राहुल वशिष्ठ घुमारवीं में पेट्रोल पंप चलाते हैं, जबकि छोटे भाई रॉबिन निजी कंपनी में नौकरी करते हैं। राहुल कहते हैं कि वह खुद भी सेना में जाना चाहते थे, लेकिन परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया। कहा कि जब रजत सेना में शामिल हुआ तो वो पल पूरे परिवार के लिए सबसे भावुक और गर्व भरा था। राहुल ने कहा कि जब पिता जब शहीद हुए तो उनकी उम्र बहुत कम थी, लेकिन पिता की शहादत ने उन्हें हमेशा गौरवान्वित किया। संयुक्त परिवार था तो चाचा और ताया ने कभी उन्हें परेशान नहीं होने दिया। एक चाचा तो हाल ही में सेना से सेवानिवृत हुए हैं। उन्होंने मांग की कि मोरसिंघी स्कूल और टिक्कर-कसोलियां सड़क का नाम उनके शहीद पिता राजकुमार के नाम पर किया जाए, ताकि भावी पीढ़ी को भी प्रेरणा मिलती रहे। बताते चलें कि शहीद राजकुमार के परिवार की कहानी सिर्फ बलिदान की नहीं, बल्कि संकल्प, समर्पण और संस्कार की कहानी है,जो हर कारगिल दिवस पर देश को गर्व और प्रेरणा दोनों देती है। 

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कैप्टन अमोल कालिया के घर रखी तोप/बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया की फोटो (फाइल)। - फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
शहीद अमोल के घर में रखी तोप के मॉडल का मुंह पाकिस्तान की ओर
कारगिल युद्ध के बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया की यादों को ताजा रखने के लिए परिवार ने उनकी हर चीज को सहेज कर रखा है। इसमें एक मारुति कार भी है। परिवार ने मकान की छत पर एक तोप का मॉडल भी बना कर रखा है, जिसका मुंह पाकिस्तान की तरफ किया गया है। बलिदानी कैप्टन अमोल कालिया मेमोरियल सोसायटी हर साल शहीद कै. अमोल कालिया के जन्मोत्सव और शहीदी दिवस को उत्साह के साथ मनाती है। अमोल कालिया के बड़े भाई अमन कालिया भी देश सेवा में तत्पर हैं। वह वायु सेना में बतौर ग्रुप कैप्टन तैनात हैं और इस वक्त राजस्थान के सूरतगढ़ में सेवाएं दे रहे हैं। खास है कि अमोल कालिया और अमन कालिया का कमीशन वर्ष 1995 में हुआ था। कारगिल युद्ध में अमन कालिया ने अपने छोटे भाई को खो दिया। अमोल कालिया मूलत: ऊना जिले के चिंतपूर्णी के थे और उनका परिवार नया नंगल पंजाब में रहता है। अमोल कालिया और अमन कालिया के बाद अगली पीढ़ी भी सेना में जाने की तैयारी में है। शहीद कैप्टन अमोल कालिया को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया। उन्होंने करीब साढ़े तीन साल भारतीय सेना में सेवाएं दी। कैप्टन अमोल कालिया के पिता सतपाल कालिया का कहना है कि हाल ही में भारत की ओर से किए ऑपरेशन सिंदूर में सेना ने शानदार कार्य किया। डॉ. कालिया कहते हैं कि अब उम्र हो गई है, लेकिन बेटे की बहादुरी से सीना चौड़ा हो जाता है। अमोल कालिया स्वामी विवेकानंद को अपना अपना आदर्श मानते थे और बलिदान के समय पर भी उनके पार्थिव शरीर से उनकी जेब से स्वामी विवेकानंद का प्रेरक संदेश मिला था। उसमें लिखा था ..विश्वास करो कि तुम महान हो और महान कार्यों के लिए ही तुम्हारा जन्म हुआ है। तुम कुत्तों के भौंकने से न डरो, न ही बिजली के गड़गड़ाने से घबराओ, उठो काम करो, तुम्हारे देश को वीर नायक चाहिए। वीर बनो चट्टान की तरह स्थिर रहो। सत्य की सर्वदा विजय होती है। बहादुर बनो, बहादुर बनो... मनुष्य केवल एक ही बार मरता है, विद्युतीय संचार से नवप्राण भर दो।
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