दंतेवाड़ा SP गौरव राय ने कहा, "आज कुल 37 माओवादियों ने आत्मसमर्पण किया है, जिसमें 27 इनामी माओवादी भी शामिल हैं। 2024-25 में लगातार ऑपरेशन चलाए गए, कई मुठभेड़ हुए और कई आत्मसमर्पण हुए. इसी के तहत आज छत्तीसगढ़ सरकार की पुनर्वास नीति का फायदा उठाते हुए पुनर्वास से पुनर्जीवन अभियान के तहत 37 माओवादी हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए हैं.पिछले 20 महीनों में 508 माओवादी आत्मसमर्पण कर चुके हैं नक्सलियों के आत्मसमर्पण की प्रक्रिया भारत में माओवादी हिंसा को समाप्त करने और उन्हें समाज की मुख्यधारा में वापस लाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा चलाई गई एक महत्वपूर्ण पहल है। यह नीति पुनर्वास-केंद्रित दृष्टिकोण पर आधारित है, जिसका उद्देश्य हिंसा का मार्ग छोड़कर शांतिपूर्ण जीवन अपनाने वाले नक्सलियों को सुरक्षा, सम्मान और आर्थिक सहायता प्रदान करना है।
नक्सली आमतौर पर सुरक्षा बलों के सघन अभियानों, मुठभेड़ों, और माओवादी संगठन की अमानवीय विचारधारा, शोषण तथा अत्याचारों से तंग आकर आत्मसमर्पण करते हैं। छत्तीसगढ़ में 'पूना मारगेम' (पुनर्वास के माध्यम से सामाजिक एकीकरण) और 'नियद नेल्ला नार' जैसी पहलें इस दिशा में प्रभावी साबित हुई हैं।
नक्सली किसी भी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF), जिला मजिस्ट्रेट, जिला पुलिस अधीक्षक या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित अधिकारी के सामने आत्मसमर्पण करने के लिए स्वतंत्र होते हैं। आत्मसमर्पण करने पर उन्हें अक्सर उनके हथियारों के साथ मुख्यधारा में लौटने की अनुमति दी जाती है।
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली द्वारा किए गए जघन्य अपराधों के मुकदमे अदालतों में चलते रहते हैं, लेकिन मामूली अपराधों के लिए राज्य सरकार के विवेक पर मुकदमा वापस लेने या प्ली बारगेनिंग की अनुमति दी जा सकती है। सरकार द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता भी प्रदान की जा सकती है।
हाल के महीनों में, छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बीजापुर और महाराष्ट्र के गोंदिया जैसे नक्सल प्रभावित जिलों में बड़ी संख्या में नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। उदाहरण के लिए, दंतेवाड़ा में 'पूना मारगेम' अभियान के तहत 37 माओवादियों (जिनमें 27 पर ₹65 लाख का इनाम था) ने हथियार डाले। इसी तरह, महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ (MMC) ज़ोन से 11 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया, जिनमें ₹25 लाख का इनामी कमांडर अनंत उर्फ़ विनोद सैयाना भी शामिल था। यह निरंतर आत्मसमर्पण की लहर दर्शाती है कि सुरक्षा बलों की कार्रवाई और आकर्षक पुनर्वास नीतियों के कारण माओवादी संगठन की ताकत लगातार कमजोर हो रही है।