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नीतीश-भाजपा की कहानी: 26 साल में दूसरी बार नीतीश की भाजपा से दूरी, जानें कब-कब और क्यों आई दोनों में दरार
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: हिमांशु मिश्रा
Updated Tue, 09 Aug 2022 04:20 PM IST
सार
2000 में जब पहली बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार भाजपा शपथ के दौरान उनकी सहयोगी थी।
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बिहार की राजनीति
- फोटो : अमर उजाला
बिहार में एक बार फिर से भाजपा और जदयू का गठबंधन टूट गया है। 26 साल के साथ में ये दूसरी बार है जब नीतीश भाजपा से अलग हो रहे हैं। नीतीश कुमार समता पार्टी के दौर से ही भाजपा के साथ आ गए थे। 2000 में जब पहली बार मुख्यमंत्री बने तब भाजपा के साथ ही थे। तब से लेकर अब तक सात बार वह इस पद पर रह चुके हैं। इनमें से पांच बार शपथ के दौरान भाजपा उनकी सहयोगी थी। आइए जानते हैं पूरी कहानी...
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nitish kumar
- फोटो : अमर उजाला
जब 2000 में पहली बार मुख्यमंत्री बने
2000 में विधानसभा चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एकसाथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी।
2000 में विधानसभा चुनाव हुए। तब नीतीश कुमार की पार्टी का नाम समता पार्टी था। भाजपा, समता पार्टी और कुछ अन्य छोटे दलों ने मिलकर चुनाव लड़ा। वहीं, राजद, कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी एकसाथ मैदान में थे। एनडीए गठबंधन को चुनाव में 151 सीटें मिलीं। भाजपा ने 67 सीटें जीती थीं। नीतीश कुमार की पार्टी के 34 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। एनडीए गठबंधन ने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री चुन लिया। नीतीश ने सीएम पद की शपथ भी ले ली। हालांकि, बहुमत का आंकड़ा 163 था। राजद की अगुआई वाली यूपीए के पास 159 विधायक थे। बहुमत का आंकड़ा नहीं होने के कारण नीतीश को सात दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा और यूपीए गठबंधन की सरकार बनी।
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नीतीश कुमार
- फोटो : अमर उजाला
2005 में जब जदयू-भाजपा ने मिलकर लड़ा चुनाव
ये बात 2005 विधानसभा चुनाव की है। चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला।
राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
ये बात 2005 विधानसभा चुनाव की है। चुनाव से दो साल पहले यानी 2003 में समता पार्टी नए नाम जदयू के तौर पर अस्तित्व में आई। इसमें नीतीश कुमार की समता पार्टी के साथ लोक शक्ति, जनता दल (शरद यादव ग्रुप), राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का विलय हो गया था। जदयू और भाजपा ने मिलकर एनडीए गठबंधन में चुनाव लड़ा। फरवरी में हुए इस चुनाव में किसी भी गठबंधन या दल को बहुमत नहीं मिला।
राम विलास पासवान की लोजपा को 29 सीटें मिलीं। पासवान जिसके साथ जाते उसकी सरकार बनती। लेकिन, पासवान दलित या मुस्लिम मुख्यमंत्री बनाने की मांग पर अड़ गए। दोनों ही गठबंधन उनकी शर्त मानने को तैयार नहीं हुए। क्योंकि, एक तरफ तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी नेता थीं, तो दूसरी तरफ नीतीश कुमार गठबंधन के नेता थे। छह महीने राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
नए सिरे से चुनाव हुए। इस बार एनडीए गठबंधन में शामिल जदूय को 88 और भाजपा को 55 सीटें मिलीं। जो बहुमत के आंकड़े 122 से काफी ज्यादा था। नीतीश कुमार दूसरी बार मुख्यमंत्री बने और पांच साल का कार्यकाल पूरा किया।
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव(फाइल)
- फोटो : PTI
2010 में तीसरी बार किंग बने नीतीश
एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने।
2013 में टूटा 17 साल पुराना साथ
2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ का साथ छोड़ा था। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया।
भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सहयोगी राजद और कांग्रेस थीं।
एनडीए गठबंधन ने 2010 में भी साथ में मिलकर चुनाव लड़ा। तब जदयू को 115, भाजपा को 91 सीटें मिलीं। लालू प्रसाद यादव की राजद 22 सीटों पर सिमटकर रह गई। तब तीसरी बार नीतीश कुमार को बिहार की सत्ता मिली। वह मुख्यमंत्री बने।
2013 में टूटा 17 साल पुराना साथ
2013 में नीतीश ने 17 साल पुराने साथ का साथ छोड़ा था। तब भाजपा ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया था। नीतीश कुमार भाजपा के इस फैसले से सहमत नहीं थे। उन्होंने एनडीए से अलग होने का फैसला ले लिया।
भाजपा के सभी मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया। राजद ने नीतीश को समर्थन का एलान कर दिया। नीतीश पद पर बने रहे। 2014 का लोकसभा चुनाव नीतीश की पार्टी ने अकेले लड़ा। उसे महज दो सीटों पर जीत मिली। एनडीए केंद्र की सत्ता में आई। नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। लोकसभा चुनाव में हार के बाद नीतीश ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने महादलित परिवार से आने वाले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, फरवरी 2015 में नीतीश कुमार ने फिर से बिहार की कमान अपने हाथ में ले ली और मुख्यमंत्री बने। इस बार उनकी सहयोगी राजद और कांग्रेस थीं।
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तेजस्वी की रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल हुए नीतीश कुमार
- फोटो : अमर उजाला
2015 में जब बिहार में बना महागठबंधन
2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए।
2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने।
2015 विधानसभा चुनाव से पहले जदयू, राजद, कांग्रेस समेत अन्य छोटे दल एकसाथ आ गए। सभी ने मिलकर महागठबंधन बनाया। तब लालू की राजद को 80, नीतीश कुमार की जदयू को 71 सीटें मिलीं। भाजपा के 53 विधायक चुने गए। राजद, कांग्रेस और जदयू ने मिलकर सरकार बनाई और नीतीश कुमार फिर से पांचवी बार मुख्यमंत्री बन गए। लालू के बेटे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम और दूसरे बेटे तेज प्रताद स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए।
2017 में तेजस्वी पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे तो नीतीश कुमार ने उनसे इस्तीफा मांगा। हालांकि, राजद ने मना कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने खुद इस्तीफा दे दिया और चंद घंटों बाद भाजपा के साथ मिलकर फिर से सरकार बना ली। भाजपा की मदद से सीएम बने।