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MP News: महेश्वर को शिवरात्रि मेले से वंचित रखना उचित नहीं! यह निर्णय विकास की राह में बाधा, जानिए मामला?

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, महेश्वर Published by: उदित दीक्षित Updated Thu, 27 Feb 2025 11:14 PM IST
सार

शिवरात्रि मेलों को लगाने के पीछे मूल उद्देश्य स्थानीय संस्कृति से जनमानस को अवगत करवाना, पर्यटन को बढ़ावा देना और व्यापार-व्यवसाय को पनपने का अवसर प्रदान करना है। ऐसे में तीर्थ मेला प्राधिकरण की 51 शहरों की सूची में महेश्वर का नहीं होना हैरानी की बात है।

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Maheshwar no place in list of Shivratri fairs organized in 51 cities of MP
महेश्वर को शिवरात्रि मेले के लिए नहीं चुना गया। - फोटो : अमर उजाला

मध्य प्रदेश शासन तीर्थ मेला प्राधिकरण प्रदेश के 51 शहरों में शिवरात्रि मेलों का आयोजन कर रहा है। इनकी शुरुआत महाशिवरात्रि से हो गई है। आश्चर्य की बात यह है कि इन 51 शहरों में पौराणिक, धार्मिक और पर्यटन नगरी महेश्वर का नाम नहीं है, जबकि मेले के लिए आवश्यक योग्यताएं यहां भरपूर हैं। नर्मदा किनारे बसे महेश्वर में अनेक शिवालय, पुरा महत्व की इमारतें और सुंदर घाट हैं। जान लें कि पूर्व में यहां शिवरात्रि मेले का आयोजन होता था, लेकिन समय के साथ शासन-प्रशासन ने इसे बिसरा दिया। इस तरह के मेले संस्कृति के प्रचार-प्रसार का जरूरी हिस्सा होते हैं। महेश्वर को शिवरात्रि मेले से वंचित करना, क्या नगर विकास की राह में रोड़ा नहीं कहा जाएगा।   



शिवरात्रि मेलों को लगाने के पीछे मूल उद्देश्य स्थानीय संस्कृति से जनमानस को अवगत करवाना, पर्यटन को बढ़ावा देना और व्यापार-व्यवसाय को पनपने का अवसर प्रदान करना है। प्रदेश के जिन 51 शहरों में ये मेले आयोजित किए जा रहे हैं, उनमें से अनेक तो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। कुछ मेले जिला मुख्यालय पर भी आयोजित किए जा रहे हैं। इन स्थानों में से अनेक को प्रचार-प्रसार के लिए किसी मेले की आवश्यकता भी नहीं है।

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महेश्वर को शिवरात्रि मेले के लिए नहीं चुना गया। - फोटो : अमर उजाला

महेश्वर में क्या नहीं है!
इसके विपरीत महेश्वर प्राचीन और पौराणिक महत्व का नगर है, यहां पवित्र नर्मदा नदी, सुंदर घाट, अनेक शिवालय होने के साथ प्राकृतिक सौंदर्य की अकूत संपदा भी बिखरी पड़ी है। गुप्त काशी, चार धाम में रामेश्वर, स्वयंभू महेश्वर, कालेश्वर, ज्वालेश्वर, कदम्बेश्वर, काशी विश्वनाथ,राजराजेश्वर, तिल भांडेश्वर, गुप्तेश्वर, मांतगेश्वर, पातालेश्वर और गोरी सोमनाथ शिवालय आदि के साथ बहुत कुछ है, जो मध्य प्रदेश शासन के तीर्थ मेला प्राधिकरण की कसौटी पर खरा उतरने के लिए पर्याप्त है।

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महेश्वर को शिवरात्रि मेले के लिए नहीं चुना गया। - फोटो : अमर उजाला

महेश्वरी साड़ियों की दुनिया में पहचान 
महेश्वर में हैंडलूम का काम भी होता है। महेश्वरी साडियां देश-दुनिया में अपनी अलग पहचान रखती हैं। फिल्मकारों को भी महेश्वर खूब भाता है। इसीलिए यहां अनेक फिल्मों का फिल्मांकन हो चुका है। राज्य शासन भी महेश्वर में महेश्वर उत्सव जैसे आयोजन करता रहा है। हाल ही में राज्य केबिनेट की महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन भी यहां हो चुका है।    

मेला नहीं तो क्या नुकसान?
अब महेश्वर में शिवरात्रि मेला आयोजित न होने के नुकसान का आकलन कर लिया जाए। मेले स्थानीय संस्कृति के विकास के संवाहक होते हैं। यानी मेला न लगाकर लोगों को स्थानीय संस्कृति को जानने-समझने के अवसर से महरूम किया गया। मेले से स्थानीय व्यापार-व्यवसाय को फलने-फूलने का अवसर मिलता है। यह अवसर से भी शहर से छीन लिया गया। इस तरह के मेलों से रोजगार के अवसर भी महेश्वर को प्राप्त हो सकते थे, जो यहां की गरीबी दूर करने में कुछ हद तक सहायक होता।
 

Maheshwar no place in list of Shivratri fairs organized in 51 cities of MP
महेश्वर को शिवरात्रि मेले के लिए नहीं चुना गया। - फोटो : अमर उजाला

पुनर्विचार होना चाहिए 
अभी देर नहीं हुई है। महाशिवरात्रि को बीते दो ही दिन हुए हैं, पांच-सात दिनों में भी मेला यहां आयोजित किया जा सकता है। जरूरत है शासन की इच्छा शक्ति की। राज्य शासन का तीर्थ मेला प्राधिकरण अपने फैसले पर पुनर्विचार करे और महेश्वर को मेला सूची में शामिल कर ले तो महेश्वर को पनपने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हो सकता है। स्थानीय जन प्रतिनिधि भी नगर हित के इस काम में प्रयास करेंगे तो बात बन सकती है। मेले के आयोजन में मुख्य भूमिका निभाने वाली नगर परिषद को आगे बढ़कर इस दिशा में काम करना होगा।   

तीन दशक पहले मेला 
अंतिम शिवरात्रि मेला नगर में करीब 30-32 वर्ष पूर्व आयोजित किया गया था। मेले की सफलता का अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि उमड़ती भीड़ के चलते 20 दिन के मेले को बढ़ाकर 30 दिन कर दिया गया था। स्थानीय निवासियों ने मेले में आने वालों का हृदय से स्वागत किया था। व्यापार भी खूब हुआ था। लोगों की बदहाली को भी सहारा लगा था। बीते करीब तीन दशकों में अनेक जन प्रतिनिधि बदल गए, प्रशासनिक अधिकारी बदल गए, जिला योजना मंडल में महेश्वर का पक्ष मजबूती से रखने वाले भी नहीं रहे। ऐसे में नगर विकास के अवसर छिनते रहे।

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