शिव या महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। वह त्रिदेवों में एक देव हैं। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। इन्हें भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधार आदि कई नामों से भी जाना जाता है। तंत्र साधना में इन्हे भैरव के नाम से भी जाना जाता है। शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं। वेद में इनका नाम रुद्र है। शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। शिव का अर्थ यद्यपि कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे हमेशा लय एवं प्रलय दोनों को अपने अधीन किए हुए हैं। रावण, शनि, कश्यप ऋषि आदि इनके भक्त हुए है। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव कहा जाता है। पुराणों के अनुसार भोलेनाथ स्वयंभू है लेकिन भोलेनाथ से जुड़ी की रहस्यमयी कथाएं प्रचलित हैं। आइए आपको भगवान शिव से जुड़े कुछ ऐसे रहस्यों के बारे में बताते हैं जो शायद ही लोगों को पता है।
कौन थे भगवान शिव के प्रथम शिष्य, जानें भगवान शिव से जुड़े 7 अनजान रहस्य


भगवान शिव की उत्पत्ति
भगवान शिव स्वयंभू हैं, लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार जहां भगवान विष्णु ब्रह्माजी की नाभि से उत्पन्न हुए वहीं शिव विष्णु जी के माथे के तेज से उत्पन्न हुए, ऐसा उल्लेख मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार माथे के तेज से उत्पन्न होने के कारण ही शिव-शंभू हमेशा योगमुद्रा में रहते हैं।

शिव और शंकर एक ही हैं ?
कुछ पुराणों में भगवान शंकर को शिव इसलिए कहते हैं क्योंकि वे निराकार शिव के समान है। निराकार शिव को शिवलिंग के रूप में पूजा जाता है। शंकर को हमेशा योगी के रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए चित्रित किया गया है। अतः शिव और शंकर दो अलग सत्ताएं हैं। मान्यता है कि महेश(नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं और रुद्रदेवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

भगवान शिव से हुई असुरों की उत्पत्ति
पुराणों के अनुसार जालंधर नामक राक्षस की उत्पत्ति भगवान शंकर के तेज से हुई थी। इसलिए जालंधर को भगवान शिव का एक अंश माना जाता है। अन्य मान्यता के अनुसार भूमा नामक असुर कि उत्पत्ति भगवान भोलेनाथ के पसीने की बूंद से हुई थी। इसके अतिरिक्त कुछ पौराणिक कथाओं में वर्णन मिलता है कि अंधक और खुजा भी भगवान शंकर के पुत्र थे परन्तु धर्म शास्त्रों में इन दोनों का कहीं कोई उल्लेख प्राप्त नहीं है।

शिव के प्रथम शिष्य
पुराणों के अनुसार भगवान शिव के प्रारम्भिक शिष्य सप्तऋषि माने जाते हैं। मान्यता है कि सप्तऋषियों ने भगवान शिव के ज्ञान का प्रचार प्रसार पृथ्वी पर किया था जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। मान्यता है कि भगवान शिव ने ही गुरु शिष्य की परंपरा का आरंभ किया था। शिव के शिष्यों में बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेंद्र, प्राचेतस मनु, भारद्वाज शामिल थे।
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