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Ludhiana News: कनाडा में फर्जी शरण याचिकाओं का खुलासा, भारतीय समुदाय में बढ़ी चिंता, ब्रैम्पटन में विरोध
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-फर्जी दस्तावेजों के सहारे खालिस्तान समर्थक और समलैंगिक बताकर पीआर लेने की कोशिश
-कनाडा सरकार ने आव्रजन व शरण फाइलों की जांच में सख्ती शुरू की
-- -
कंवरपाल
हलवारा। कनाडा में राजनीतिक शरण और स्थायी निवास (पीआर) पाने के लिए फर्जी दस्तावेजों और झूठे दावों के बढ़ते मामलों के खुलासे से भारतीय, खासकर पंजाबी समुदाय में गहरी चिंता व्याप्त है। इसी को लेकर ओंटारियो के ब्रैम्पटन में भारतीय छात्रों, स्टडी व वर्क परमिट धारकों और कुशल श्रमिकों की एक विशाल बैठक हुई जिसमें पीआर पाने के लिए गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेने वालों के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराया गया।
बैठक में मौजूद लोगों ने एक स्वर में कहा कि कुछ लोग खुद को खालिस्तान समर्थक या समलैंगिक बताकर राजनीतिक शरण की फर्जी याचिकाएं दाखिल कर रहे हैं जिससे पूरे भारतीय समुदाय की छवि कनाडा सरकार की नजर में धूमिल हो रही है। प्रतिभागियों ने इस मुद्दे पर अपनी चिंताएं औपचारिक रूप से कनाडा सरकार के समक्ष रखने का निर्णय भी लिया।
हाल ही में कनाडा की एक संघीय अदालत ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के जैतो सरजा निवासी गगनदीप सिंह की शरण याचिका खारिज कर दी। 20 नवंबर को न्यायमूर्ति डेनिस गैस्कॉन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता भारत में सुरक्षित आंतरिक यात्रा के विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद उत्पीड़न का ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा। अदालत ने माना कि स्टूडेंट वीजा पर कनाडा पहुंचा गगनदीप न तो खालिस्तान समर्थक है और न ही समलैंगिक, जैसा कि उसने दावा किया था। इसके बाद उसके डिपोर्टेशन के आदेश जारी कर दिए गए।
बैठक में शामिल लोगों का मानना है कि गगनदीप जैसे मामलों के चलते ही कनाडा सरकार ने आव्रजन नीतियों में सख्ती की है। बिल सी-12 और ओंटारियो इमिग्रेंट नॉमिनी प्रोग्राम (ओआईएनपी) के तहत हजारों आवेदनों की वापसी को भी इन्हीं गलत और गैरकानूनी गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है। इससे वास्तविक और योग्य आवेदकों के लिए पीआर का रास्ता कठिन हो गया है। भारतीय मूल के मनप्रीत सिंह ने बताया कि बैठक में उन इमीग्रेशन कंसल्टेंट कंपनियों की भी तीखी आलोचना हुई, जो पैसों के लालच में लोगों को गैरकानूनी रास्ते अपनाने की सलाह देती हैं। वक्ताओं ने कहा कि ऐसे एजेंट न केवल कानून तोड़ रहे हैं, बल्कि योग्य उम्मीदवारों के अवसर भी छीन रहे हैं।
क्या है बिल सी-12
-सीमा सुरक्षा को मजबूत करना।
-संगठित अपराध से निपटना।
-आव्रजन और शरण प्रणाली की दक्षता बढ़ाना।
-आपात स्थितियों में आवेदन रोकने या दस्तावेज निलंबित करने की शक्तियां अधिकारियों को देना।
-कंसल्टेंट कंपनियों पर भी सवाल।
पंजाब पर पड़ा सीधा असर
पीआर नीतियों में बदलाव का सबसे ज्यादा असर पोस्ट ग्रेजुएट वर्क परमिट (पीजीडब्ल्यूपी) धारकों पर पड़ा है। पीआर के इंतजार में बैठे हजारों युवाओं के सामने भविष्य को लेकर अनिश्चितता खड़ी हो गई है। इसका असर पंजाब तक साफ दिख रहा है जहां इमिग्रेशन सेंटर बड़ी संख्या में बंद हो चुके हैं। भारी किराया और स्टाफ खर्च वहन न कर पाने के कारण कई संचालकों ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए हैं। भारतीय समुदाय का साफ कहना है कि फर्जीवाड़े के खिलाफ सख्ती जरूरी है लेकिन ईमानदार और योग्य आवेदकों के हितों की भी रक्षा होनी चाहिए।
संवाद
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-कनाडा सरकार ने आव्रजन व शरण फाइलों की जांच में सख्ती शुरू की
कंवरपाल
हलवारा। कनाडा में राजनीतिक शरण और स्थायी निवास (पीआर) पाने के लिए फर्जी दस्तावेजों और झूठे दावों के बढ़ते मामलों के खुलासे से भारतीय, खासकर पंजाबी समुदाय में गहरी चिंता व्याप्त है। इसी को लेकर ओंटारियो के ब्रैम्पटन में भारतीय छात्रों, स्टडी व वर्क परमिट धारकों और कुशल श्रमिकों की एक विशाल बैठक हुई जिसमें पीआर पाने के लिए गैरकानूनी तरीकों का सहारा लेने वालों के खिलाफ कड़ा विरोध दर्ज कराया गया।
बैठक में मौजूद लोगों ने एक स्वर में कहा कि कुछ लोग खुद को खालिस्तान समर्थक या समलैंगिक बताकर राजनीतिक शरण की फर्जी याचिकाएं दाखिल कर रहे हैं जिससे पूरे भारतीय समुदाय की छवि कनाडा सरकार की नजर में धूमिल हो रही है। प्रतिभागियों ने इस मुद्दे पर अपनी चिंताएं औपचारिक रूप से कनाडा सरकार के समक्ष रखने का निर्णय भी लिया।
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हाल ही में कनाडा की एक संघीय अदालत ने पंजाब के गुरदासपुर जिले के जैतो सरजा निवासी गगनदीप सिंह की शरण याचिका खारिज कर दी। 20 नवंबर को न्यायमूर्ति डेनिस गैस्कॉन ने फैसला सुनाते हुए कहा कि याचिकाकर्ता भारत में सुरक्षित आंतरिक यात्रा के विकल्प उपलब्ध होने के बावजूद उत्पीड़न का ठोस सबूत पेश करने में असफल रहा। अदालत ने माना कि स्टूडेंट वीजा पर कनाडा पहुंचा गगनदीप न तो खालिस्तान समर्थक है और न ही समलैंगिक, जैसा कि उसने दावा किया था। इसके बाद उसके डिपोर्टेशन के आदेश जारी कर दिए गए।
बैठक में शामिल लोगों का मानना है कि गगनदीप जैसे मामलों के चलते ही कनाडा सरकार ने आव्रजन नीतियों में सख्ती की है। बिल सी-12 और ओंटारियो इमिग्रेंट नॉमिनी प्रोग्राम (ओआईएनपी) के तहत हजारों आवेदनों की वापसी को भी इन्हीं गलत और गैरकानूनी गतिविधियों से जोड़ा जा रहा है। इससे वास्तविक और योग्य आवेदकों के लिए पीआर का रास्ता कठिन हो गया है। भारतीय मूल के मनप्रीत सिंह ने बताया कि बैठक में उन इमीग्रेशन कंसल्टेंट कंपनियों की भी तीखी आलोचना हुई, जो पैसों के लालच में लोगों को गैरकानूनी रास्ते अपनाने की सलाह देती हैं। वक्ताओं ने कहा कि ऐसे एजेंट न केवल कानून तोड़ रहे हैं, बल्कि योग्य उम्मीदवारों के अवसर भी छीन रहे हैं।
क्या है बिल सी-12
-सीमा सुरक्षा को मजबूत करना।
-संगठित अपराध से निपटना।
-आव्रजन और शरण प्रणाली की दक्षता बढ़ाना।
-आपात स्थितियों में आवेदन रोकने या दस्तावेज निलंबित करने की शक्तियां अधिकारियों को देना।
-कंसल्टेंट कंपनियों पर भी सवाल।
पंजाब पर पड़ा सीधा असर
पीआर नीतियों में बदलाव का सबसे ज्यादा असर पोस्ट ग्रेजुएट वर्क परमिट (पीजीडब्ल्यूपी) धारकों पर पड़ा है। पीआर के इंतजार में बैठे हजारों युवाओं के सामने भविष्य को लेकर अनिश्चितता खड़ी हो गई है। इसका असर पंजाब तक साफ दिख रहा है जहां इमिग्रेशन सेंटर बड़ी संख्या में बंद हो चुके हैं। भारी किराया और स्टाफ खर्च वहन न कर पाने के कारण कई संचालकों ने अपने लाइसेंस सरेंडर कर दिए हैं। भारतीय समुदाय का साफ कहना है कि फर्जीवाड़े के खिलाफ सख्ती जरूरी है लेकिन ईमानदार और योग्य आवेदकों के हितों की भी रक्षा होनी चाहिए।
संवाद