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Ludhiana News: पंजाबी यूनिवर्सिटी में यश चोपड़ा की फिल्मों पर शोध, पंजाबी विरासत पर भी गहरी रोशनी
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पटियाला। पंजाबी यूनिवर्सिटी में हाल ही में एक शोध में मशहूर बॉलीवुड डायरेक्टर यश चोपड़ा की फिल्मों का विश्लेषण किया गया। इस शोध का उद्देश्य न केवल यश चोपड़ा के सिनेमा की दुनिया में योगदान को समझना था बल्कि उनकी ओर से पेश किए गए इंसानी भावनाओं और भारतीय समाज के सांस्कृतिक पहलुओं को भी उभारना था। यह शोध पत्रकारिता और जन संचार विभाग के डॉ. हैप्पी जेजे की अगुवाई में शोधकर्ता डा. सरबदीप कौर द्वारा किया गया।
शोध में शामिल 22 महत्वपूर्ण फिल्में डाॅ. सरबदीप कौर ने बताया कि इस अध्ययन में यश चोपड़ा की ओर से निर्देशित 22 महत्वपूर्ण फिल्मों का विश्लेषण किया गया। ये फिल्में उन्होंने पांच दशकों में बनाई, जिनमें धूल का फूल (1959), धर्मपुत्र (1961), वक़्त (1965), दीवार (1975), चांदनी (1989), लम्हे (1991), दिल तो पागल है (1997), वीर-ज़ारा (2004), और जब तक है जान (2012) जैसी फिल्में शामिल हैं। इस शोध में पाया गया कि यश चोपड़ा की फिल्मों में प्यार को एक नुकसान पहुंचाने वाली भावना नहीं, बल्कि एक मज़बूत, कुर्बानी देने वाली और सम्मानजनक भावना के रूप में दिखाया गया है। उनके पात्र जुदाई, समाज के दबाव और निजी मुश्किलों का सामना करते हुए भी मजबूती और इज्जत के साथ आगे बढ़ते हैं। वीर-ज़ारा जैसे किरदार अपनी आज़ादी को कुर्बान करते हैं, वहीं चांदनी जैसी महिलाएं अपनी आजादी को चुनती हैं।
प्रतीकों का महत्व और पंजाबी विरासत
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि यश चोपड़ा की फिल्मों में प्रतीकों का बहुत बड़ा महत्व होता है, जो फिल्मों के विषय को और गहरा करते हैं। जैसे ट्रेनें जीवन के अनिश्चित सफर को, बारिश भावनाओं को, चांद किस्मत को और धार्मिक स्थल आस्था को प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं, इस शोध ने यश चोपड़ा की पंजाबी विरासत से गहरे जुड़ाव को भी दर्शाया। पंजाबी अपनापन, पारिवारिक मूल्य और पंजाबी रिवाज उनकी फिल्मों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। वीर-ज़ारा जैसी फिल्में, जो साझी विरासत का उत्सव मनाती हैं, उनकी पंजाबी सांस्कृतिक जड़ों को उजागर करती हैं।
यूनिवर्सिटी का सहयोग और भविष्य की उम्मीदें
पंजाबी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. जगदीप सिंह ने इस शोध को सराहा और शोधकर्ता तथा उनके सुपरवाइजर को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पंजाबी यूनिवर्सिटी में की जा रही रिसर्च का दायरा बहुत बड़ा है और इस तरह के अध्ययन से छात्रों को सिनेमा और समाज के आपसी रिश्तों को समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह शोध उन छात्रों के लिए एक प्रेरणा बनेगा जो सिनेमा और भारतीय समाज की गहरी परतों को समझने में रुचि रखते हैं।
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शोध में शामिल 22 महत्वपूर्ण फिल्में डाॅ. सरबदीप कौर ने बताया कि इस अध्ययन में यश चोपड़ा की ओर से निर्देशित 22 महत्वपूर्ण फिल्मों का विश्लेषण किया गया। ये फिल्में उन्होंने पांच दशकों में बनाई, जिनमें धूल का फूल (1959), धर्मपुत्र (1961), वक़्त (1965), दीवार (1975), चांदनी (1989), लम्हे (1991), दिल तो पागल है (1997), वीर-ज़ारा (2004), और जब तक है जान (2012) जैसी फिल्में शामिल हैं। इस शोध में पाया गया कि यश चोपड़ा की फिल्मों में प्यार को एक नुकसान पहुंचाने वाली भावना नहीं, बल्कि एक मज़बूत, कुर्बानी देने वाली और सम्मानजनक भावना के रूप में दिखाया गया है। उनके पात्र जुदाई, समाज के दबाव और निजी मुश्किलों का सामना करते हुए भी मजबूती और इज्जत के साथ आगे बढ़ते हैं। वीर-ज़ारा जैसे किरदार अपनी आज़ादी को कुर्बान करते हैं, वहीं चांदनी जैसी महिलाएं अपनी आजादी को चुनती हैं।
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प्रतीकों का महत्व और पंजाबी विरासत
शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि यश चोपड़ा की फिल्मों में प्रतीकों का बहुत बड़ा महत्व होता है, जो फिल्मों के विषय को और गहरा करते हैं। जैसे ट्रेनें जीवन के अनिश्चित सफर को, बारिश भावनाओं को, चांद किस्मत को और धार्मिक स्थल आस्था को प्रदर्शित करते हैं। इतना ही नहीं, इस शोध ने यश चोपड़ा की पंजाबी विरासत से गहरे जुड़ाव को भी दर्शाया। पंजाबी अपनापन, पारिवारिक मूल्य और पंजाबी रिवाज उनकी फिल्मों में स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं। वीर-ज़ारा जैसी फिल्में, जो साझी विरासत का उत्सव मनाती हैं, उनकी पंजाबी सांस्कृतिक जड़ों को उजागर करती हैं।
यूनिवर्सिटी का सहयोग और भविष्य की उम्मीदें
पंजाबी यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डॉ. जगदीप सिंह ने इस शोध को सराहा और शोधकर्ता तथा उनके सुपरवाइजर को बधाई दी। उन्होंने कहा कि पंजाबी यूनिवर्सिटी में की जा रही रिसर्च का दायरा बहुत बड़ा है और इस तरह के अध्ययन से छात्रों को सिनेमा और समाज के आपसी रिश्तों को समझने में मदद मिलेगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि यह शोध उन छात्रों के लिए एक प्रेरणा बनेगा जो सिनेमा और भारतीय समाज की गहरी परतों को समझने में रुचि रखते हैं।