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कैसी ये जिंदगानी: तीन दशक से बेड़ियों में जी रहा बालोतरा का महेंद्र; परिजन मायूस... प्रशासन नाकाम, जानें कहानी

न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बालोतरा Published by: बालोतरा ब्यूरो Updated Mon, 22 Dec 2025 08:53 PM IST
सार

Balotra News: बालोतरा जिले के समदड़ी क्षेत्र के मुथो के वेरा में रहने वाला महेंद्र माली पिछले करीब 35 वर्षों से मानसिक विक्षिप्तता के कारण बेड़ियों में जकड़ा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट के बाद प्रशासन मौके पर पहुंचा।
 

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Balotra News: Mahendra Mali from Samdari, has been in chains for 3 decades, suffering from mental illness
35 वर्षों से जंजीरों में जकड़ा है महेंद्र माली - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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बालोतरा जिले के समदड़ी नगर पालिका क्षेत्र के मुथो के वेरा इलाके से इंसानियत को झकझोर देने वाला मामला सामने आया है। यहां रहने वाले महेंद्र माली का जीवन बीते करीब तीन दशक से बेड़ियों में बंधा हुआ है। मानसिक विक्षिप्तता से जूझ रहे महेंद्र को उनके ही परिजनों ने मजबूरी में जंजीरों से बांधकर रखा है, ताकि वह स्वयं को या दूसरों को नुकसान न पहुंचा सके।

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महेंद्र की उम्र आज लगभग 40 वर्ष के आसपास बताई जा रही है, लेकिन परिजनों के अनुसार उसकी मानसिक स्थिति तब बिगड़नी शुरू हुई थी जब वह चौथी कक्षा में पढ़ता था। धीरे-धीरे उसकी गतिविधियां असामान्य होती चली गईं। परिवार ने उस समय स्थिति की गंभीरता को समझते हुए इलाज की राह पकड़ ली।
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राजधानी से जोधपुर तक इलाज, पर नहीं मिली राहत
महेंद्र के माता-पिता बताते हैं कि बेटे के इलाज के लिए उन्होंने अपनी हैसियत से कहीं अधिक प्रयास किए। कभी राजधानी तक दौड़ लगाई, तो कभी जोधपुर के अस्पतालों में महीनों तक उपचार करवाया। वर्षों तक अलग-अलग चिकित्सकों, दवाइयों और इलाज के तरीकों को अपनाया गया। लेकिन महेंद्र की मानसिक स्थिति में कोई स्थायी सुधार नहीं हो सका। वर्तमान में भी महेंद्र का उपचार जोधपुर के मथुरादास माथुर अस्पताल से चल रहा है, लेकिन बीमारी की जटिलता के चलते स्थिति जस की तस बनी हुई है।



बुज़ुर्ग माता-पिता की मजबूरी बनी जंजीर
परिजनों का कहना है कि महेंद्र को जंजीरों से बांधना उनका निर्णय नहीं, बल्कि मजबूरी है। कई बार वह अचानक उग्र हो जाता है, घर से बाहर निकलने की कोशिश करता है या स्वयं को चोट पहुंचाने लगता है। ऐसे में उसे सुरक्षित रखने के लिए यह कठोर कदम उठाना पड़ा।

महेंद्र के माता-पिता अब स्वयं वृद्धावस्था में पहुंच चुके हैं। दोनों बीमार रहते हैं और नियमित उपचार पर निर्भर हैं। बेटे की यह स्थिति उन्हें मानसिक रूप से भी तोड़ चुकी है। उनका कहना है कि हर दिन इसी चिंता में बीतता है कि उनके बाद महेंद्र का क्या होगा।

मीडिया रिपोर्ट के बाद हरकत में आया प्रशासन
मामला मीडिया में आने के बाद स्थानीय प्रशासन हरकत में आया। तहसील प्रशासन की टीम मेडिकल स्टाफ और एम्बुलेंस के साथ मौके पर पहुंची और महेंद्र को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराने का प्रस्ताव रखा। हालांकि परिजनों ने सरकारी उपचार के लिए सहमति नहीं दी।

परिवार का कहना है कि वे पहले ही वर्षों तक सरकारी इलाज करवा चुके हैं, लेकिन कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। ऐसे में अब वे किसी ऐसे निजी मानसिक स्वास्थ्य संस्थान या सामाजिक संगठन की ओर आशा भरी नजरों से देख रहे हैं, जो महेंद्र को बेहतर इलाज दिला सके और उसे बेड़ियों से मुक्त जीवन दे सके।

समाज और संस्थानों से मदद की गुहार
महेंद्र के परिजनों ने प्रशासन और समाज से अपील की है कि यदि कोई सक्षम निजी संस्था, एनजीओ या स्वास्थ्य केंद्र आगे आता है, तो वे सहयोग के लिए तैयार हैं। उनका एक ही सपना है कि उनका बेटा सम्मानजनक और सुरक्षित जीवन जी सके। 

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