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Rajasthan News: बांसवाड़ा आज भी ताक रहा रेल की राह, 14 साल पहले हुआ था शिलान्यास, पर अब भी अधूरी है आस
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, बांसवाड़ा
Published by: बांसवाड़ा ब्यूरो
Updated Tue, 03 Jun 2025 11:00 PM IST
सार
Banswara News: 176 किलोमीटर लंबी डूंगरपुर-बांसवाड़ा- रतलाम रेल परियोजना के लिए वर्ष 2011 के रेल बजट में घोषणा हुई। इसके बाद रेलवे बोर्ड और राजस्थान सरकार के बीच भूमि की लागत को छोड़कर 50-50 प्रतिशत की भागीदारी के साथ काम शुरु करने संबंधी समझौता हुआ था, पर यह परियोजना अब भी अधर में लटकी है।
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बांसवाड़ा रेल परियोजना शिलान्यास अवसर पर मंच पर मौजूद तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत
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विस्तार
राजस्थान का दक्षिणी जिला बांसवाड़ा, जो गुजरात और मध्यप्रदेश की सीमाओं से सटा हुआ है, आजादी के 77 साल बाद भी भारतीय रेल के नक्शे से गायब है। यहां के लोगों की रेल यात्रा की इच्छा अब एक दशक से भी अधिक समय से अधूरी पड़ी है। 2011 में जिस डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना का बड़े समारोह में शिलान्यास किया गया था, वह अब तक धरातल पर आकार नहीं ले सकी है।
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चारों ओर रेलवे, लेकिन बांसवाड़ा अभी भी वंचित
बांसवाड़ा की भौगोलिक स्थिति देखें तो इसके चारों ओर रेल सेवाएं पहले से उपलब्ध हैं। पूर्व की ओर 85 किलोमीटर दूर रतलाम जंक्शन है, दक्षिण में गुजरात का दाहोद, पश्चिम में डूंगरपुर और उत्तर-पश्चिम की ओर उदयपुर स्थित है, जो लगभग 100 से 160 किलोमीटर की दूरी पर हैं। लेकिन इन सबके बीच बांसवाड़ा रेलवे से वंचित है, जिससे यहां के लोगों को रेल से यात्रा करने के लिए पहले इन स्टेशन तक का सफर करना पड़ता है।
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ऐतिहासिक परियोजना, लेकिन अधूरी
डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेललाइन देश की पहली साझेदारी परियोजना थी, जिसमें राज्य सरकार और रेलवे ने 50-50 प्रतिशत अंशदान की सहमति दी थी। इसकी घोषणा 2011 के रेल बजट में की गई और तीन जून 2011 को डूंगरपुर में तत्कालीन यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने इसका शिलान्यास किया। इसके बाद राजस्थान सरकार ने अपने हिस्से के 200 करोड़ रुपये भी दिए, निर्माण कार्यालय खुले और भूमि अधिग्रहण शुरू हुआ। परंतु 2013 में सरकार बदलने के बाद परियोजना की रफ्तार थम गई और काम पूरी तरह से रुक गया।
केवल बजट में दिख रही सक्रियता
बीते वर्षों में केंद्र सरकार द्वारा परियोजना के लिए बजट में राशि तो घोषित की गई, लेकिन वह जमीनी कार्य में तब्दील नहीं हो सकी। वर्ष 2023 में इस योजना के लिए पांच करोड़ रुपये आवंटित हुए, जबकि 2022 में भी 5.27 करोड़ जारी किए गए थे। चालू वित्तीय वर्ष में यह आंकड़ा बढ़कर 150 करोड़ रुपये हुआ है, लेकिन अब तक कोई ठोस निर्माण कार्य सामने नहीं आया है। कागजी कार्रवाई और फाइलों की दौड़ में ही यह योजना उलझी पड़ी है।
जनता की कोशिशें और ठंडी पड़ी कार्रवाई
बांसवाड़ा के लोगों ने इस रेल लाइन के लिए लंबे समय से प्रयास किए। प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर स्थानीय प्रशासन तक ज्ञापन भेजे गए। इस परियोजना को पुनः शुरू कराने के लिए स्थानीय सांसदों ने संसद में भी आवाज उठाई, लेकिन 22 लाख की आबादी वाले इस जिले की मांगें अब तक पूरी नहीं हो सकीं। आदिवासी बहुल इस अंचल में रेल सेवा न केवल आवागमन का साधन बनेगी, बल्कि क्षेत्रीय विकास की धुरी भी बन सकती है।
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गति शक्ति योजना से मिल सकती है नई राह
अगर केंद्र सरकार इस परियोजना को 'प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना' के अंतर्गत शामिल करती है, तो यह योजना फिर से रफ्तार पकड़ सकती है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेललाइन को साकार करने से न केवल बांसवाड़ा को रेल नक्शे पर जगह मिलेगी, बल्कि यह आदिवासी क्षेत्र देश के मुख्य विकास मार्गों से भी जुड़ सकेगा।