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Sawai Madhopur: देश का सबसे घनी टाइगर आबादी वाला रिजर्व बना रणथंभौर, बाघों की बढ़ती संख्या ने रचा इतिहास
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, सवाई माधोपुर
Published by: प्रिया वर्मा
Updated Thu, 20 Mar 2025 10:51 AM IST
सार
सवाई माधोपुर स्थित रणथंभौर टाइगर रिजर्व को सबसे घनी आबादी वाला टाइगर रिजर्व बनने का गौरव प्राप्त हुआ है। 1334 वर्ग किलोमीटर में फैले इस रिजर्व के 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 66 बाघ विचरण कर रहे हैं, जिनमें 23 बाघ, 25 बाघिन और 18 शावक शामिल हैं।
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राजस्थान
- फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
राजस्थान का रणथंभौर टाइगर रिजर्व, जो विश्व पटल पर अपनी बाघों की अठखेलियों के लिए प्रसिद्ध है ने एक और कीर्तिमान रच दिया है। यह देश का सबसे घनी टाइगर आबादी वाला टाइगर रिजर्व बन गया है। यहां कुल 66 बाघ, बाघिन और शावक हैं, जिनमें 23 बाघ, 25 बाघिन और 18 शावक शामिल हैं। खास बात यह है कि रणथंभौर में टाइगर शावकों की संख्या कुल आबादी का लगभग 27.27% है।
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रणथंभौर टाइगर रिजर्व 1334 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें केवल 940 वर्ग किलोमीटर में ही बाघ विचरण करते हैं। इस सीमित क्षेत्र में बाघों की इतनी अधिक संख्या ने इसे देश का सबसे घनी टाइगर आबादी वाला टाइगर रिजर्व बना दिया है। एक बाघ के हिस्से में औसतन 14.25 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र आता है।
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रणथंभौर टाइगर रिजर्व को दो डिवीजन में विभाजित किया गया है। पहला डिवीजन 940 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसमें 600 वर्ग किलोमीटर को कोर एरिया और शेष को बफर एरिया कहा जाता है। इसके अलावा 128 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र पालीघाट चंबल घड़ियाल सेंचुरी का हिस्सा है।
आमतौर पर एक टाइगर अपनी टेरेटरी पेड़ों पर स्प्रे (पेशाब) और पंजों के निशान बनाकर निर्धारित करता है। रणथंभौर में एक विशेष स्थिति यह है कि यहां बाघ एक-दूसरे की टेरेटरी को ओवरलैप कर रहे हैं, जिससे बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट की घटनाएं भी होती हैं। कई बार ऐसे संघर्षों में बाघों की मौत भी हो चुकी है।
रणथंभौर टाइगर रिजर्व प्रथम के डीएफओ रामानंद भाकर ने बताया कि वन विभाग रणथंभौर के क्वालंजी वन क्षेत्र को टाइगर हैबिटाट के रूप में विकसित कर रहा है। इसके अतिरिक्त रणथंभौर से रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य, बूंदी तक एक टाइगर कॉरिडोर भी विकसित किया जा रहा है। इस पहल से बाघों को पर्याप्त पर्यावास मिलेगा और संघर्ष की घटनाओं में कमी आएगी। साथ ही कैलादेवी अभयारण्य को भी विकसित किया जा रहा है। जब ये इलाके विकसित होंगे तो रणथंभौर के बाघों को पर्याप्त जगह मिल सकेगी।