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Gurdeep Kaur: सुन, देख और बोल भी नहीं सकतीं, फिर भी इंदौर की बेटी ने हासिल की सरकारी नौकर
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: शिवानी अवस्थी
Updated Tue, 08 Jul 2025 03:28 PM IST
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सार
Gurdeep Kaur गुरदीप ने अपनी आंखों की रोशनी बचपन में ही खो दी थी। बोल और सुन न पाने की चुनौती पहले से थी। उन्होंने 11 वर्ष की उम्र में स्कूली पढ़ाई शुरू की, वो भी सीधे कक्षा 4 से।

गुरदीप कौर
- फोटो : instagram
विस्तार
Gurdeep Kaur: गुरदीप कौर वासु ये नाम गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है। 34 वर्ष की महिला गुरदीप मध्य प्रदेश के रहने वाली हैं। वह न सिर्फ दृष्टिहीन हैं, बल्कि बोल और सुन भी नहीं सकतीं यानी त्रैतीय दिव्यांगता से पीड़ित हैं। बावजूद इसके उन्होंने इतिहास रच दिया है। गुरदीप देश की पहली महिला बन गई हैं, जिन्होंने ऐसी स्थिति में रहते हुए सरकारी नौकरी हासिल की है। आज वह इंदौर के वाणिज्यिक कर विभाग में ग्रुप IV कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं।
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संघर्ष और सफलता की कहानी
गुरदीप ने अपनी आंखों की रोशनी बचपन में ही खो दी थी। बोल और सुन न पाने की चुनौती पहले से थी। उन्होंने 11 वर्ष की उम्र में स्कूली पढ़ाई शुरू की, वो भी सीधे कक्षा 4 से। यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन उनकी शिक्षक मोनिका पुरोहित उनके जीवन की सबसे बड़ी ताकत बनकर सामने आईं। मोनिका जी ने उन्हें टैक्टाइल साइन लैंग्वेज (स्पर्श आधारित संकेत भाषा) के ज़रिए पढ़ाया और आगे बढ़ाया। गुरदीप ने पहले 10वीं, फिर 12वीं की परीक्षा पास की, और अंततः वो मुकाम पाया जो आज पूरे भारत के लिए मिसाल है।
कैसे करती हैं संवाद?
गुरदीप कौर एक खास भाषा के ज़रिए संवाद करती हैं जिसे टैक्टाइल साइन लैंग्वेज कहा जाता है। इसमें व्यक्ति किसी दूसरे के हाथों को छूकर, अंगुलियों की हलचल और स्पर्श के माध्यम से संदेश समझता है।
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अब कैसी है ज़िंदगी?
अब गुरदीप कौर रोज़ाना दफ्तर जाती हैं, अपने काम को पूरी निष्ठा और नियमितता के साथ निभाती हैं। उनके सहकर्मी उनकी ईमानदारी, समयबद्धता और समर्पण की सराहना करते हैं। यह सिर्फ एक नौकरी नहीं, बल्कि एक संवेदनशील और समावेशी सिस्टम की शुरुआत है, जो अब ऐसे दिव्यांगों के लिए भी दरवाज़े खोल रहा है।
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