puppeteer bhimavva Doddabalappa Shillekyathara : भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को 71 प्रमुख हस्तियों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया। राष्ट्रपति भवन में दिए गए पद्म पुरस्कारों में चार पद्म विभूषण, 10 पद्म भूषण और 57 पद्म श्री पुरस्कार प्रदान किए गए। इसमें 23 महिलाओं के नाम भी शामिल हैं, जिन्हें पद्म पुरस्कार मिले। इन्हीं महिलाओं में एक 96 साल की महिला जब पुरस्कार प्राप्त करने के लिए राष्ट्रपति भवन के हॉल में पहुंची तो हर किसी की निगाह उन पर ठहर गई। पैरों में चप्पल और उम्र के कारण लड़खड़ाते हुए इस बुजुर्ग महिला ने राष्ट्रपति मुर्मू के हाथों पद्म श्री पुरस्कार हासिल किया। 96 साल की उम्र में पद्म पुरस्कार के रूप में गौरव हासिल करने वाली इस महिला का नाम भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा है। आइए जानते हैं भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा की उपलब्धि और योगदान, जिसके कारण उन्हें मिला पद्म पुरस्कार।
{"_id":"68107eb6893346b79204adc1","slug":"padma-awards-2025-who-is-96-year-old-puppeteer-bhimavva-doddabalappa-shillekyathara-got-padma-shri-2025-04-29","type":"photo-gallery","status":"publish","title_hn":"Padma Awards: कौन हैं पद्मश्री से सम्मानित 96 साल की भीमव्वा, जिनके बिना अधूरी है तोगलु गोम्बेआटा की परंपरा","category":{"title":"Shakti","title_hn":"शक्ति","slug":"shakti"}}
Padma Awards: कौन हैं पद्मश्री से सम्मानित 96 साल की भीमव्वा, जिनके बिना अधूरी है तोगलु गोम्बेआटा की परंपरा
लाइफस्टाइल डेस्क, अमर उजाला Published by: शिवानी अवस्थी Updated Tue, 29 Apr 2025 01:36 PM IST
सार
96 साल की उम्र में पद्म पुरस्कार के रूप में गौरव हासिल करने वाली इस महिला का नाम भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा है। आइए जानते हैं भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा की उपलब्धि और योगदान, जिसके कारण उन्हें मिला पद्म पुरस्कार।
विज्ञापन

पद्म श्री से सम्मानित 96 साल की कठपुतली कलाकार भीमव्वा
- फोटो : PTI

Trending Videos

कर्नाटक की रहने वाली हैं भीमव्वा
- फोटो : PTI
पद्मश्री भीमव्वा का जीवन परिचय
भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा एक प्रख्यात कठपुतली कलाकार हैं, जिन्हें पारंपरिक भारतीय लोक कला, विशेषकर कठपुतली नाट्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है।
भीमव्वा कर्नाटक के कोप्पल जिले की रहने वाली हैं। उनका जन्म कर्नाटक के बेलगावी जिले के एक पारंपरिक कठपुतली कलाकार परिवार में हुआ था। भीमव्वा को बचपन से ही कठपुतली कला में रुचि थी। उन्होंने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस विलुप्त होती कला को स्कूलों, मेलों और थिएटर फेस्टिवल्स के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचाया।
भीमव्वा डोड्डाबलप्पा शिल्लेक्यथारा एक प्रख्यात कठपुतली कलाकार हैं, जिन्हें पारंपरिक भारतीय लोक कला, विशेषकर कठपुतली नाट्य में अपने अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है।
भीमव्वा कर्नाटक के कोप्पल जिले की रहने वाली हैं। उनका जन्म कर्नाटक के बेलगावी जिले के एक पारंपरिक कठपुतली कलाकार परिवार में हुआ था। भीमव्वा को बचपन से ही कठपुतली कला में रुचि थी। उन्होंने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए इस विलुप्त होती कला को स्कूलों, मेलों और थिएटर फेस्टिवल्स के माध्यम से नई पीढ़ी तक पहुंचाया।
विज्ञापन
विज्ञापन

कठपुतली कलाकार भीमव्वा तोगलु गोम्बेआटा की संरक्षक हैं
- फोटो : PTI
आर्थिक तंगी के बावजूद पारंपरिक विधा को बनाई अपनी पहचान
उन्होंने कर्नाटक की पारंपरिक यक्षगान और तोगलु गोम्बेआटा कला शैली को आज भी जीवित रखा है। वह तोगलु गोम्बेआटा की संरक्षक हैं। इस कला के माध्यम से भीमव्वा 70 वर्ष से अधिक समय से रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों को जीवंत करती आ रही हैं।आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने इस पारंपरिक विधा को छोड़ने की बजाय इसे अपनी पहचान और मिशन बना लिया। भीमव्वा की सबसे खास बात यह है कि वे अपने कठपुतली कार्यक्रमों में सामाजिक संदेशों जैसे स्वच्छता, शिक्षा, नारी सशक्तिकरण आदि को भी पिरोती हैं।

तोगलु गोम्बेआटा क्या है?
- फोटो : PTI
तोगलु गोम्बेआटा क्या है?
‘तोगलु गोम्बेआटा’ कर्नाटक की पारंपरिक छाया कठपुतली कला है, जिसमें चमड़े की बनी हुई रंगीन कठपुतलियों के माध्यम से रामायण, महाभारत और लोक कथाओं की कहानियां पर्दे पर दिखाई जाती हैं। यह एक बेहद प्राचीन कला है जिसमें संगीत, संवाद और रंगमंच का सुंदर मेल होता है।
‘तोगलु गोम्बेआटा’ कर्नाटक की पारंपरिक छाया कठपुतली कला है, जिसमें चमड़े की बनी हुई रंगीन कठपुतलियों के माध्यम से रामायण, महाभारत और लोक कथाओं की कहानियां पर्दे पर दिखाई जाती हैं। यह एक बेहद प्राचीन कला है जिसमें संगीत, संवाद और रंगमंच का सुंदर मेल होता है।
विज्ञापन

भीमव्वा ने किया 12 से अधिक देशों में तोगलु गोम्बेआटा का प्रदर्शन
- फोटो : PTI
भीमव्वा का योगदान
भीमव्वा ने अपने जीवन का अधिकांश समय इस विलुप्त होती कला को पुनर्जीवित करने और अगली पीढ़ी को इसके प्रति प्रेरित करने में बिताया है। उन्होंने देश-विदेश में इस कला का मंचन किया। उन्होंने 12 से अधिक देशों में तोगलु गोम्बेआटा के प्रदर्शन किए। भीमव्वा ने 'तोगलु गोम्बेआटा' को स्कूलों और सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल कराकर इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया।
भीमव्वा ने अपने जीवन का अधिकांश समय इस विलुप्त होती कला को पुनर्जीवित करने और अगली पीढ़ी को इसके प्रति प्रेरित करने में बिताया है। उन्होंने देश-विदेश में इस कला का मंचन किया। उन्होंने 12 से अधिक देशों में तोगलु गोम्बेआटा के प्रदर्शन किए। भीमव्वा ने 'तोगलु गोम्बेआटा' को स्कूलों और सांस्कृतिक आयोजनों में शामिल कराकर इसे पुनर्जीवित करने की दिशा में उल्लेखनीय काम किया।
कमेंट
कमेंट X