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Himachal: आठ साल की दैनिक वेतनभोगी सेवा पूरी करने वालों को वर्कचार्ज का दर्जा, हाईकोर्ट ने दी बड़ी राहत

संवाद न्यूज एजेंसी, शिमला। Published by: Krishan Singh Updated Wed, 03 Dec 2025 11:49 AM IST
सार

 न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने राज्य सरकार के 12 मई 2017 के आदेश को रद्द करते हुए चार सप्ताह के भीतर सूरजमणि मामले में निहित आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं के मामले पर नए सिरे से विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है। 

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High Court grants major relief to those who have completed eight years of daily wage service, work charge stat
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है। न्यायाधीश संदीप शर्मा की अदालत ने राज्य सरकार के 12 मई 2017 के आदेश को रद्द करते हुए चार सप्ताह के भीतर सूरजमणि मामले में निहित आदेश के तहत याचिकाकर्ताओं के मामले पर नए सिरे से विचार कर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।  विभाग ने याचिकाकर्ताओं को वर्कचार्ज दर्जा देने से यह कहकर मना कर दिया था कि विभाग में वर्कचार्ज समाप्त हो चुका है। याचिकाकर्ता मूल रूप से दिसंबर 1996 में आईपीएच विभाग में दैनिक वेतन भोगी के रूप में नियुक्त हुए थे और उनकी सेवाएं 2007 में नियमित हुईं। दैनिक वेतन भोगी बेलदारों को आठ साल की सेवा (प्रत्येक कैलेंडर वर्ष में 240 दिन के साथ) पूरी करने के बाद वर्कचार्ज दर्जा प्रदान करना था। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में डिवीजन बेंच के पूर्व के फैसलों (अश्वनी कुमार और सूरजमणि मामले) का हवाला दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार, दैनिक वेतन भोगी जिन्होंने प्रत्येक कलेंडर वर्ष में 240 दिनों के साथ आठ वर्ष की दैनिक वेतन भोगी सेवा पूरी कर ली है, उन्हें वर्कचार्ज का दर्जा दिया जाएगा, लेकिन यह दर्जा केवल सांकेतिक आधार (नोशनल) पर होगा। इसका अर्थ है कि वर्कचार्ज अवधि के लिए कोई मौद्रिक लाभ नहीं दिया जाएगा, लेकिन इस अवधि को वेतन निर्धारण (पे फिक्सेशन) और सेवा में निरंतरता के उद्देश्य से ध्यान में रखा जाएगा।

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निरमंड कॉलेज भवन निर्माण में देरी पर सरकार को नोटिस
 हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने कुल्लू के निरमंड में सरकारी कॉलेज भवन के निर्माण कार्य में हो रही देरी पर संज्ञान लिया है। भवन निर्माण कार्य में हो रही देरी पर अदालत ने राज्य सरकार और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए हैं। अदालत ने यह जनहित याचिका कुल्लू की ग्राम पंचायत भालसी के प्रधान से प्राप्त एक पत्र के आधार पर दर्ज की है। अदालत को बताया गया है कि कॉलेज भवन के निर्माण के लिए 35 बीघा भूमि आवंटित की गई है। यह भूमि शिक्षा विभाग के नाम पर दर्ज है। बावजूद निर्माण कार्य में अत्यधिक देरी हो रही है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश जिया लाल भारद्वाज की खंडपीठ ने इस मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी करते हुए संबंधित प्रतिवादियों को अगली तारीख तक आवश्यक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है। मामले की अगली सुनवाई 6 जनवरी 2026 को होगी। 

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अंगूठे के निशान पर विशेषज्ञ की रिपोर्ट दोषसिद्धि का आधार नहीं
 हाईकोर्ट ने निचली अदालतों के उस फैसले को पलट दिया है, जिसमें एक ग्रामीण डाक सेवक को वृद्ध पेंशन की राशि 7200 रुपये के गबन और दस्तावेजों की जालसाजी के लिए दोषी ठहराया गया था। अदालत ने याचिकाकर्ता को 50 हजार इतनी ही राशि की एक जमानती निचली अदालत में प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं। न्यायाधीश राकेश कैंथला की अदालत ने आरोपी याचिकाकर्ता को सभी आरोपों से बरी कर दिया है। न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी चौपाल ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए दो साल के कठोर कारावास और 2 हजार के जुर्माने की सजा सुनाई थी। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश-II शिमला की अदालत ने इस निर्णय को बरकरार रखा था। फैसले को याचिकाकर्ता ने पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि शिकायतकर्ता के गवाहों ने अभियोजन पक्ष के मामले का समर्थन नहीं किया और होस्टाइल (विरोधी) हो गए निचली अदालतों ने केवल अंगूठे के निशान की विशेषज्ञ रिपोर्ट पर भरोसा किया, जो दोषसिद्धि का एकमात्र आधार नहीं हो सकता, इसे पुष्टिकरण की आवश्यकता होती है। अदालत ने पाया कि पीड़ित लाभार्थी के गवाह अभियोजन पक्ष के इस दावे का समर्थन करने में विफल रहे कि अभियुक्त ने उन्हें पेंशन वितरित नहीं की थी। 

सत्र आधारित पुनः रोजगार मामले में हाईकोर्ट ने मांगा स्पष्टीकरण
 प्रदेश हाईकोर्ट ने शिक्षण संकाय के लिए सत्र-आधारित पुनः रोजगार के मामले में राज्य सरकार को नोटिस जारी किए हैं। अदालत ने अतिरिक्त महाधिवक्ता को दो दिनों के भीतर स्पष्टीकरण मांगा है कि 27 अगस्त 2025 की अधिसूचना का लाभ केवल चुनिंदा को ही क्यों दिया जा रहा है। न्यायाधीश ज्योत्सना रिवॉल दुआ की अदालत ने कहा कि एसोसिएशन के दो सदस्यों को अधिसूचना के तहत राहत देने के बाद उनकी जगह नियमित शिक्षकों को तैनात करके वापस क्यों ले लिया गया। मामले की अगली सुनवाई 4 दिसंबर को होगी। हिमाचल प्रदेश सरकारी कॉलेज प्रिंसिपल एसोसिएशन की ओर से यह याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता एसोसिएशन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ने अदालत को बताया कि 27 अगस्त की अधिसूचना के अनुसार, शिक्षा विभाग के सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में कार्यरत शिक्षकों, शिक्षण संकाय को शैक्षणिक सत्र 2025-2026 के लिए सत्र-आधारित पुनः रोजगार का अधिकार है, जो 31 मई 2026 को समाप्त होना है।अधिसूचना जारी होने के बाद एसोसिएशन के पांच प्रिंसिपल सदस्य सेवानिवृत्त हुए। इनमें से दो ने अधिसूचना के प्रावधानों के तहत पुनः रोजगार का विकल्प नहीं चुना जबकि शेष तीन ने उनकी सेवानिवृत्त अवधि से पहले ही जारी रखने की अनुमति दी थी। हालांकि 3 नवंबर 2025 की एक अधिसूचना के तहत इनमें से दो प्रिंसिपलों के स्थान पर नियमित पदधारी को स्थानांतरण करके तैनात कर दिया गया।परिणामस्वरूप, केवल एक सदस्य को 27 अगस्त 2025 की अधिसूचना का लाभ मिला, जबकि अन्य दो को पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया।
 

हाईकोर्ट ने अधिकारियों के पदोन्नति आदेश किए जारी
 प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उच्च न्यायालय अधिकारी और कर्मचारी (भर्ती, पदोन्नति, सेवा शर्तें नियम, 2015 के नियम 4) में निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए अधिकारियों को पदोन्नति करने के आदेश दिए हैं। पदम देव शर्मा को डिप्टी रजिस्टार से एडिशनल रजिस्टर के पद पर पदोन्नति और नियुक्ति दी गई है। सुभाष चंद धीमान को सचिव पद से डिप्टी रजिस्टार के रूप में पदोन्नति किया गया है। वीरेंद्र को निजी सचिव से सचिव पद पर पदोन्नति दी गई है। हिमानी गौतम को जजमेंट राइटर को निजी सचिव के रूप में नियुक्ति और पदोन्नति की गई है। आदेश में कहा गया है कि उपरोक्त पदोन्नति और नियुक्ति हाईकोर्ट में विचाराधीन रिट याचिका हेमंत शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय और अनिल कुमार के परिणाम के अधीन रहेगी।

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