हिमाचल हाईकोर्ट : बिजली बिल में जोड़कर लिया जा सकता है कचरा उपकर, उपचार व प्रबंधन पर किया जाए खर्च
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि ठोस कचरा प्रबंधन के लिए केवल पर्यटकों से ही नहीं, बल्कि राज्य के लोगों पर भी उपकर लगाकर शुल्क एकत्र करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
विस्तार
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को सुझाव दिया है कि ठोस कचरा प्रबंधन के लिए केवल पर्यटकों से ही नहीं, बल्कि राज्य के लोगों पर भी उपकर लगाकर शुल्क एकत्र करने का प्रयास किया जाना चाहिए। यह शुल्क बिजली बिल में जोड़कर लिया जा सकता है। शुल्क वेस्ट प्रोसेसिंग (सूखा और गीला कचरा/अपशिष्ट) पर खर्च किया जाना चाहिए। प्रदेश में ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और पर्यावरण उपकर लगाने के मामले में कोर्ट ने सरकार से शपथपत्र भी मांगा है। मुख्य न्यायाधीश गुरमीत सिंह संधावालिया और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।
शिमला नगर निगम की ओर से 28 मार्च को पारित ग्रीन फीस प्रस्ताव पर कार्रवाई की जानकारी अदालत में दी गई। इस बीच इसी मामले पर शहरी विकास विभाग की सरकार के साथ बैठकें हुईं, जिसमें विभाग ने राज्य कर एवं आबकारी विभाग के कमिश्नर को नगर निगम के प्रस्ताव में 10 रुपये प्रति पर्यटक वाहन प्रदेश के एंट्री पॉंइट परवाणू, नूरपुर, ऊना और बिलासपुर में उपकर लगाने का सुझाव शामिल करने को कहा। राज्य कर और आबकारी विभाग ने सूचित किया है कि टोल नीति 2025-26 को कैबिनेट ने 15 फरवरी को मंजूरी दी थी, इसलिए यह प्रस्ताव इस स्तर पर नीति में शामिल नहीं किया जा सकता है। इस वजह से एंट्री पॉंइट पर वाहनों के प्रवेश का रिकॉर्ड नहीं है।
पर्यटक वाहनों का कोई रिकॉर्ड नहीं
कोर्ट ने पाया कि हिमाचल आने वाले पर्यटक वाहनों का कोई रिकॉर्ड नहीं है। कोर्ट को बताया कि अपशिष्ट के लिए 92 ब्लॉक के लिए मैटीरियल रिकवरी फैसिलिटी स्थापित करने की जरूरत है, जिसके लिए प्लास्टिक अपशिष्ट और गीला कचरा अलग करने के लिए प्रति ब्लॉक कम से कम 50 लाख प्रारंभिक खर्च होगा। शहरी क्षेत्रों के लिए 48 शहरी अपशिष्ट प्रबंधन केंद्रों को नियमों के अनुरूप अपग्रेड करने की जरूरत है। कोर्ट ने कहा कि शहरी विकास विभाग में व्यापक सुधार और एक दूरदर्शी योजना बने, जिसकी स्पष्ट रूप से कमी देखी जा रही है। राज्य को उपकर लगाने जैसी आवश्यक योजनाओं के माध्यम से अपने स्तर पर वित्त कैसे उत्पन्न किया जा सकता है, इस संबंध में एक उपयुक्त हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया गया है। मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।
वेस्ट प्रोसेसिंग हटाने की समय सीमा तय
शहरी विकास विभाग के सचिव ने कोर्ट को बताया कि केंदुवाला साइट बद्दी में 76,905 मीट्रिक टन कूड़ा पड़ा है। इसे भविष्य की गणना के लिए संदर्भ बिंदु माना जाएगा। वेस्ट प्रोसेसिंग हटाने और टेंडर प्रक्रिया शुरू करने के लिए 20 दिसंबर तक समय सीमा तय है। बद्दी में सॉलिड वेस्ट प्रोसेस प्लांट के निरीक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि 2018 से बड़े पैमाने पर कचरा 30 बीघा जमीन पर डंप किया गया है। अदालत को बताया कि कंपनी को भुगतान 3,41,76,647 रुपये (55 फीसदी) किया गया है, लेकिन अपशिष्ट को संसाधित न करने के कारण 2,79,62,704 रुपये (45 फीसदी) रोक दिए हैं। ठेकेदार ने भुगतान रोके जाने को काम में बाधा बताया। कोर्ट ने इसके लिए शहरी विकास निदेशक के साथ एक बैठक आयोजित करने का निर्देश दिया है, ताकि मुद्दे को सुलझाया जा सके। यह भी रिपोर्ट मांगी है कि अक्तूबर 2025 के दौरान कंपनी ने कितनी प्रगति की है।