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चिन्मय अमृत महोत्सव 2026: स्वामी चिन्मयानंद जी, एक संशयवादी से गुरु तक की यात्रा
आशीष कुमार 'अंशु'
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Fri, 19 Dec 2025 05:56 PM IST
सार
स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, जिन्हें पूज्य गुरुदेव के नाम से जाना जाता है, का जन्म 8 मई 1916 को केरल के एर्नाकुलम में बालकृष्णन मेनन के रूप में हुआ था। एक कुलीन परिवार में जन्मे बालकृष्णन एक तेज-तर्रार, विद्रोही और नास्तिक युवा थे। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य और कानून में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की।
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स्वामी चिन्मयानंद जी
- फोटो : साभार/www.chinmayauk.org
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विस्तार
आशीष कुमार 'अंशु'
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स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती, जिन्हें पूज्य गुरुदेव के नाम से जाना जाता है, का जन्म 8 मई 1916 को केरल के एर्नाकुलम में बालकृष्णन मेनन के रूप में हुआ था। एक कुलीन परिवार में जन्मे बालकृष्णन एक तेज-तर्रार, विद्रोही और नास्तिक युवा थे। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य और कानून में स्नातकोत्तर डिग्री प्राप्त की। स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के बाद वे पत्रकार बने और 'नेशनल हेराल्ड' में उप-संपादक के रूप में कार्य किया। वे विवादास्पद लेख लिखते थे, कभी कभी 'मोची' छद्मनाम भी इस्तेमाल करते थे। उन दिनों उन्हें भगवा वस्त्रधारी संत अवैज्ञानिक और धोखेबाज जान पड़ते थे।
1947 में, संतों की 'पोल खोलने' के इरादे से वे ऋषिकेश पहुंचे, जहां स्वामी शिवानंद के दिव्य जीवन सोसाइटी आश्रम में ठहरे। उनका उद्देश्य एक धमाकेदार एक्सपोज़े लिखना था। लेकिन आश्रम की सादगी, स्वामी शिवानंद की करुणा, हास्य, सेवा भाव और गहन ज्ञान ने उन्हें झकझोर दिया। धीरे-धीरे उनका संशय पिघला। जो गुरु को एक्सपोज़ करने आए थे, वे खुद बदल गए। एक विदेशी पत्रकार ने जब उन पर 'काला जादू' का आरोप लगाया, तो स्वामी चिन्मयानंद ने हंसते हुए कहा, "यह होता तो जरूर है; देखो, मैं खुद इसका शिकार हूं।"
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माया से चिन्मया
महाशिवरात्रि के पावन दिन, 25 फरवरी 1949 को, स्वामी शिवानंद ने उन्हें संन्यास दीक्षा दी और नाम दिया स्वामी चिन्मयानंद सरस्वती – 'शुद्ध चेतना के आनंद में रमने वाला'। इसके बाद वे हिमालय में स्वामी तपोवन महाराज के शिष्य बने, जहां कठोर तपस्या और वेदांत अध्ययन किया। गंगा की लहरों ने उन्हें प्रेरित किया कि यह ज्ञान हिमालय से मैदानों तक पहुंचना चाहिए।
1951 में पुणे में पहला ज्ञान यज्ञ आयोजित किया, जहां मात्र तीन श्रोता थे। लेकिन उनकी स्पष्ट, तार्किक और हास्यपूर्ण व्याख्या ने लोगों को आकर्षित किया। 1953 में चेन्नई में भक्तों ने चिन्मय मिशन की स्थापना की, जो अद्वैत वेदांत, भगवद्गीता और उपनिषदों के प्रचार के लिए समर्पित है। स्वामी चिन्मयानंद ने 40 वर्षों तक विश्व भ्रमण किया, अंग्रेजी में व्याख्यान दिए, जो मध्यम वर्ग और प्रवासी भारतीयों को विशेष रूप से प्रभावित करते थे। उन्होंने 95 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिनमें गीता और उपनिषदों पर टीकाएं प्रमुख हैं। विश्व हिंदू परिषद की स्थापना में भी उनका योगदान रहा।
3 अगस्त 1993 को अमेरिका में महासमाधि ली। उनकी विरासत चिन्मय मिशन है, जो आज विश्वभर में 350 से अधिक केंद्रों का संचालन करती है। ये केंद्र बाल विहार, युवा केंद्र (चिक), देवी ग्रुप, ज्ञान यज्ञ, आध्यात्मिक शिविर और सेवा कार्य चलाते हैं। मिशन ने चिन्मय विद्यालयों की श्रृंखला स्थापित की, जहां आधुनिक शिक्षा के साथ संस्कार दिए जाते हैं। ग्रामीण विकास के लिए कॉर्ड प्रोजेक्ट, पर्यावरण संरक्षण और अंतरधार्मिक संवाद जैसे कार्य भी जारी हैं।
सरलता और तर्क पर आधारित है मिशन
वर्तमान में चिन्मय मिशन के वैश्विक प्रमुख स्वामी स्वरूपानंद जी हैं, जो 2017 से यह दायित्व संभाल रहे हैं। पूर्व में स्वामी तेजोमयानंद जी के नेतृत्व में मिशन का विस्तार हुआ। स्वामी स्वरूपानंद जी सहजता से सभी से मिलते हैं, प्रश्नोत्तर सत्रों में कोई सेंसरशिप नहीं रखते। चिन्मय विभूति, पुणे जैसे आश्रम यूटोपिया जैसे लगते हैं – शांत, सेवा और समर्पण से भरे। यहां कोई नियम थोपे नहीं जाते; धीरे-धीरे व्यक्ति स्वयं बदलता है। बच्चे, युवा, महिलाएं, परिवार – सभी के लिए कार्यक्रम हैं। विदेश में बिताए जीवन के बाद लोग यहां जुड़कर अपनी जड़ों से जुड़ते हैं, जैसे एक महिला ने गुजराती भाषा फिर सीखी।
आधुनिक युग में जहां कई आध्यात्मिक नेता कारपोरेट शैली अपनाते हैं, चिन्मय मिशन सरलता और तर्क पर आधारित है। यहां रूढ़ियों पर नहीं, विज्ञान और लॉजिक पर चर्चा होती है, जो जेन जी पीढ़ी को आकर्षित करती है। योग, पूजा और वेदांत से समाज अपनी संस्कृति से जुड़ रहा है।
2026 चिन्मय मिशन के लिए ऐतिहासिक वर्ष है। पहला ज्ञान यज्ञ 1951 में हुआ, मिशन 1953 में स्थापित। यह मिशन के 75 वर्ष पूरे होने का अवसर है। 'चिन्मय अमृत महोत्सव' के रूप में यह उत्सव मनाया जाएगा। मुख्य समारोह 23-25 अक्टूबर 2026 को नई दिल्ली के भारत मंडपम में होगा। यह वैश्विक चिन्मय परिवार का मिलन होगा, जहां गुरुदेव के विजन को याद किया जाएगा, प्रभाव पर चिंतन होगा और ज्ञान-सेवा की प्रतिबद्धता नवीनीकृत होगी। दुनिया भर में सिग्नेचर इवेंट्स, गीता चैंटिंग, भजन और यात्राएं चल रही हैं।
स्वामी चिन्मयानंद की कहानी सिद्ध करती है कि सच्चा गुरु दिल नहीं जीतता, उसे बदल देता है। एक संशयवादी पत्रकार से विश्वप्रसिद्ध वेदांत प्रचारक बनने की यह यात्रा नियति की अप्रत्याशितता दिखाती है। चिन्मय अमृत महोत्सव इस विरासत को नई पीढ़ी तक पहुंचाने का अवसर है। लाखों जीवन बदले हैं, करोड़ों बदल सकते हैं – यदि हम अपनी जड़ों से जुड़ें और वेदांत की ज्योति फैलाएं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।