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Hindi News ›   Spirituality ›   Religion ›   Ramrakshastotra Path Recitation Of Ram Raksha Strot Remove All Difficulties in hindi

Ramrakshastotra Path Lyrics: भगवान राम को प्रसन्न करने के लिए करें राम रक्षा स्त्रोत पाठ, सभी कामना होगी पूरी

धर्म डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Published by: श्वेता सिंह Updated Fri, 15 Dec 2023 04:57 PM IST
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सार

रामरक्षास्त्रोत एक रक्षा कवच है। इसका पाठ करने से अत्यधिक लाभ मिलने के साथ ही फल भी जल्द मिलता है। इसका पाठ करने से मनुष्य भय रहित हो जाता है।

Ramrakshastotra Path Recitation Of Ram Raksha Strot Remove All Difficulties in hindi
Ram raksha strot path - फोटो : अमर उजाला
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विस्तार
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Ramrakshastotra Path: रामरक्षास्त्रोत का विशेष महत्व माना जाता है। वैसे तो रामरक्षास्त्रोत पाठ को कभी भी शुरू किया जा सकता है।  रामरक्षास्त्रोत के पाठ से आपको हर मुश्किल में सफलता दिलाने में मदद मिलती है। रामरक्षास्त्रोत एक रक्षा कवच है। इसका पाठ करने से अत्यधिक लाभ मिलने के साथ ही फल भी जल्द मिलता है। इसका पाठ करने से मनुष्य भय रहित हो जाता है। इसके नित्य पाठ से कष्ट दूर होते हैं। जो इसका रोज़ाना पाठ करता है वह दीर्घायु, सुखी, संततिवान, विजयी और  विनयसंपन्न होता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति के चारों और सुरक्षा कवच बनता है, जिससे हर प्रकार की विपत्ति से रक्षा होती है। कहा जाता है इसके पाठ से भगवान राम के साथ पवनपुत्र हनुमान भी प्रसन्न होते हैं। एक खास बात ये भी है कि इस पाठ को हर दिन करना होता है। यहां पढ़ें रामरक्षा स्त्रोत का सम्पूर्ण पाठ। 

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विनियोग 
अस्य श्रीरामरक्षास्तोत्रमन्त्रस्य ।
बुधकौशिक ऋषि: ।
श्रीसीतारामचंद्रोदेवता ।
अनुष्टुप् छन्द: । सीता शक्ति: ।
श्रीमद्हनुमान् कीलकम् ।
श्रीसीतारामचंद्रप्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥

॥ अथ ध्यानम् ॥ 

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्दद्पद्मासनस्थं । 
पीतं वासोवसानं नवकमलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ॥ 
वामाङ्कारूढसीता मुखकमलमिलल्लोचनं नीरदाभं । 
नानालङ्कारदीप्तं दधतमुरुजटामण्डनं रामचंद्रम् ॥

जिव्हां विद्दानिधि: पातु कण्ठं भरतवंदित: । 
स्कन्धौ दिव्यायुध: पातु भुजौ भग्नेशकार्मुक: ॥॥
करौ सीतपति: पातु हृदयं जामदग्न्यजित् । 
मध्यं पातु खरध्वंसी नाभिं जाम्बवदाश्रय: ॥॥
सुग्रीवेश: कटी पातु सक्थिनी हनुमत्प्रभु: । 
ऊरू रघुत्तम: पातु रक्ष:कुलविनाशकृत् ॥॥
जानुनी सेतुकृत्पातु जङ्घे दशमुखान्तक: । 
पादौ बिभीषणश्रीद: पातु रामोSखिलं वपु: ॥॥
एतां रामबलोपेतां रक्षां य: सुकृती पठॆत् । 
स चिरायु: सुखी पुत्री विजयी विनयी भवेत् ॥॥

पातालभूतलव्योम चारिणश्छद्मचारिण: ।
न द्र्ष्टुमपि शक्तास्ते रक्षितं रामनामभि: ॥॥
रामेति रामभद्रेति रामचंद्रेति वा स्मरन् । 
नरो न लिप्यते पापै भुक्तिं मुक्तिं च विन्दति ॥॥
जगज्जेत्रैकमन्त्रेण रामनाम्नाभिरक्षितम् । 
य: कण्ठे धारयेत्तस्य करस्था: सर्वसिद्द्दय: ॥॥
वज्रपंजरनामेदं यो रामकवचं स्मरेत् । 
अव्याहताज्ञ: सर्वत्र लभते जयमंगलम् ॥॥
आदिष्टवान्यथा स्वप्ने रामरक्षामिमां हर: ।
तथा लिखितवान् प्रात: प्रबुद्धो बुधकौशिक: ॥॥

आराम: कल्पवृक्षाणां विराम: सकलापदाम् । 
अभिरामस्त्रिलोकानां राम: श्रीमान् स न: प्रभु: ॥॥
तरुणौ रूपसंपन्नौ सुकुमारौ महाबलौ । 
पुण्डरीकविशालाक्षौ चीरकृष्णाजिनाम्बरौ ॥॥
फलमूलशिनौ दान्तौ तापसौ ब्रह्मचारिणौ । 
पुत्रौ दशरथस्यैतौ भ्रातरौ रामलक्ष्मणौ ॥॥
शरण्यौ सर्वसत्वानां श्रेष्ठौ सर्वधनुष्मताम् । 
रक्ष:कुलनिहन्तारौ त्रायेतां नो रघुत्तमौ ॥॥
आत्तसज्जधनुषा विषुस्पृशा वक्षया शुगनिषङ्ग सङिगनौ । 
रक्षणाय मम रामलक्ष्मणा वग्रत: पथि सदैव गच्छताम् ॥॥

संनद्ध: कवची खड्गी चापबाणधरो युवा । 
गच्छन्मनोरथोSस्माकं राम: पातु सलक्ष्मण: ॥॥ 
रामो दाशरथि: शूरो लक्ष्मणानुचरो बली । 
काकुत्स्थ: पुरुष: पूर्ण: कौसल्येयो रघुत्तम: ॥॥ 
वेदान्तवेद्यो यज्ञेश: पुराणपुरुषोत्तम: । 
जानकीवल्लभ: श्रीमानप्रमेय पराक्रम: ॥॥ 
इत्येतानि जपेन्नित्यं मद्भक्त: श्रद्धयान्वित: । 
अश्वमेधाधिकं पुण्यं संप्राप्नोति न संशय: ॥॥ 
 रामं दूर्वादलश्यामं पद्माक्षं पीतवाससम् । 
स्तुवन्ति नामभिर्दिव्यैर्न ते संसारिणो नर: ॥॥


रामं लक्ष्मणपूर्वजं रघुवरं सीतापतिं सुन्दरं । 
काकुत्स्थं करुणार्णवं गुणनिधिं विप्रप्रियं 
धार्मिकम् राजेन्द्रं सत्यसंधं दशरथनयं श्यामलं शान्तमूर्तिम् । 
वन्दे लोकभिरामं रघुकुलतिलकं राघवं रावणारिम् ॥॥ 
रामाय रामभद्राय रामचंद्राय वेधसे । 
रघुनाथाय नाथाय सीताया: पतये नम: ॥॥
श्रीराम राम रघुनन्दन राम राम । श्रीराम राम भरताग्रज राम राम । 
श्रीराम राम रणकर्कश राम राम । श्रीराम राम शरणं भव राम राम ॥॥ 
श्रीरामचन्द्रचरणौ मनसा स्मरामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ वचसा गृणामि । 
श्रीरामचन्द्रचरणौ शिरसा नमामि । श्रीरामचन्द्रचरणौ शरणं प्रपद्ये ॥॥ 

माता रामो मत्पिता रामचंन्द्र: । स्वामी रामो मत्सखा रामचंद्र: । 
सर्वस्वं मे रामचन्द्रो दयालु । नान्यं जाने नैव जाने न जाने ॥॥ 
दक्षिणे लक्ष्मणो यस्य वामे तु जनकात्मजा । पुरतो मारुतिर्यस्य तं वन्दे रघुनंदनम् ॥॥ 
 लोकाभिरामं रनरङ्गधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् । कारुण्यरूपं करुणाकरंतं श्रीरामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥॥ 
मनोजवं मारुततुल्यवेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम् । वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणं प्रपद्ये ॥॥ 
कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम् । 
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम् ॥॥

आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसंपदाम् । 
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम् ॥॥ 
भर्जनं भवबीजानामर्जनं सुखसंपदाम् । 
तर्जनं यमदूतानां रामरामेति गर्जनम् ॥॥ 
रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे । 
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: । 
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम् । 
रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥॥ 
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे । 
सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ॥॥ 
इति श्रीबुधकौशिकविरचितं श्रीरामरक्षास्तोत्रं संपूर्णम् ॥ ॥ श्री सीतारामचंद्रार्पणमस्तु ॥

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