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Jitiya Vrat 2025: संतान की रक्षा का पर्व आज, जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व, पूजाविधि और कथा
धर्म डेस्क, अमर उजाला
Published by: विनोद शुक्ला
Updated Sun, 14 Sep 2025 12:03 PM IST
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सार
Jitiya Vrat 2025: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत का पालन करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं। मान्यता है कि इस व्रत से पुत्र-पुत्रियों को लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

जितिया व्रत की शुभकामनाएं!
- फोटो : Amar Ujala
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विस्तार
Jitiya Vrat 2025: जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे जिउतिया या जितिया व्रत भी कहा जाता है, मातृत्व की ममता और संतान के प्रति निष्ठा का प्रतीक है। यह व्रत विशेष रूप से बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़े श्रद्धा भाव से मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व रविवार, 14 सितंबर को मनाया जाएगा। इस व्रत में माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना करती हैं। मान्यता है कि इस व्रत का पालन करने से भगवान की विशेष कृपा संतान पर बनी रहती है और जीवन में आने वाले संकट उनसे दूर रहते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि मां और संतान के अटूट रिश्ते का भी भावपूर्ण प्रतीक है।

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व्रत की पूजाविधि
इस व्रत का पालन करने वाली महिलाएं प्रातःकाल स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करती हैं और निर्जला उपवास का संकल्प लेती हैं। पूजा के लिए स्वच्छ स्थान पर भगवान जीमूतवाहन की प्रतिमा या चित्र स्थापित किया जाता है। पूजा सामग्री में फल, फूल, चावल, जल, धूप-दीप, कुमकुम और मिठाई शामिल होते हैं। दिनभर बिना जल ग्रहण किए उपवास रखा जाता है और संध्या के समय जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा का श्रवण किया जाता है। संतान की रक्षा और कल्याण की प्रार्थना के साथ पूजा पूर्ण होती है। अगले दिन नवमी को पारण कर व्रत का समापन किया जाता है, जिसमें प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
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व्रत की धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जीवित्पुत्रिका व्रत का पालन करने से संतान पर आने वाले संकट टल जाते हैं। मान्यता है कि इस व्रत से पुत्र-पुत्रियों को लंबी आयु, उत्तम स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। यह व्रत मातृत्व की शक्ति और त्याग का परिचायक है, क्योंकि माताएं निर्जला उपवास रखकर निःस्वार्थ भाव से संतान के कल्याण की प्रार्थना करती हैं।
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जीवित्पुत्रिका व्रत की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग में राजा जीमूतवाहन अत्यंत धर्मपरायण और दयालु थे। उन्होंने अपने राज्य को त्यागकर वन में निवास करना आरंभ किया। वहां उन्हें ज्ञात हुआ कि गरुड़ प्रतिदिन नाग जाति के एक सदस्य को भक्षण करते हैं। नागों की रक्षा के लिए जीमूतवाहन ने स्वयं को गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत कर दिया। उनकी निःस्वार्थता और परोपकार से प्रभावित होकर गरुड़ ने उन्हें मुक्त कर दिया और नागों को भक्षण करना त्याग दिया। इसी कथा के स्मरण में जीवित्पुत्रिका व्रत किया जाता है, ताकि माताएं अपनी संतान की सुरक्षा और दीर्घायु के लिए भगवान जीमूतवाहन का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें।
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