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Jitiya Vrat Katha: इस कथा के बिना अधूरा है जितिया व्रत, जानें जीवित्पुत्रिका व्रत मुहूर्त और पारण समय
ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: ज्योति मेहरा
Updated Sat, 13 Sep 2025 03:19 PM IST
Jitiya Vrat Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत को मातृशक्ति की अटूट आस्था, त्याग और प्रेम का पर्व माना जाता है। इसे जितिया व्रत भी कहा जाता है। यह व्रत माताएं अपनी संतान की लंबी उम्र और मंगलमय जीवन की कामना के लिए करती हैं। इसे कठिनतम व्रतों में से एक माना जाता है, क्योंकि इस दिन मां अपने पुत्र की सुरक्षा और सुख-समृद्धि के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
परंपरा के अनुसार सूर्योदय से पहले महिलाएं सरगी ग्रहण करती हैं और सूर्य उदय होने के साथ ही निर्जला व्रत का संकल्प लेती हैं। यह व्रत अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण तक चलता है। इस दिन महिलाएं गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन की पूजा करती हैं, क्योंकि उन्होंने अपने बलिदान से नागवंश की रक्षा की थी। जितिया व्रत की पूजा कथा के बिना अधूरी मानी जाती है। इस दिन व्रती महिलाओं को इस कथा को जरूर सुनना चाहिए। जितिया व्रत की प्रमुख कथा कुछ इस प्रकार है।
जितिया व्रत की कथा
मान्यता है कि गंधर्व कुल में जन्मे राजकुमार जीमूतवाहन अपने पिता के वनवास पर चले जाने के बाद राज्य के शासक बने। वे स्वभाव से उदार और दयालु थे और प्रजा के कल्याण को हमेशा प्राथमिकता देते थे। कई वर्षों तक न्यायपूर्वक शासन करने के बाद उन्होंने भी अपने पिता की तरह राजपाट त्याग दिया और वनवास ग्रहण किया।
वन में रहते हुए एक दिन उनकी भेंट नाग वंश की एक वृद्धा से हुई। उसका चेहरा भय और चिंता से भरा था। जब जीमूतवाहन ने कारण पूछा तो उसने बताया कि नाग वंश का पक्षीराज गरुड़ से समझौता है, जिसके अनुसार प्रतिदिन नाग वंश का एक सदस्य उसके भोजन के लिए भेजा जाता है। उस दिन उसके बेटे की बारी थी और इस कारण उसके प्राण संकट में थे।
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जितिया व्रत की कथा
- फोटो : freepik
जीमूतवाहन ने वृद्धा को आश्वस्त किया और कहा कि वह निराश न हो। अपने पुत्र के स्थान पर वे स्वयं गरुड़ के सामने प्रस्तुत होंगे। यह सुनकर वृद्धा को संतोष हुआ और उसके चेहरे पर राहत झलकने लगी। इसके बाद जीमूतवाहन समय पर लाल वस्त्र पहनकर गरुड़ के पास पहुंचे। गरुड़ ने उन्हें अपने पंजों में दबोचा और उड़कर ले गया। उड़ान के दौरान जीमूतवाहन पीड़ा से कराहने लगे। जब गरुड़ रुके तो जीमूतवाहन ने पूरी घटना और वृद्धा की व्यथा सुनाई। उनकी निस्वार्थ भावना और परोपकार देखकर गरुड़ प्रभावित हो गए।
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जितिया व्रत की कथा
- फोटो : freepik
गरुड़ ने जीमूतवाहन को छोड़ दिया और यह वचन भी दिया कि अब वह कभी नाग वंश के किसी भी सदस्य को अपना आहार नहीं बनाएगा। इस प्रकार जीमूतवाहन ने न केवल उस वृद्धा के पुत्र की रक्षा की बल्कि पूरे नाग वंश को भय से मुक्ति दिलाई। धार्मिक मान्यता है कि जो माताएं पूरी श्रद्धा से जितिया व्रत करती हैं और इस कथा का श्रवण करती हैं, उन्हें पुण्य की प्राप्ति होती है और उनकी संतान पर कोई संकट नहीं आता।
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जितिया व्रत 2025 मुहूर्त और पारण समय
- फोटो : freepik
जितिया व्रत 2025 मुहूर्त और पारण समय
अष्टमी तिथि प्रारंभ: 14 सितंबर, रविवार, प्रातः 5:04 बजे
अष्टमी तिथि समाप्त: 15 सितंबर, सोमवार, प्रातः 3:06 बजे
रवि योग: सुबह 6:05 बजे से 8:41 बजे तक
पूजा का समय: प्रातः 7:38 से दोपहर 12:16 तक एवं शाम 6:27 से 7:55 तक
व्रत पारण: 15 सितंबर, सोमवार, सुबह 6:06 बजे के बाद
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं, ज्योतिष, पंचांग, धार्मिक ग्रंथों आदि पर आधारित है। यहां दी गई सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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