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भारतीय हॉकी के 100 साल की गौरवगाथा: जानें यह खेल कैसे बना हमारी संस्कृति का प्रतीक, विश्व पटल पर इस तरह छाए हम
स्पोर्ट्स डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली
Published by: स्वप्निल शशांक
Updated Fri, 07 Nov 2025 01:22 PM IST
सार
भारतीय हॉकी का यह 100वां वर्ष केवल उत्सव नहीं, यह याद दिलाने का अवसर है कि यह खेल हमारे गर्व, हमारी पहचान और हमारे इतिहास का हिस्सा है और आने वाले वर्षों में, शायद कोई नया ध्यानचंद फिर से जन्म ले, जो दुनिया को बताए- यह है भारतीय हॉकी।
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भारतीय हॉकी
- फोटो : ANI/PTI
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विस्तार
भारत की मिट्टी ने खेलों को हमेशा एक अलग गरिमा दी है, लेकिन जिस खेल ने देश को अंतरराष्ट्रीय पहचान दी, वह है हॉकी। आज भारतीय हॉकी अपने 100 गौरवशाली वर्ष मना रही है, लेकिन इसकी जड़ें सैकड़ों साल पुरानी हैं। 16वीं सदी में स्कॉटलैंड में खेले जाने वाले हॉकी जैसे खेल से इसकी नींव रखी गई थी। ब्रिटिश साम्राज्य ने 18वीं सदी के अंत में आधुनिक हॉकी का रूप दिया और जब वह भारत पहुंचे, तो अपने साथ यह खेल भी लेकर आए।
1850 के दशक में ब्रिटिश सेना ने भारतीय सैनिकों को हॉकी से परिचित कराया। बड़े मैदानों की उपलब्धता और खेल की सरलता ने इसे देशभर में लोकप्रिय बना दिया। 1855 में कोलकाता (तब के कलकत्ता) में भारत का पहला हॉकी क्लब बना और वहीं से शुरू हुई वह यात्रा, जिसने एक दिन भारत को दुनिया का चैंपियन बना दिया। भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने पर सात नवंबर से भव्य शताब्दी समारोह की शुरुआत नई दिल्ली में होने जा रही है।
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1850 के दशक में ब्रिटिश सेना ने भारतीय सैनिकों को हॉकी से परिचित कराया। बड़े मैदानों की उपलब्धता और खेल की सरलता ने इसे देशभर में लोकप्रिय बना दिया। 1855 में कोलकाता (तब के कलकत्ता) में भारत का पहला हॉकी क्लब बना और वहीं से शुरू हुई वह यात्रा, जिसने एक दिन भारत को दुनिया का चैंपियन बना दिया। भारतीय हॉकी के 100 वर्ष पूरे होने पर सात नवंबर से भव्य शताब्दी समारोह की शुरुआत नई दिल्ली में होने जा रही है।
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राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ता प्रभाव
धीरे-धीरे यह खेल कोलकाता से बंबई (अब मुंबई) और पंजाब तक फैल गया। बीटन कप (Beighton Cup) और आगा खान टूर्नामेंट जैसे आयोजन युवाओं के दिलों में आग भरने लगे। 1907 और 1908 में भारतीय हॉकी संघ बनाने की चर्चा हुई, पर प्रयास सफल नहीं हो पाए। फिर आया वह साल जिसने इतिहास बदल दिया। 1925, जब बनी इंडियन हॉकी फेडरेशन (IHF)। यही संस्था भारत को विश्व मंच तक ले गई।
धीरे-धीरे यह खेल कोलकाता से बंबई (अब मुंबई) और पंजाब तक फैल गया। बीटन कप (Beighton Cup) और आगा खान टूर्नामेंट जैसे आयोजन युवाओं के दिलों में आग भरने लगे। 1907 और 1908 में भारतीय हॉकी संघ बनाने की चर्चा हुई, पर प्रयास सफल नहीं हो पाए। फिर आया वह साल जिसने इतिहास बदल दिया। 1925, जब बनी इंडियन हॉकी फेडरेशन (IHF)। यही संस्था भारत को विश्व मंच तक ले गई।
ध्यानचंद का आगमन और स्वर्ण युग की शुरुआत
1926 में भारतीय हॉकी टीम पहली बार न्यूजीलैंड दौरे पर गई। 21 मैचों में से 18 जीत और इसी दौरे में उभरा एक नाम जिसने खेल को धर्म बना दिया- मेजर ध्यानचंद। उनकी स्टिक पर गेंद जैसे जादू से चलती थी। 1928 में जब हॉकी को ओलंपिक में स्थायी रूप से जगह मिली, भारत ने अपने पहले ही प्रयास में एम्स्टर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लिया। 29 गोल किए, एक भी नहीं खाया। इनमें से 14 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए और भारत बन गया दुनिया की नई हॉकी ताकत।
1926 में भारतीय हॉकी टीम पहली बार न्यूजीलैंड दौरे पर गई। 21 मैचों में से 18 जीत और इसी दौरे में उभरा एक नाम जिसने खेल को धर्म बना दिया- मेजर ध्यानचंद। उनकी स्टिक पर गेंद जैसे जादू से चलती थी। 1928 में जब हॉकी को ओलंपिक में स्थायी रूप से जगह मिली, भारत ने अपने पहले ही प्रयास में एम्स्टर्डम ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीत लिया। 29 गोल किए, एक भी नहीं खाया। इनमें से 14 गोल अकेले ध्यानचंद ने किए और भारत बन गया दुनिया की नई हॉकी ताकत।
ओलंपिक पुरुष हॉकी पदक तालिका, भारत सबसे कामयाब देश
| देश | स्वर्ण | रजत | कांस्य | कुल पदक |
|---|---|---|---|---|
| भारत | 8 | 1 | 4 | 13 |
| नीदरलैंड | 3 | 4 | 3 | 10 |
| पाकिस्तान | 3 | 3 | 2 | 8 |
| ग्रेट ब्रिटेन | 3 | 2 | 4 | 9 |
| जर्मनी | 3 | 2 | 3 | 8 |
| ऑस्ट्रेलिया | 1 | 4 | 5 | 10 |
| वेस्ट जर्मनी | 1 | 2 | 0 | 3 |
| बेल्जियम | 1 | 1 | 1 | 3 |
| अर्जेंटीना | 1 | 0 | 0 | 1 |
| न्यूजीलैंड | 1 | 0 | 0 | 1 |
| स्पेन | 0 | 3 | 1 | 4 |
| डेनमार्क | 0 | 1 | 0 | 1 |
| जापान | 0 | 1 | 0 | 1 |
| दक्षिण कोरिया | 0 | 1 | 0 | 1 |
| सोवियत संघ | 0 | 0 | 1 | 1 |
| संयुक्त राज्य अमेरिका | 0 | 0 | 1 | 1 |
| यूनाइटेड टीम ऑफ जर्मनी | 0 | 0 | 1 | 1 |
| कुल | 25 | 25 | 26 | 76 |
तीन स्वर्ण और एक जादूगर की कहानी
1932 लॉस एंजिलिस और 1936 बर्लिन, दोनों ओलंपिक में भी भारत ने स्वर्ण जीते। 1936 में ध्यानचंद कप्तान थे, और जर्मनी के बर्लिन में उन्होंने हिटलर की आंखों के सामने भारत को विजेता बनाया। जब हिटलर ने पूछा कि 'तुम्हारी स्टिक में क्या है?' ध्यानचंद मुस्कराए और कहा, 'सर, बस भारतीय दिल की लगन।' यह वही दौर था जब भारत हॉकी के मैदान पर अजेय साम्राज्य बन गया था। तीन ओलंपिक...तीन स्वर्ण और शुरू हुआ स्वर्ण युग।
1932 लॉस एंजिलिस और 1936 बर्लिन, दोनों ओलंपिक में भी भारत ने स्वर्ण जीते। 1936 में ध्यानचंद कप्तान थे, और जर्मनी के बर्लिन में उन्होंने हिटलर की आंखों के सामने भारत को विजेता बनाया। जब हिटलर ने पूछा कि 'तुम्हारी स्टिक में क्या है?' ध्यानचंद मुस्कराए और कहा, 'सर, बस भारतीय दिल की लगन।' यह वही दौर था जब भारत हॉकी के मैदान पर अजेय साम्राज्य बन गया था। तीन ओलंपिक...तीन स्वर्ण और शुरू हुआ स्वर्ण युग।
आजादी के बाद भी चमका तिरंगा
1947 में भारत आजाद हुआ और 1948 में लंदन ओलंपिक में स्वतंत्र भारत ने पहली बार भाग लिया। नए नायक के रूप में उभरे बलबीर सिंह सीनियर, जिन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1948, 1952, 1956) में भारत को स्वर्ण दिलाया। ये जीतें केवल पदक नहीं थीं, ये थीं गुलामी के बाद आत्मसम्मान की वापसी। पर 1960 रोम ओलंपिक में पाकिस्तान ने भारत को हराया और स्वर्ण पर रोक लगाई। फिर 1964 टोक्यो में भारत ने वापसी करते हुए एक और स्वर्ण जीता, लेकिन यह भी साफ दिखने लगा कि अब दुनिया बदल रही है और भारत को नई चुनौतियों से जूझना होगा।
1947 में भारत आजाद हुआ और 1948 में लंदन ओलंपिक में स्वतंत्र भारत ने पहली बार भाग लिया। नए नायक के रूप में उभरे बलबीर सिंह सीनियर, जिन्होंने लगातार तीन ओलंपिक (1948, 1952, 1956) में भारत को स्वर्ण दिलाया। ये जीतें केवल पदक नहीं थीं, ये थीं गुलामी के बाद आत्मसम्मान की वापसी। पर 1960 रोम ओलंपिक में पाकिस्तान ने भारत को हराया और स्वर्ण पर रोक लगाई। फिर 1964 टोक्यो में भारत ने वापसी करते हुए एक और स्वर्ण जीता, लेकिन यह भी साफ दिखने लगा कि अब दुनिया बदल रही है और भारत को नई चुनौतियों से जूझना होगा।
1970 का दशक: महिलाओं का आगाज और बदलाव का दौर
1971 में पहली बार हॉकी वर्ल्ड कप खेला गया और भारत तीसरे स्थान पर रहा। 1975 में कुआलालंपुर में भारत ने अपना पहला और अब तक का एकमात्र वर्ल्ड कप जीता। पर 1976 में जब अस्ट्रोटर्फ (कृत्रिम घास) पर हॉकी शुरू हुई, तो भारत संघर्ष करने लगा। नतीजा, 1976 मॉन्ट्रियल ओलंपिक में भारत सातवें स्थान पर रहा और पहली बार बिना पदक के। इसी बीच 1974 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम रखा और पहली बार महिला विश्व कप में चौथा स्थान हासिल किया। यह वह बीज था, जिससे आगे चलकर महिला हॉकी की ताकत फूटी।
1971 में पहली बार हॉकी वर्ल्ड कप खेला गया और भारत तीसरे स्थान पर रहा। 1975 में कुआलालंपुर में भारत ने अपना पहला और अब तक का एकमात्र वर्ल्ड कप जीता। पर 1976 में जब अस्ट्रोटर्फ (कृत्रिम घास) पर हॉकी शुरू हुई, तो भारत संघर्ष करने लगा। नतीजा, 1976 मॉन्ट्रियल ओलंपिक में भारत सातवें स्थान पर रहा और पहली बार बिना पदक के। इसी बीच 1974 में भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर कदम रखा और पहली बार महिला विश्व कप में चौथा स्थान हासिल किया। यह वह बीज था, जिससे आगे चलकर महिला हॉकी की ताकत फूटी।
1980 का स्वर्ण, फिर सन्नाटा
1980 मास्को ओलंपिक में जब कई देशों ने बहिष्कार किया, भारत ने अवसर का लाभ उठाया और अपना आठवां ओलंपिक स्वर्ण जीता। महिलाओं ने भी चौथा स्थान पाया, जो उस समय ऐतिहासिक था। 1982 एशियाई खेलों (दिल्ली) में महिलाओं ने स्वर्ण और पुरुषों ने रजत जीता, लेकिन इसके बाद एक लंबा ठहराव शुरू हुआ। एस्ट्रोटर्फ की तकनीक भारत में देर से आई। जहां बाकी देश गति और रणनीति में आगे निकल गए, भारत पुराने घास के मैदानों में फंसा रहा। 1986 एशियाई खेलों में दोनों टीमें केवल कांस्य तक सीमित रहीं।
1980 मास्को ओलंपिक में जब कई देशों ने बहिष्कार किया, भारत ने अवसर का लाभ उठाया और अपना आठवां ओलंपिक स्वर्ण जीता। महिलाओं ने भी चौथा स्थान पाया, जो उस समय ऐतिहासिक था। 1982 एशियाई खेलों (दिल्ली) में महिलाओं ने स्वर्ण और पुरुषों ने रजत जीता, लेकिन इसके बाद एक लंबा ठहराव शुरू हुआ। एस्ट्रोटर्फ की तकनीक भारत में देर से आई। जहां बाकी देश गति और रणनीति में आगे निकल गए, भारत पुराने घास के मैदानों में फंसा रहा। 1986 एशियाई खेलों में दोनों टीमें केवल कांस्य तक सीमित रहीं।
धनराज पिल्लै का दौर: उम्मीद की लौ
1989 में मैदान पर उतरे धनराज पिल्लै, जो जोश, जुनून और गति का प्रतीक बने। उन्होंने अकेले दम पर भारत को 1998 एशियाई खेलों में स्वर्ण दिलाया, लेकिन टीम में सहयोग और समर्थन की कमी के कारण निरंतर सफलता नहीं मिली। इसी दशक में महिला टीम ने भी अपनी मजबूत वापसी की कोशिश शुरू की। 1998 एशियाई खेलों में रजत और फिर 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण। इसने महिला हॉकी की नई पहचान बनाई। 2006 में फिर महिलाओं ने रजत जीता, पर पुरुष टीम छठे स्थान पर रह गई। और फिर आई 2008 की सबसे बड़ी निराशा, 1928 के बाद पहली बार भारत ओलंपिक में क्वालिफाई नहीं कर पाया।
1989 में मैदान पर उतरे धनराज पिल्लै, जो जोश, जुनून और गति का प्रतीक बने। उन्होंने अकेले दम पर भारत को 1998 एशियाई खेलों में स्वर्ण दिलाया, लेकिन टीम में सहयोग और समर्थन की कमी के कारण निरंतर सफलता नहीं मिली। इसी दशक में महिला टीम ने भी अपनी मजबूत वापसी की कोशिश शुरू की। 1998 एशियाई खेलों में रजत और फिर 2002 कॉमनवेल्थ गेम्स में स्वर्ण। इसने महिला हॉकी की नई पहचान बनाई। 2006 में फिर महिलाओं ने रजत जीता, पर पुरुष टीम छठे स्थान पर रह गई। और फिर आई 2008 की सबसे बड़ी निराशा, 1928 के बाद पहली बार भारत ओलंपिक में क्वालिफाई नहीं कर पाया।
नई सदी, नया संघर्ष, नई उम्मीदें
2008 के झटके ने हॉकी भारत को झकझोर दिया। संघटनों में सुधार हुआ, खिलाड़ियों को प्रोफेशनल माहौल मिलने लगा। 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने रजत और एशियाई खेलों में कांस्य जीता। 2012 लंदन ओलंपिक में टीम सबसे नीचे रही, लेकिन वहां तक पहुंचना ही एक उपलब्धि थी। फिर आया रियो 2016, और पहली बार 36 साल बाद भारतीय महिला टीम ने ओलंपिक में जगह बनाई।
2008 के झटके ने हॉकी भारत को झकझोर दिया। संघटनों में सुधार हुआ, खिलाड़ियों को प्रोफेशनल माहौल मिलने लगा। 2010 में दिल्ली कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत ने रजत और एशियाई खेलों में कांस्य जीता। 2012 लंदन ओलंपिक में टीम सबसे नीचे रही, लेकिन वहां तक पहुंचना ही एक उपलब्धि थी। फिर आया रियो 2016, और पहली बार 36 साल बाद भारतीय महिला टीम ने ओलंपिक में जगह बनाई।
नई पीढ़ी का उदय: रानी और मनप्रीत का युग
महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल और पुरुष टीम के लीडर मनप्रीत सिंह ने भारतीय हॉकी में नई जान फूंक दी। टीमों ने फिटनेस, रणनीति और आधुनिक खेल शैली पर ध्यान दिया। 2018 एशियाई खेलों में महिलाओं ने रजत, और पुरुषों ने शानदार प्रदर्शन किया। एफआईएच प्रो लीग 2020 में भारत ने बेल्जियम, नीदरलैंड्स और ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीमों को हराया।
महिला टीम की कप्तान रानी रामपाल और पुरुष टीम के लीडर मनप्रीत सिंह ने भारतीय हॉकी में नई जान फूंक दी। टीमों ने फिटनेस, रणनीति और आधुनिक खेल शैली पर ध्यान दिया। 2018 एशियाई खेलों में महिलाओं ने रजत, और पुरुषों ने शानदार प्रदर्शन किया। एफआईएच प्रो लीग 2020 में भारत ने बेल्जियम, नीदरलैंड्स और ऑस्ट्रेलिया जैसी दिग्गज टीमों को हराया।
टोक्यो 2020: आंसुओं में छलकती जीत
2021 में टोक्यो ओलंपिक (कोविड के कारण 2020 नहीं, 2021 में हुआ) में भारतीय पुरुष टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता। यह वह क्षण था जब पूरे देश ने आंसुओं के साथ कहा- भारत में हॉकी लौट आई है। महिलाओं ने भी चौथा स्थान पाकर इतिहास रचा और क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को हराया।
2021 में टोक्यो ओलंपिक (कोविड के कारण 2020 नहीं, 2021 में हुआ) में भारतीय पुरुष टीम ने 41 साल बाद कांस्य पदक जीता। यह वह क्षण था जब पूरे देश ने आंसुओं के साथ कहा- भारत में हॉकी लौट आई है। महिलाओं ने भी चौथा स्थान पाकर इतिहास रचा और क्वार्टर फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम को हराया।
नया भारत, नई चमक: एशियाई और ओलंपिक गौरव
2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुषों ने रजत और महिलाओं ने कांस्य जीता। फिर 2023 एशियाई खेलों (हांगझोऊ) में पुरुष टीम ने स्वर्ण, और महिला टीम ने कांस्य हासिल किया। इस जीत ने भारत को पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कराया। 2024 में पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत ने लगातार दूसरी बार ओलंपिक पदक जीता। टीम इंडिया ने लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता। कप्तान हरमनप्रीत सिंह 10 गोल के साथ टूर्नामेंट के शीर्ष स्कोरर रहे। यह वह पल था जिसने फिर कहा- हम फिर से वहीं हैं, जहां कभी ध्यानचंद खड़े थे।
2022 कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुषों ने रजत और महिलाओं ने कांस्य जीता। फिर 2023 एशियाई खेलों (हांगझोऊ) में पुरुष टीम ने स्वर्ण, और महिला टीम ने कांस्य हासिल किया। इस जीत ने भारत को पेरिस 2024 ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कराया। 2024 में पेरिस ओलंपिक खेलों में भारत ने लगातार दूसरी बार ओलंपिक पदक जीता। टीम इंडिया ने लगातार दूसरी बार कांस्य पदक जीता। कप्तान हरमनप्रीत सिंह 10 गोल के साथ टूर्नामेंट के शीर्ष स्कोरर रहे। यह वह पल था जिसने फिर कहा- हम फिर से वहीं हैं, जहां कभी ध्यानचंद खड़े थे।
महिला हॉकी की नई ताकत
आज भारतीय महिला हॉकी टीम विश्व की सबसे प्रतिस्पर्धी टीमों में है। उनकी जीतें केवल मैदान की नहीं, यह ग्रामीण भारत की बेटियों की आवाज हैं, जो अब हॉकी स्टिक के साथ सपने देखती हैं। वे कहती हैं- हम भी देश के लिए खेल सकते हैं, जीत सकते हैं।
आज भारतीय महिला हॉकी टीम विश्व की सबसे प्रतिस्पर्धी टीमों में है। उनकी जीतें केवल मैदान की नहीं, यह ग्रामीण भारत की बेटियों की आवाज हैं, जो अब हॉकी स्टिक के साथ सपने देखती हैं। वे कहती हैं- हम भी देश के लिए खेल सकते हैं, जीत सकते हैं।
100 वर्षों की कहानी, जो अब अधूरी नहीं
1855 से 2025, यह केवल खेल का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्र के आत्मसम्मान की गाथा है। ब्रिटिशों से सीखी हुई यह हॉकी अब भारतीय संस्कृति का प्रतीक बन चुकी है। ध्यानचंद से लेकर हरमनप्रीत तक, बलबीर सिंह से लेकर रानी रामपाल तक, यह कहानी हर पीढ़ी के संघर्ष, समर्पण और सपनों की मिसाल है। भारत की हॉकी ने हमें सिखाया है- जीत सिर्फ मैदान में नहीं होती, बल्कि उस जुनून में होती है जो स्टिक थामे बच्चे की आंखों में जलती है।
1855 से 2025, यह केवल खेल का इतिहास नहीं, बल्कि राष्ट्र के आत्मसम्मान की गाथा है। ब्रिटिशों से सीखी हुई यह हॉकी अब भारतीय संस्कृति का प्रतीक बन चुकी है। ध्यानचंद से लेकर हरमनप्रीत तक, बलबीर सिंह से लेकर रानी रामपाल तक, यह कहानी हर पीढ़ी के संघर्ष, समर्पण और सपनों की मिसाल है। भारत की हॉकी ने हमें सिखाया है- जीत सिर्फ मैदान में नहीं होती, बल्कि उस जुनून में होती है जो स्टिक थामे बच्चे की आंखों में जलती है।